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खेतों से पर्यावरण को अब नहीं होगा नुकसान

खेतों में डंठल जलाने से उसकी उत्पपदन क्षमता कम हो जाती है। अब खेतों में उसके अवशेष जलाने के बजाए खेत में उसका खाद बन जाएगा।

By Edited By: Published: Fri, 21 Sep 2018 08:37 AM (IST)Updated: Fri, 21 Sep 2018 03:02 PM (IST)
खेतों से पर्यावरण को अब नहीं होगा नुकसान
खेतों से पर्यावरण को अब नहीं होगा नुकसान
गोरखपुर, (जेएनएन)। पर्यावरण के लिए नसूर बन चुके फसल अवशेषों को अब जलाने की नौबत नहीं आएगी। इसके लिए कृषि विभाग ने नई तरकीब अपनाई है। फसल अवशेष जलाने के बजाए, उन्हें मिट्टी में ही मिलाकर एक तरफ जहां मिट्टी की सेहत बचाई जाएगी दूसरी तरफ उस फसल अवशेष को खाद के रूप में विकसित किया जाएगा। इससे न तो फसल अवशेष जलाने की स्थिति उत्पन्न होगी और न ही पर्यावरण को नुकसान होगा। अब इनके प्रबंधन का तरीका ढूंढ लिया गया है।
बस्ती जनपद में 400 किसानों ने फसल अवशेष जलाने के बजाए खाद बनाने की प्रक्रिया अपनाने के लिए अर्जी दिया है। इसमें से 150 किसान यंत्र खरीदने की तैयारी में हैं। बता दें कि अक्सर किसान फसल काटने के बाद अवशेष खेतों में ही जला देते हैं। तमाम नियम कानून व रोक-टोक के बाद भी नहीं मानते हैं। फसल अवशेष से छुटकारा पाने का उनको यह तरीका आसान लगता है। जबकि इससे मिट्टी और आमजन की सेहत पर बुरा असर पड़ता है।
कृषि विभाग ने ऐसे किसानों को फसल अवशेष जलाने से रोकने की पहल की है जो तराई क्षेत्र में निवास करते हैं। जहां धान की खेती अधिक होती है। विशेषज्ञ बताते हैं कि फसल अवशेष जलने के बाद उससे उठता धुआं तराई क्षेत्रों में आ‌र्द्र नम जलवायु के चलते ऊपर नहीं जा पाता और नीचे ही परत बनकर ठहरा रहता है। दिसंबर में कोहरे और धुंध के रूप में और गहरा हो जाता है। इससे न सिर्फ खेती-बारी को नुकसान पहुंचता है बल्कि आंख, त्वचा, फेफड़ा समेत दमा के मरीज भी प्रभावित होते हैं। पर्यावरण को भी इससे काफी नुकसान पहुंचता है।
एनजीटी के निर्देश पर इस समस्या को दूर करने के लिए कृषि विभाग ने फसल अवशेष प्रबंधन की तकनीक विकसित की है। इस तकनीक में यंत्रों के जरिए जिस मिट्टी में फसल उगी हैं, उसी मिट्टी में उसके अवशेष मिला दिए जाएंगे। इससे यह फायदा होगा कि फसल जलाने के बाद मिट्टी के लिए लाभकर जीवाणु सुरक्षित रहेंगे। यंत्र की खरीदारी पर मिलता है 50 फीसद अनुदान : फसल अवशेष प्रबंधन के लिए विकसित की गई मशीन खरीदने पर 50 फीसद अनुदान मिलेगा। प्रमोशन आफ एग्रीकल्चर मैकेनाइजेशन फार इन-सीटू मैनेजमेंट आफ क्राप री-यूज्ड योजना के तहत यंत्र प्रदान किए जा रहे हैं। अब तक जनपद में 36 किसानों ने यंत्र की खरीदारी की है।
एक टन फसल अवशेष जलाने से मिट्टी की होती है काफी क्षति
कृषि विशेषज्ञों के अनुसार एक टन धान का अवशेष जलाने से 3.0 किलो कणिक तत्व, 60.0 किलो कार्बन मोनोआक्साइड, 1460 किलो कार्बन डाई आक्साइड 199.0 किलो राख एवं 2.0 किलो सल्फर डाई आक्साइड अवमुक्त होता है। इन गैसों के कारण सामान्य वायु की गुणवत्ता में कमी आती है। 5.5 किग्रा नाइट्रोजन, 2.3 किग्रा फास्फोरस आक्साइड, 25.0 किग्रा पोटेशियम आक्साइड, 1.2 किग्रा सल्फर, धान के द्वारा शोषित 50-70 फीसद सूक्ष्म पोषक तत्व एवं 400 किग्रा कार्बन की क्षति होती है। पोषक तत्वों के नष्ट होने से मिट्टी के कुछ गुण जैसे भूमि तापमान, पीएच, नमी, उपलब्ध फास्फोरस एवं जैविक पदार्थ भी प्रभावित होता है।
यह फायदेमंद तरीका
कृषि विभाग के उप निदेशक बलराम वर्मा का कहना है कि पर्यावरण संरक्षण का यह तरीका काफी फायदेमंद होगा। 2018-19 और 2019-20 तक के लिए प्रदेश के लिए नई केंद्रीय योजना लागू है। इसके तहत कृषि यंत्र दिए जाएंगे। किसानों को प्रेरित किया जा रहा कि फसल अवशेष जलाएं नहीं बल्कि नई तकनीकी से मिट्टी में मिलाएं, सेहत व खेत के लिए लाभकर होगा। हर्रैया ब्लाक के ग्राम गौहनिया निवासी प्रगतिशील किसान अवनीश प्रताप ¨सह इस विधि का प्रयोग शुरू कर दिए हैं।

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