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यहां बिना रासायनिक पेंट के बन रही हैं दुर्गा प्रतिमाएं

गोरखपुर में इस बार दुर्गा प्रतिमाएं बिना हानिकारक पेंट के बनाई जा रही हैं। प्रतिमाओं में हर्बल पेंट का प्रयोग किया जा रहा है।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Mon, 24 Sep 2018 10:41 AM (IST)Updated: Mon, 24 Sep 2018 02:25 PM (IST)
यहां बिना रासायनिक पेंट के बन रही हैं दुर्गा प्रतिमाएं
यहां बिना रासायनिक पेंट के बन रही हैं दुर्गा प्रतिमाएं

गोरखपुर, (गजाधर द्विवेदी)। शारदीय नवरात्र 10 अक्टूबर से शुरू होगा। लेकिन दुर्गा पूजा की तैयारियां अभी से शुरू हो गई हैं। इस बार इकोफ्रेंडली दुर्गा मूर्तियों का निर्माण किया जा रहा है। बड़े पंडालों को बनाने का कार्य शुरू हो गया है। मूर्तियों की बुकिंग शुरू हो गई है। रेलवे स्टेशन, गोरखनाथ, मेडिकल रोड, कूड़ाघाट, खोराबार, सूबा बाजार व रेती में मूर्तियां बनाने में कलाकार जी-जान से जुटे हैं।

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इस बार की दुर्गा मूर्तियां केवल बांस, मिट्टी, पुआल, रस्सी आदि से बनाई जा रही हैं। उसमें पीओपी (प्लास्टर आफ पेरिस) और रसायनिक पेंट का इस्तेमाल नहीं किया जा रहा है। ये मूर्तियां पूरी तरह पर्यावरण के अनुकूल होंगी। हर्बल पेंट की उपलब्धता कम होने और महंगा होने के बावजूद कलाकारों ने इसे कोलकाता से मंगाया है।

इस बार साड़ी, गहने सब मिट्टी के

मूर्तियों में अब अलग से साड़ी व गहने लगाने की जरूरत नहीं पड़ेगी। ज्यादातर मूर्तियों में कलाकार मिट्टी से ही साड़ी, किराना, गोटा, चूड़ी, बाल, पायल, मुकुट आदि सब मिट्टी के बनाए रहे हैं जो मूर्ति के साथ ही चस्पा हैं। हालांकि इसकी कारीगरी में समय ज्यादा लग रहा है, इसलिए मजदूरी बढ़ रही है, जिसकी वजह से मूर्तियां महंगी होंगी। इनकी कीमत अभी तय नहीं की गई है। कुछ परंपरागत मूर्तियां भी बन रही हैं जिनमें कपड़े-गहने अलग से लगाए जाएंगे, उनकी कीमत 15 हजार से 35 हजार रुपये के बीच है।

मसूर दाल की बन रही एक मूर्ति

किराना मंडी, साहबगंज से रेलवे स्टेशन कारखाना में मसूर दाल की मूर्ति बनाने का आर्डर मिला है। कलाकार प्रवीर विश्वास बताते हैं कि इस मूर्ति में भी बांस, मिट्टी व पुआल का पूरा प्रयोग किया जाएगा जाएगा मूर्ति के ऊपरी सतह पर मसूर की दाल लगाई जाएगी, इससे चमक बढ़ जाएगी। हालांकि इस मूर्ति अनेक रंग के पेंट नहीं लग पाएंगे, एक रंग की मूर्ति होगी।

बांस, पुआल, मिट्टी की दिक्कत

बांस, पुआल व मिट्टी की कलाकारों को बहुत ज्यादा दिक्कत है। बांस असम व बिहार के सुदूर इलाकों से मंगाना पड़ रहा है। इसके लिए आठ माह पहले आर्डर दे दिया गया था। पुआल भी कुछ तो पूर्वी उत्तर प्रदेश में मिल गया लेकिन ज्यादातर पुआल असम व बिहार से ही आया है। मिट्टी खनन पर रोक के चलते कलाकारों को मिट्टी की बहुत परेशानी हुई। कलाकार बताते हैं कि परमीशन के लिए बहुत भागदौड़ करनी पड़ती है, इसलिए जितनी जरूरत होती है, उतने की ही परमीशन लेते हैं।

हर्बल पेंट का कर रहे उपयोग

मूर्ति कलाकार प्रवीर विश्वास ने कहा कि इस बार मूर्तियां केवल मिट्टी से बनाई जा रही हैं। उसमें प्लास्टर ऑफ पेरिस का प्रयोग नहीं किया जाएगा। हर्बल पेंट कोलकाता से मंगाया गया है। रासायनिक पेंट की अपेक्षा हर्बल पेंट की कीमत लगभग दोगुना पड़ती है। इसका असर मूर्तियों की कीमत पर पड़ेगा लेकिन ग्राहकों की भी इस बार मांग हर्बल मूर्तियों की रही। इसलिए बहुत परिश्रम करके हर्बल पेंट खोजा गया है। इनकी उपलब्धता बहुत कम है। रासायनिक पेंट तो मशीन से मिक्स करके बना दिए जाते हैं लेकिन हर्बल पेंट घर में कूट-पीसकर बनता है। फिर भी हमें जरूरत के मुताबिक हर्बल पेंट मिल गए हैं। इस बार की सभी मूर्तियां इकोफ्रेंडली बनाई जा रही हैं।


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