गोरखपुर के बाजार में हर तरफ मिट्टी के दीये, इसी से रोशन करने की तैयारी, जानें-क्या है खास Gorakhpur News
मिट्टी व ढुलाई महंगी होने के बावजूद मिट्टी के दीयों की कीमत में कोई वृद्धि नहीं हुई है। मिट्टी के दीयों की कीमत पिछले साल की तुलना में बहुत कम रेट है।
गोरखपुर, जेएनएन। दीप हम रोज जलाते हैं लेकिन दीपावली की बात ही कुछ और है। यह त्योहार हमें भगवान राम के 14 वर्ष के वनवास के बाद अयोध्या लौटने की खुशी प्रदान करता है। दीपावली त्योहार को देखते हुए मिट्टी के दीये बड़ी संख्या में बाजार में आ चुके हैं। कुम्हार अभी दीये गढ़ भी रहे हैं जो दीपावली के पूर्व तक बाजार में आ जाएंंगे।
मिट्टी के दीये फिर भी सस्ते
मिट्टी व ढुलाई महंगी होने के बावजूद मिट्टी के दीयों की कीमत में कोई वृद्धि नहीं हुई है। मिट्टी के दीयों की कीमत पिछले साल की तरह फुटकर में 90-100 रुपये प्रति सैकड़ा व थोक में 60-70 रुपये प्रति सैकड़ा है। संभव है दीपावली के समय कुछ दाम चढ़े।
शुभ ही होता है मिट्टी का दीया
दरअसल रोशनी से घर कितना ही चकाचौंध क्यों न हो जाए, झालरें वातावरण को कितना ही खूबसूरत व आकर्षक क्यों न बना दें, लेकिन जब तक आंगन में मिट्टी का दीया न जले, त्योहार अधूरा रह जाता है। मिट्टी के दीये ही हमारी परंपरा को रोशन करते हैं। ज्यादातर दीये पक कर बाजार में आ गए हैं, शेष आंवा में जाने के लिए तैयार हैं।
क्या कहते हैं कलाकार
बक्शीपुर कुम्हार टोली के राकेश कुमार का कहना है कि जबसे विद्युत झालरों का चलन बढ़ा है, मिट्टी के दीये के प्रति लोगों का रुझान कम हुआ है। चूंकि मिट्टी के दीये थोड़े महंगे पड़ते हैं। इसलिए लोग कम खरीदते हैं। किशुन लाल का कहना है कि मिट्टी दीया जलाएंगे तो तेल व बाती भी चाहिए और उन्हें सजाने के लिए समय भी। इस वजह से लोगों ने घर को सस्ती विद्युत झालरों से सजाना शुरू कर दिया। संजय प्रजापति का मानना है कि ज्यादातर परिवारों ने तो रोजगार के विकल्प तलाश लिए, लेकिन अभी भी हम मिट्टी का कार्य कर रहे हैं ताकि हमारी परंपरा पर कोई आंच न आने पाए। वहीं सतीश कुमार का कहना है कि मिट्टी मिलती नहीं है, मिलती भी है तो बहुत महंगी। दूसरे ढुलाई भी बहुत ज्यादा लगती है। बावजूद इसके हम लोग दाम नहीं बढ़ाते ताकि सब लोग खरीद सकें।