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जानें-क्‍यों गोरखपुर में सिमट कर रह गया ड्रेनेज सिस्टम Gorakhpur News

शुरू में महज तीन-चार किलोमीटर में फैले गोरखपुर शहर की परिधि अब 30 किलोमीटर से अधिक है। यहां ड्रेनेज सिस्‍टम उसी पुरानी व्‍यवस्‍था में सिमटा हुआ है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Fri, 04 Sep 2020 04:49 PM (IST)Updated: Fri, 04 Sep 2020 04:49 PM (IST)
जानें-क्‍यों गोरखपुर में सिमट कर रह गया ड्रेनेज सिस्टम Gorakhpur News
जानें-क्‍यों गोरखपुर में सिमट कर रह गया ड्रेनेज सिस्टम Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। बेहतर ड्रेनेज सिस्टम किसी भी शहर के लिए बेहद जरूरी है। लेकिन, गोरखपुर में लंबे समय से इसका अभाव है। सरकारें आईं-गईं, योजनाएं भी बनी, पर ज्यादातर कोशिशें कागजों तक रह गईं। जो काम भी हुए वह भी अनियोजित। बढ़ती आबादी व अनियोजित कालोनियों ने मुसीबत और बढ़ा दी। नतीजा सामने है। शहर के ज्यादातर हिस्सों में जलजमाव आम है। बारिश में तो हालात बदतर हो जाते हैं।

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शुरू में महज तीन-चार किलोमीटर  में फैले गोरखपुर शहर की परिधि अब 30 किलोमीटर से अधिक है। शहर का कुल रकबा 147 वर्ग किलोमीटर है।  2011 की जनसंख्या के मुताबिक शहर की आबादी 6.72 लाख है, लेकिन वर्तमान में यह करीब 13 लाख तक पहुंच चुकी है।

आवास विकास ने  दिखाई राह

आवास विकास परिषद की बेतियाहाता, सूरजकुंड जैसी कालोनियों की स्थापना के बाद शहरवासियों ने पहली बार व्यवस्थित विकास की तस्वीर देखी थी। इसके पहले पुराना गोरखपुर, गोरखनाथ, बक्शीपुर, जाफरा बाजार, इलाहीबाग, तिवारीपुर, दीवान बाजार, अली नगर, सौदागर मोहल्ला, गोलघर, धर्मशाला बाजार, मियां बाजार, छोटे काजीपुर, घंटाघर और रायगंज में नाली, नालों का जाल बिछाया गया था जो अव्यवस्थित था।

नियोजन की खामी  बड़ी वजह

बढ़ती आबादी के मुताबिक कभी नियोजन सही नहीं हुआ। नगर निगम और गोरखपुर विकास प्राधिकरण (जीडीए) ने कोशिश तो की पर कुछ खास नहीं कर पाए। शहर का मास्टर प्लान तब आकार लेता है, जब बेतरतीब ढंग से कालोनियां अस्तित्व में आ चुकी होती हैं। इसका असर ड्रेनेज सिस्टम पर भी पड़ा है। शहरी क्षेत्रों के ड्रेनेज सिस्टम में एक बड़ी बाधा नदी-नालों के इर्द-गिर्द उग आई बस्तियां भी हैं। जिन नदी-नालों के जरिये कभी पानी की निकासी आसानी से होती थी, उनके दोनों तरफ बस्तियां हैं।

नाले-नालियां व इंतजाम नाकाफी

वर्तमान में महानगर में 11 बड़े, 123 मझौले और 96 छोटे नाले हैं। 50 से ज्यादा नाले-नालियों का निर्माण चल रहा है। नाले-नालियों के जरिए घरों से निकलने वाले और बरसात के पानी को एसटीपी के माध्यम से रामगढ़ ताल में गिराया जा रहा है। कुछ जगहों पर नालों का पानी सीधे राप्ती नदी में गिरता है। जलभराव न हो इसके लिए नगर निगम ने 80 पंङ्क्षपग सेट की व्यवस्था की है। हालांकि बरसात में यह इंतजाम नाकाफी साबित होता है।

बारिश में इन इलाकों में होता जलभराव

रुस्तमपुर, बेतियाहाता, टाउनहाल, सिनेमा रोड, चिलमापुर, बगहा बाबा मंदिर, रुस्तमुपुर सब स्टेशन, भरवलिया, तारामंडल रोड, आजाद नगर पूर्वी, रसूलपुर भट्टा, गोरखनाथ मंदिर के पीछे के इलाका, चक्सा हुसैन, धर्मशाला बाजार, जामिया नगर, इंजीनियरिंग कॉलेज रोड, डिभिया, बसंतपुर आदि शामिल है।

तैयार हो रहा मास्टर प्लान

ड्रेनेज सिस्टम को अपग्रेड करने के लिए बीते पांच साल में कई बड़े नाले बनाए गए हैं। खासकर उन कालोनियों पर फोकस किया गया जहां जलभराव होता है। गोरखपुर विकास प्राधिकरण और नगर निगम की ओर से संयुक्त रूप से शहर के लिए कंबाइंड सीवरेज व ड्रेनेज मास्टर प्लान तैयार कराया जा रहा है। मास्टर प्लान के लिए उत्तराखंड की जियोनो इंडिया प्राइवेट लिमिटेड ने हवाई सर्वेक्षण पूरा कर लिया है। लीडार मैपिंग के अंतरिम आंकडे भी जियोनो ने उपलब्ध कराना शुरू कर दिया है। 500 वर्ग किलोमीटर का सर्वे एयरक्राफ्ट के माध्यम से किया गया है। लीडार मैङ्क्षपग से मिले आंकड़ों का उपयोग कर नालों की ढलान को सही रखा जा सकेगा जिससे जलनिकासी में कोई बाधा नहीं आएगी। महापौर सीताराम जायसवाल का कहना है कि ड्रेनेज सिस्टम को विकसित करने के लिए नगर निगम और जीडीए संयुक्त रूप से काम कर रहा है। आने वाले समय में जो भी काम होगा वह व्यवस्थित होगा और शहर में कहीं भी जलभराव की समस्या नहीं होगी। नगर निगम के मुख्‍य अभियंता सुरेश चंद्र का कहना है कि सर्वे के बाद जीडीए ने पूरे शहर में ड्रेनेज सिस्टम विकसित करने का प्लान लगभग तैयार कर लिया है। जल्द डीपीआर बनाकर शासन को भेजा जाएगा। प्लान के मुताबिक काम हुआ तो शहर में जलभराव की समस्या हमेशा के लिए समाप्त हो जाएगी। 


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