डॉ. प्रदीप राव ने कहा-दुनिया में नाथ पंथ पर अध्ययन के खुलेंगे नए द्वार Gorakhpur News
बहुत जल्द गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ दुनिया भर में नाथ पंथ पर अध्ययन के नए द्वार खुलेंगे।
गोरखपुर, जेएनएन। हिंदुस्तानी अकादमी के प्रतिष्ठित गुरु गोरक्षनाथ शिखर सम्मान के लिए नामित महाराणा प्रताप पीजी कॉलेज जंगल धूसड़ के प्राचार्य डॉ. प्रदीप राव का कहना है कि गुरु गोरक्षनाथ और नाथ पंथ ने सामाजिक, सांस्कृतिक परिवर्तन में महत्वपूर्ण भूमिका निभाई है। बुद्ध के बाद अगर किसी ने जात-पात के कुचक्र को तोडऩे की कोशिश की तो वह गुरु गोरक्षनाथ थे। बावजूद इसके अध्ययन-अध्यापन की ²ष्टि से वह और उनका पंथ अबतक उपेक्षित रहे। बहुत जल्द गोरखपुर विश्वविद्यालय के साथ दुनिया भर में नाथ पंथ पर अध्ययन के नए द्वार खुलेंगे। गोरखपुर विश्वविद्यालय के प्राचीन इतिहास, संस्कृत और दर्शनशास्त्र विषय में इसे लेकर रूपरेखा तैयार भी हो चुकी है।
गोरक्षनाथ को समाज में युगांतरकारी परिवर्तन लाने श्रेय
डॉ. राव ने बताया कि जब मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ ने 1998 में महाराजगंज के चौक से मिली गुरु गोरक्षनाथ की कांस्य प्रतिमा और सिक्कों पर अध्ययन की जिम्मेदारी सौंपी, तभी से नाथ पंथ पर अध्ययन की रुचि जगी। अध्ययन में पाया कि गोरक्षनाथ को समाज में युगांतरकारी परिवर्तन लाने श्रेय है। फिर तय किया कि अध्ययन कर नाथ पीठ और गुरु गोरक्षनाथ की प्रासंगिकता के बारे में न केवल लोगों को बताऊंगा बल्कि इस विषय को नई पीढ़ी के अध्ययन का हिस्सा भी बनाने का कार्य किया जाएगा। सबसे पहले मैंने गोरखनाथ मंदिर से निकलने वाली मासिक पत्रिका योगवाणी और कई अन्य प्रतिष्ठित पत्र-पत्रिकाओं में अपने अध्ययन को साझा कराना शुरू किया। उत्तर प्रदेश हिंदी संस्थान के कार्यकारी अध्यक्ष प्रो. सदानंद गुप्त के साथ मिलकर महंत अवेद्यनाथ पर तीन खंडों मेें 2100 पेज की किताब लिखी। पांच अन्य पुस्तकें लिख नाथ पंथ की प्रासंगिकता से लोगों को अवगत कराया।
कई विषयों में नाथ पंथ पर अध्ययन की उपयोगिता
डॉ. राव के मुताबिक गुरु गोरक्षनाथ की गिनती हिंदी, संस्कृत और भोजपुरी साहित्य के कवियों में होती है। ऐसे मेें हिंदी और संस्कृत भाषा के पाठ्यक्रम में उन्हें होना ही चाहिए। योग और धर्म दर्शन तो इस पंथ का आधार है, इसलिए दर्शनशास्त्र में इसकी आधिकारिता है। समाजशास्त्र और इतिहास में भी इसके अध्ययन की जरूरत है।