District Panchayat election results in Gorakhpur: जिला पंचायत अध्यक्ष के चुनाव में भाजपा-सपा में सीधी टक्कर Gorakhpur News
भाजपा जहां 68 में से 35 सीटों के जादुई आंकड़े को आसानी से छूने की उम्मीद पाले बैठी थी वहीं सपा भी अपने पुराने जनाधार की बदौलत आधी सीटें जीतने का दम भर रही थी लेकिन जब नतीजा आया तो सभी के होश उड़ गए।
गोरखपुर, जेएनएन। जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी के लिए जैसी लड़ाई पिछली बार हुई थी, कुछ उसी तरह की पृष्ठिभूमि इस बार भी तैयार हो गई है। तीन दिनों तक चली मतगणना के बाद बुधवार को विजयी प्रत्याशियों की जो सूची जारी हुई, उसके मुताबिक भाजपा और सपा के बीच कड़ा मुकाबला तय है। इन सबके बीच निर्दल और बसपा समर्थित उम्मीदवार यह तय करेंगे कि जिला पंचायत का अध्यक्ष भाजपाई होगा या सपाई।
चूंकि राजनीतिक दलों ने अपने प्रत्याशियों की सूची पहले ही जारी कर दी थी, इस वजह से उनकी प्रतिष्ठा भी दांव पर थी। भाजपा-सपा से लेकर कांग्रेस के कद्दावर नेताओं ने प्रत्याशियों के समर्थन में प्रचार भी किया था। भाजपा जहां 68 में से 35 सीटों के जादुई आंकड़े को आसानी से छूने की उम्मीद पाले बैठी थी वहीं सपा भी अपने पुराने जनाधार की बदौलत आधी सीटें जीतने का दम भर रही थी, लेकिन जब नतीजा आया तो सभी के होश उड़ गए। भाजपा और सपा एक तिहाई सीटें भी नहीं जीत सकीं, जिसके चलते अब उनके सामने बसपा में जोड़-तोड़ और निर्दलों को साधना ही एक मात्र सहारा है।
पिछली बार जमकर हुआ था बवाल
2015 में जिला पंचायत अध्यक्ष की कुर्सी को लेकर जमकर बवाल हुआ था। एक तरफ सत्तासीन सपा समर्थित मनुरोजन यादव की पत्नी गीतांजलि देवी थीं तो दूसरी तरफ भाजपा विधायक विजय बहादुर यादव के भाई अजय बहादुर यादव थे। अध्यक्ष पद के लिए मतदान से एक दिन पहले तक प्रत्याशियों की मान-मनौवल, धरपकड़ और गिरफ्तारी तक हुई थी। चुनाव के दिन सदस्यों को वोट देने से रोकने के लिए कलेक्ट्रेट परिसर को पुलिस और सपा समर्थकों ने घंटों घेरे रखा था। कलेक्ट्रेट के बाहर मारपीट और बवाल के बाद भाजपा विधायक को धरने पर बैठना पड़ा था। अंत में जब परिणाम आया तो 11 जिला पंचायत सदस्यों के वोट को अवैध बताते हुए प्रशासन ने गीतांजलि देवी को अध्यक्ष का प्रमाणपत्र दिया था।
हकीकत पर परखे जाएंगे दावे
प्रशासन ने विजयी प्रत्याशियों की जो सूची जारी की है, उसमें किसी राजनीति दल का जिक्र नहीं है। सभी राजनीतिक दलों ने चुनाव से पहले प्रत्याशियों की जो सूची जारी की थी उसी अनुसार वह अपने विजयी सदस्यों की संख्या गिना रही हैं। भाजपा ने जहां 22 सदस्यों के जीतने का दावा किया है वहीं सपा 20 सीटों पर अपनी जीत बता रही है। बसपा के मुताबिक 08 सीटों पर उसके प्रत्याशी जीते हैं। आम आदमी पार्टी और निषाद पार्टी के भी एक-एक प्रत्याशियों ने जीत का परचम लहराया है। इन सबके बीच सबसे ताकतवर भूमिका में निर्दल हैं, जिनकी संख्या 16 है। कांग्रेस पहले ही बता चुकी है कि उसका एक भी प्रत्याशी चुनाव नहीं जीता है।
कहीं बागी बिगाड़ न दें समीकरण
भाजपा और सपा के विजयी प्रत्याशियों की सूची में कुछ बागी भी हैं। यह वो प्रत्याशी हैं, जिन्होंने टिकट के लिए दावेदारी की थी, लेकिन पार्टी ने उनकी जगह दूसरा प्रत्याशी उतार दिया था। अब इन बागियों की जीत के बाद पार्टी उन्हें अपना बता रही है, जबकि उन्होंने पूरे चुनाव भर पार्टी की बगावत की थी। भाजपा की सूची में ऐसे चार बागी नजर आ रहे हैं जबकि सपा में दो। हालांकि पार्टी पदाधिकारियों का कहना है कि वह अपने ही हैं, जिन्हें मना लिया जाएगा, जबकि प्रत्याशी अभी अपने पत्ते नहीं खोल रहे।
निर्दल न बनाने पाएं दल
भाजपा-सपा के लिए बड़ी चुनौती निर्दल की एकजुटता भी है। दोनों दलों के दिग्गज इस बात की कोशिश में अभी से जुट गए हैं कि निर्दल अपना दल न बना लें। अगर वह ऐसा करने में कामयाब हो गए तो उन्हें साधने में दोनों दलों को खासी मुश्किलों का सामना करना पड़ेगा।
विपक्ष खेल सकता है एकजुटता का कार्ड
सत्ता के खिलाफ विपक्ष की एकजुटता भी भाजपा के लिए मुश्किल खड़ी कर सकता है। सपा-बसपा ने अगर हाथ मिलाकर आप और निषाद पार्टी को अपने में मिला लिया तो उनकी संख्या 30 हो जाएगी। इसके बाद अगर पांच निर्दल भी उनके खेमे में आ गए तो भाजपा के गढ़ में ही उनका अध्यक्ष नहीं बन पाएगा।
भाजपा के पास सत्ता की 'मास्टर-की
सत्ता ऐसी चाभी है जिससे कोई भी ताला खोला जा सकता है। अध्यक्ष की कुर्सी पाने के लिए भाजपा इसी चाभी का इस्तेमाल कर सकती है। निर्दल हों या छोटे दल या फिर दूसरा प्रमुख विपक्षी दल। भाजपा के एक इशारे पर इन दलों के प्रत्याशी अपना वोट भाजपा प्रत्याशी को दे सकते हैं। इसके एवज में उन्हें सत्ता का आदमी होने का गौरव मिल जाएगा।