नई शिक्षा नीति: न्यूनतम समान पाठ्यक्रम कई विसंगितिया Gorakhpur News
बैठक में विद्वतजन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पाठ्यक्रम का बदला प्रारूप अत्यधिक क्रेडिट लोड को बढ़ावा दे रहा है। छह क्रेडिट के पाठ्यक्रमों का निर्धारण में सिद्धांत के लिए चार क्रेडिट और प्रैक्टिकल के लिए दो क्रेडिट को रखे जाने का मतलब सप्ताह में आठ घंटे पढ़ाना है।
गोरखपुर, जेएनएन। नई शिक्षा नीति के तहत देश भर के विश्वविद्यालयों में न्यूनतम समान पाठ्यक्रम लागू किए जाने में आने वाली चुनौतियों पर चर्चा के लिए दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय की एक बैठक आयोजित हुई। कुलपति प्रो. राजेश सिंह की अध्यक्षता में हुई इस बैठक में विश्वविद्यालय के सभी संकायाध्यक्षों और विभागाध्यक्षों मौजूद रहे। बैठक में यह निष्कर्ष निकला कि तीन साल के डिग्री कोर्स को डिजाइन किए गए डिप्लोमा, सर्टिफिकेट और डिग्री कोर्स में प्रभावशाली तरीके से लागू करना चुनौतीपूर्ण होगा। सभी ने एक स्वर से कहा कि न्यूनतम समान पाठ्यक्रम के प्रारूप में कई विसंगतियां मौजूद हैं। ऐसे में यह अवधारणा अपने लक्ष्य को हासिल करने से दूर है।
अत्यधिक लोड को बढ़ावा दे रहा पाठ्यक्रम का बदला प्रारूप
बैठक में विद्वतजन इस निष्कर्ष पर पहुंचे कि पाठ्यक्रम का बदला प्रारूप अत्यधिक क्रेडिट लोड को बढ़ावा दे रहा है। छह क्रेडिट के पाठ्यक्रमों का निर्धारण में सिद्धांत के लिए चार क्रेडिट और प्रैक्टिकल के लिए दो क्रेडिट को रखे जाने का मतलब सप्ताह में आठ घंटे पढ़ाना है। अगर हर सेमेस्टर में पांच से छह पाठ्यक्रम किसी संस्था द्वारा पेश किए जाते हैं तो समग्रता में क्रेडिट लोड बढ़ जाएगा। इसका अर्थ है, एक सप्ताह में 50 घंटे पढ़ाना, जो व्यावहारिक रूप से संभव नहीं। साथ इस प्रारूप में नए पाठ्यक्रम को शुरू करने में लचीलेपन का अभाव है, जो नई शिक्षा नीति की मंशा के अनुरूप नहीं है।
सदस्यों ने यह भी कहा कि दिल्ली विश्वविद्यालय, पंजाब विश्वविद्यालय, बनारस हिंदू विश्वविद्यालय अंडर ग्रेजुएट पाठ्यक्रमों को पूरा करने के लिए 120 से 140 क्रेडिट दे रहे हैं, जबकि वर्तमान प्रस्तावित प्रारूप में अगर कोई अंडर ग्रेजुएशन स्तर पर कुल क्रेडिट की गणना करता है तो यह लगभग 300 क्रेडिट होगा। देश का कोई भी विश्वविद्यालय 100 से 140 क्रेडिट के स्नातक पाठ्यक्रमों के बदले 300 क्रेडिट कोर्स को कैसे स्वीकार करेगा, यह बड़ा सवाल है। बैठक में इस बात पर ही चर्चा हुई कि सरकार को बुनियादी ढांचा प्रदान करना चाहिए। बाकी के लिए उच्च शिक्षा संस्थानों को निर्णय लेने की स्वायत्तता दी जानी चाहिए।
पाठ्यक्रम में नहीं है एकरूपता
विभिन्न विभागाध्यक्षों और संकायाध्यक्षों ने यह भी कहा कि न्यूनतम समान पाठ्यक्रम, राष्ट्रीय शिक्षा नीति के द्वारा शिक्षकों की ओर से पाठ्यक्रम को तैयार करने की स्वायत्ता को बाधित करता है। बैठक में तय हुआ कि एसाइनमेंट, प्रोजेक्ट, डिजरटेशन का सुझाव भी विभाग ही तैयार करेंगे ताकि आने वाली व्यवहारिक समस्याओं से शासन को अवगत कराया जा सके।