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बीआरडी मेडिकल कॉलेज में शुरू हुई Coronavirus मरीजों की डायलिसिस Gorakhpur News

कॉलेज प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार ने बताया कि यूनिट लग जाने से डायलिसिस को लेकर आ रही समस्या का समाधान हो गया। प्रतिदिन जरूरतमंदों की डायलिसिस की जा रही है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Mon, 03 Aug 2020 05:09 PM (IST)Updated: Mon, 03 Aug 2020 05:09 PM (IST)
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में शुरू हुई Coronavirus मरीजों की डायलिसिस Gorakhpur News
बीआरडी मेडिकल कॉलेज में शुरू हुई Coronavirus मरीजों की डायलिसिस Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना मरीजों को जरूरत पडऩे पर डायलिसिस के लिए भटकना नही पड़ेगा। बीआरडी मेडिकल कॉलेज में ऐसे मरीजों के लिए तीन डायलिसिस मशीन की एक यूनिट लगाई गई है। इन मशीनों से हर दिन तीन डायलिसिस की जा रही है। अबतक नौ कोरोना संक्रमितों की डायलिसिस इस यूनिट में की जा चुकी है। अगर जरूरत पड़ी तो मेडिकल कालेज प्रशासन यूनिट में और मशीनें लगाएगा।

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कॉलेज प्रशासन ने संक्रमितों के लिए लगाई अलग डायलिसिस यूनिट

मेडिकल कॉलेज में लेवल-टू और थ्री के मरीज भर्ती हो रहे हैं। लेवल-टू के 140 बेड और लेवल थ्री के 40 बेड सुनिश्चित हैं। यह बेड बीते एक महीने से लगातार फुल चल रहे हैं। बहुत से मरीजों को डायलिसिस की जरूरत होती थी लेकिन संक्रमण की वजह से ऐसा किया जाना संभव नहीं हो पा रहा था। ऐसे में कॉलेज प्रशासन ने कोरोना मरीजों के लिए अगल से यूनिट लगाने का फैसला किया। कॉलेज प्राचार्य डॉ. गणेश कुमार ने बताया कि यूनिट लग जाने से डायलिसिस को लेकर आ रही समस्या का समाधान हो गया। प्रतिदिन जरूरतमंदों की डायलिसिस की जा रही है।

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण में निजी अस्पताल लापरवाह

बायो मेडिकल वेस्ट के खतरों को डॉक्टर से अधिक कौन जान सकता है। लेकिन, इसके निस्तारण में यह समूह पूरी तरह लापरवाह है। इंसीनरेटर तो किसी भी सरकारी या गैर सरकारी अस्पताल में लगा ही नहीं है। इसके अलावा तीन रंग के डिब्बों में अलग-अलग बायो मेडिकल वेस्ट रखने का नियम है। इसे नजरअंदाज कर एक ही डिब्बे में हर तरह के कचरे डाले जा रहे हैं। तीन वर्षों में 110 अस्पतालों को इसके लिए नोटिस दिया गया और 48 अस्पतालों पर सीलबंदी की कार्रवाई हुई। बावजूद इसके अस्पतालों ने इस दिशा में कोई ठोस कदम नहीं उठाया।

क्या है नियम

हर अस्पताल में तीन रंग- लाल, पीला व नीला डिब्बा रखना है। बायो मेडिकल वेस्ट को अलग-अलग कर इन डिब्बों में डालना होता है। लाल रंग के डिब्बे में प्लास्टिक मटेरियल, पीले रंग के डिब्बे में मवादयुक्त पट्टी आदि व नीले रंग के डिब्बे में नुकीली चीेजें, इंजेक्शन आदि को रखना है। बहुत कम अस्पतालों में इसका पालन होता है। अधिकांश में तो केवल एक डिब्बा रखा है, उसी में सारे कचरे डाले जाते हैं।

निस्तारण के लिए काम करती हैं एजेंसियां

बायो मेडिकल वेस्ट के निस्तारण के लिए यहां किसी अस्पताल में इंसीनरेटर नहीं है। एक सुल्तानपुर व एक संतकबीर नगर की एजेंसी यहां काम करती है। उनके कर्मचारी हर अस्पताल से बायो मेडिकल वेस्ट उठाते हैं और निर्धारित स्थानों पर उसका निस्तारण कर देते हैं। अपर मुख्य चिकित्साधिकारी डॉ. एनके पांडेय का कहना है कि इंसीनरेटर की व्यवस्था हर जगह नहीं होती। सुल्तानपुर व संतकबीर नगर की एजेंसियां यहां से बायो मेडिकल वेस्ट उठाती हैं और अपने-अपने इंसीनरेटर में उनका निस्तारण करती हैं। समय-समय पर जांच की जाती है। जहां कमियां मिलती हैं, उन पर कार्रवाई की जाती है।


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