कुल्हड़ में चाय की चुस्की से बदल रही कुम्हारों की किस्मत Gorakhpur News
दिन-प्रतिदिन बट्टे में चाय देने वाले दुकानदारों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही मांग भी। केवल बट्टे की आपूर्ति कर कुम्हार न्यनूतम 500 रुपये तक कमा लेते हैं। इस बदलाव ने उनके जीवन में खुशी ला दी है।
उमेश पाठक, गोरखपुर। राजेश कूड़ाघाट स्थित चाय की दुकान पर एक चाय का आर्डर दिया। जैसे ही दुकानदार कागज के गिलास में चाय निकालने लगा, उन्होंने बट्टे (कुल्हड़) के बारे में पूछा। दुकानदार का 'न' में जवाब सुनकर राजेश वहां से यह कहते चल दिए कि 'चाय का असली स्वाद तो बट्टे में ही आता है।' यदि आप चाय पीते हैं तो इस तरह का उदाहरण आपको शहर के हर कोने में मिल जाएगा। स्वाद ही है कि लोग बट्टे में चाय से समझौता नहीं कर रहे और उसकी भरपूर कीमत देने से भी उन्हें गुरेज नहीं। बट्टे वाली चाय की चुस्की स्वाद बढ़ाने के साथ कुम्हारों की किस्मत भी बदल रही है। मांग बढ़ने के कारण कुम्हारों की आय बढ़ी तो जीवनशैली भी बदलने लगी है।
परंपरागत पेशे के सहारे कभी कुम्हारों का जीवन संघर्षपूर्ण बना हुआ था। पर, इस सरकार में गठित माटी कला बोर्ड ने उनके लिए काम करना शुरू किया। मिट्टी से बने उत्पादों के प्रयोग की अपील मुख्यमंत्री भी कर चुके हैं और इस दिशा में बदलाव भी नजर आ रहा है। लोगों ने प्रयोग करना शुरू किया तो उन्हें अंतर भी नजर आने लगा है। दिन-प्रतिदिन बट्टे में चाय देने वाले दुकानदारों की संख्या बढ़ती जा रही है और इसके साथ ही मांग भी। केवल बट्टे की आपूर्ति कर कुम्हार न्यनूतम 500 रुपये तक कमा लेते हैं। इस बदलाव ने उनके जीवन में खुशी ला दी है और खुलकर इसे स्वीकार भी कर रहे हैं।
सरकारी सहायता से बढ़ा उत्पादन
हाथ से चाक चलाकर बड़े पैमाने पर उत्पादन नहीं हो पाता था लेकिन माटी कला बोर्ड की ओर से दिए गए इलेक्ट्रिक चाक से उत्पादन बढ़ गया है। बक्शीपुर के एक मोहल्ले में कुम्हारों का करीब 15 परिवार रहता है। प्रतिदिन यहां से 20 से 25 हजार बट्टे की आपूर्ति की जाती है। माटी कला से जुड़े अवधेश प्रजापति बताते हैं कि बट्टे की खूब मांग है और लगातार बढ़ रही है। इस समय लगन में भी दूध के लिए गिलास, कुल्फी एवं चाय के लिए कटोरी बनाने में व्यस्त होने के कारण बट्टे की आपूर्ति कुछ प्रभावित है। मांग पूरी नहीं कर पा रहे। रेलवे स्टेशन रोड पर चाय की दुकान लगाने वाले संजय का कहना है कि यहां आने वाले ग्राहकों की शर्त बट्टे में चाय पीने की होती है। बट्टे से गंदगी भी नहीं होती। इस समय आपूर्ति पूरी नहीं मिल पा रही।
कागज के गिलास की कम हो रही खपत
बट्टे की मांग बढ़ने के कारण शहर क्षेत्र में कागज के छोटे गिलास की मांग घटने लगी है। डिस्पोजल आइटम के कारोबारी एवं गोरखपुर डिस्पोजल एसोसिएशन के महामंत्री विशाल गुप्ता कहते हैं कि शहर क्षेत्र में कागज के छोटे गिलास की मांग कम हुई है। ग्रामीण क्षेत्रों में मांग अभी बनी है।