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आस्था व वैज्ञानिक सोच से बढ़ी मिट्टी के दीयों की मांग

दीपों के पर्व दीपावली पर भले ही रंगीन सतरंगी बल्बों व झालरों से गांव व नगर के भवन रोशनी से चकाचौंध रहते हों पर मिट्टी के बने दीयों से इस पर्व को मनाने का एक अलग महत्व है। पर विगत बीस वर्षों से चाइनीज झालरों व रोशनी के अन्य संसाधनों ने इसपर ग्रहण लगा दिया।

By JagranEdited By: Published: Fri, 22 Oct 2021 06:15 AM (IST)Updated: Fri, 22 Oct 2021 06:15 AM (IST)
आस्था व वैज्ञानिक सोच से बढ़ी मिट्टी के दीयों की मांग
आस्था व वैज्ञानिक सोच से बढ़ी मिट्टी के दीयों की मांग

सिद्धार्थनगर : दीपों के पर्व दीपावली पर भले ही रंगीन सतरंगी बल्बों व झालरों से गांव व नगर के भवन रोशनी से चकाचौंध रहते हों, पर मिट्टी के बने दीयों से इस पर्व को मनाने का एक अलग महत्व है। पर विगत बीस वर्षों से चाइनीज झालरों व रोशनी के अन्य संसाधनों ने इसपर ग्रहण लगा दिया।

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बीते तीन वर्षों में इसकी मांग फिर बढ़ी हैं। इसका सबसे बड़ा कारण आस्था व वैज्ञानिक सोच के साथ कुम्हारों की रोजी के प्रति लोगों का जागरूक होना है। बदलती सोच ने प्रकाश के आधुनिक साधनों से दूरी बनाना शुरू कर दिया है। जिससे दीपावली के मौके पर गांव व शहर के मकान मिट्टी के दीयों से फिर रोशन होने लगे हैं। इस पुरातन परंपरा के जीवित हो जाने से काफी आशान्वित कुम्हारों ने एक बार फिर अपनी चाक को तेज गति देने लगे हैं। खेसरहा व मिठवल विकास क्षेत्र के मसैची, मसैचा, हर्रैया, कड़सरा, सेमरहनी, तेनुई आदि इलाकों में कुम्हारों ने भारी मात्रा दीयों का निर्माण शुरू कर दिया है। रामरूप ने कहा कि डेढ़ वर्ष से कोरोना के कारण दीपावली खाली रही। लाकडाउन हटने के बाद जब बाजार शुरु हुई तो 50 से 60 रुपये में सैकड़ा की दर से दीयों की बिक्री कर कुछ व्यवसाय शुरु हुआ, हम लोगों को अच्छा मुनाफा दीपावली में ही होता है।

मनिराम का कहना है कि मोमबत्ती और झालरों ने हमारी रोजी को छीन लिया था। आज से बीस साल वर्ष पहले हम लोग दीया बेच कर अच्छी रकम तैयार कर लेते थे। जिससे पूरे परिवार का खर्च पूरे वर्ष चल जाता था। अब इधर 70 से 80 रुपये सैकडे़ की दर से बेच रहे हैं। रामानंद ने कहा कि चायनीज विद्युत उपकरणों के कारण ग्रामीण क्षेत्रों के साथ नगरों में भी दीयों की मांग काफी गिरी है। अब धीरे धीरे लोग फिर पुरानी परंपरा के तहत मिट्टी के दीयों का ही प्रयोग अधिकतर कर रहे हैं। इस पर्व पर बीस हजार से अधिक दीया बनाया जाएगा। रामरंग ने कहा कि गांव के बगल ताल से गर्मी में मिट्टी निकाल इक्कठा कर लेते हैं। जो इस समय काम आता है। तीन वर्ष से दीपावली पर अच्छी कमाई हो रही है। पर्व के बाद भी मिट्टी की मटकी, कोसा , परई, हांडी की मांग रहती है। जिससे प्रतिदिन का खर्च निकल जा रहा है।


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