विकास भवन परिसर में दीपावली सरस मेले में पहले दिन 62.50 हजार की बिक्री Gorakhpur News
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्देश्य से मेला का आयोजन किया गया। ग्रामीण परिवेश से जुड़ी महिलाएं स्टाल पर न सिर्फ अपने हाथ से बने उत्पादों का प्रदर्शन कर रही हैं बल्कि उनकी विशेषताएं भी बता रही हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। विकास भवन परिसर में लगे दीपावली सरस मेले में नारी सशक्तिकरण की तस्वीर दिखी। 22 स्वयं सहायता समूहों की महिलाओं ने अपने हाथ से बनाए उत्पादों की बिक्री के लिए स्टाल लगाए। पहली बार लगे मेले में देर शाम तक 62500 रुपये के सामने बिक भी गए। बुधवार को मेला का आखिरी दिन है। हालांकि, प्रशासन ने तय किया है कि यदि बिक्री अ'छी रहेगी तो गुरुवार दोपहर तक के लिए इसे बढ़ाया भी जा सकता है।
महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए हुआ आयोजन
राष्ट्रीय ग्रामीण आजीविका मिशन के तहत महिलाओं को आत्मनिर्भर बनाने के लिए उद्देश्य से मेला का आयोजन किया गया। ग्रामीण परिवेश से जुड़ी महिलाएं स्टाल पर न सिर्फ अपने हाथ से बने उत्पादों का प्रदर्शन कर रही हैं, बल्कि उनकी विशेषताएं भी बता रही हैं। मेला में हाथ से बने सस्ते और अ'छे उत्पाद हैं। इनमें टेराकोटा, झालर, टेडी बियर, एलईडी बल्ब, स्वेटर, फोटो फ्रेम, अचार, गुलदस्ता, दीया, मोमबत्ती, आटा, बैग, फिनायल, गाय के गोबर से बनी धूपबत्ती, तुलसी अर्क, अगरबत्ती, मोमबत्ती, डिजाइनर मोमबत्ती आदि शामिल हैं।
सीडीओ ने किया उद्घाटन
मुख्य विकास अधिकारी (सीडीओ) इंद्रजीत सिंह ने मेला का शुभारंभ किया। स्टालों पर जाकर महिलाओं से बात की और उत्पादों की जानकारी ली। इस दौरान सचिन कुमार आदि मौजूद रहे। सेवा भारती मातृ मंडल की मधु राठौर का कहना है कि महिलाओं ने बहुत मेहनत कर अपने हाथ से उत्पाद तैयार किए हैं। इन्हें प्रोत्साहित करना सभी की जिम्मेदारी है। इंद्रावती देवी का कहना है कि गांव में मशीन लगाकर अगरबत्ती, मोमबत्ती आदि बनाती हूं। समूह में अब महिलाओं की संख्या बढ़ रही है। सरकार के सहयोग से उत्पाद के लिए बाजार भी मिल रहा है। किरन ने कहा कि हमारे हाथ से बनी रंगोली एक साल बाद भी खराब नहीं होती है। संगमरमर के पत्थर को हथौड़ी से फोडऩे के बाद बारीकपीसते हैं। इसमें रंग मिलाकर शानदार रंगोली तैयार करते हैं। अमरावती कहती हैं कि डिजाइनर दीपक में मोमबत्ती के साथ ही कई उत्पाद बना रहे हैं। सबका सहयोग मिला तो जो सामान कभी बाजार से खरीदते थे, अब खुद बनाकर बेचने लगे हैं।