कसौटी - सिंगल रोड पर बना होटल और हुक्मरानों की होशियारी Gorakhpur News
पढ़ें गोरखपुर से उमेश पाठक का साप्ताहिक कॉलम- कसौटी..
गोरखपुर, जेएनएन। शहर में विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग के कुछ कर्मचारियों की होशियारी चर्चा में है। नियोजित विकास के नियमों की अनदेखी कर निर्मित एक होटल इन कर्मचारियों के लिए सिरदर्द बन गया। एक गाड़ी जाने पर जाम हो जाने वाली गली में बने इस होटल के निर्माण पर सभी आश्चर्यचकित थे। जो भी उधर से गुजरता, इस बात की चर्चा जरूर करता। जबतक कोई खिलाफ खड़ा नहीं हुआ था, होटल चल रहा था। पर, उससे जुड़े एक व्यक्ति को जब बाहर का रास्ता दिखा दिया तो होटल की भी उल्टी गिनती शुरू हो गई। गलती न देखने वाले कर्मचारियों को लगातार शिकायत के बाद नजर टेढ़ी करनी पड़ी। टीम गई और सीलबंदी की खानापूरी कर लौट आई। पर, शिकायतकर्ता ने यह होशियारी चलने नहीं दी और बात बड़े साहब के कानों तक पहुंचा दी। आनन-फानन में एक बार फिर टीम को निकलकर पूरे होटल को सील करना पड़ा।
लोकतंत्र है भाई, सब चलता है
शहर की रूपरेखा बनाने वाले विभाग से जुड़े एक कर्मचारी बुधवार की शाम से सुर्खियों में हैं। नियमों की ऐसी-तैसी करने के मामले में विभागीय कार्रवाई की जद में आए इस कर्मचारी ने अपनी ताकत दिखाई है। विभाग के कर्मचारियों की रहनुमाई करने वालों का बुधवार को चुनाव किया गया। सबसे बड़े पद पर उसने भी अपनी भागीदारी सुनिश्चत की। कई दिनों तक साथी कर्मचारियों के बीच समर्थन जुटाया। गंभीर आरोपों में कार्रवाई झेल रहे इस कर्मचारी की बातें सबको समझ में आईं और उसने जीत हासिल करने में कामयाबी पाई। विभागीय कार्रवाई के अलावा कुछ दिन पहले उन्हें बाहर भी अपने एक एक्शन का रिएक्शन झेलना पड़ा था। रिएक्शन के सबूत उनके शरीर के बाहरी हिस्सों पर साफ नजर आते हैं। जिन अधिकारियों ने उनपर कार्रवाई की थी, उन्होंने ही शुभकामनाएं भी दीं। पूरे घटनाक्रम पर लोगों ने बस इतना कहा कि 'लोकतंत्र है भाई, यहां सब चलता है।'
जीत से पहले मना लिया जश्न
शहर के विकास की रूपरेखा तय करने वाले विभाग में बुधवार को खूब चहल-पहल रही। यहां कर्मचारियों की रहनुमाई कौन करेगा, इस बात का फैसला करने के लिए मताधिकार के प्रयोग का दौर चल रहा था। जिन पदों पर आपसी सहमति नहीं बन पाई थी, उनपर आमने-सामने मुकाबला जारी था। ऊपर से दूसरे नंबर पर आने वाले पद के लिए तीन दावेदारों में जोर-आजमाइश हो रही थी। अपने-अपने तरीके से मतदाताओं को लुभाने में दावेदार जुटे थे। इनमें एक ऐसा दावेदार था, जिसने जीत से पहले ही खुशी का इजहार कर लिया। लड़खड़ाते पैरों पर वह कर्मचारियों को रहनुमाई का भरोसा देता नजर आया। अपने समर्थन में कुछ कहने को वह मुंह खोलता तो सामने खड़ा कर्मचारी जल्दी से छुटकारा पाने के रास्ते तलाशने लगता। उसके प्रचार का स्टाइल जल्दी ही पूरे विभाग में प्रचारित हो गया और वोट देने जाने से पहले कर्मचारी उससे बचने का उपाय खोज लेते।
अपनी गलती भी तो सुधारें साहब
बिजली निगम शहरी क्षेत्र के उपभोक्ताओं के घर स्मार्ट मीटर लगा रहा है। स्मार्ट मीटर के बाद आने वाला पहला बिल देखकर उपभोक्ताओं के होश उड़ जा रहे हैं। प्रतिमाह ईमानदारी से बिल जमा करने वाले लोगों के पास भी वर्षों पुराना एरियर जोड़कर बिल पहुंच रहा है। इससे परेशान उपभोक्ता बिजली निगम के कार्यालय पहुंचते हैं तो उन्हें उनकी गलती का एहसास कराया जाता है। पर, निगम के साहबों को अपने कर्मचारियों की गलती नजर नहीं आती। उपभोक्ता को बताया जाता है कि रीडिंग स्टोर हो गई थी, जिसका बिल अब आया है। पर, यह नहीं बताते कि यह उनके मीटर रीडर की गलती से हुआ है। निगम के साहब मीटर रीडर की गलती स्वीकार कर भी लेते हैं तो उसे सुधारने का प्रयास नहीं किया जाता। उपभोक्ताओं पर गलती थोपने से बेहतर है कि उन्हें राहत देने के लिए मीटर रीडर की गलती सुधारने पर ध्यान दिया जाए।