इतराओ मत, हम भी करते हैं मुर्दों का इलाज...
गोरखपुर शहर का मिजाज जानने के लिए पढ़ें दैनिक के सीनियर रिपोर्टर जितेन्द्र पांडेय का साप्ताहिक कालम चौपाल। गोरखपुर शहर में पर्दे के पीछे पक रही हर छोटी बड़ी पर खास अंदाज में जितेंद्र पांडेय की नजर से यहां देखें..
गोरखपुर, जितेन्द्र पाण्डेय। डाक्टर साहब का अस्पताल भले बंद हो गया, लेकिन मुर्दों के उपचार के लिए वह मशहूर हो गए। लोग उन्हें ढूंढ रहे हैं कि मिल जाते तो पिताजी की आखिरी इच्छा जान लेते। अपनी शांति काकी तो इसी में परेशान रही कि मरते वक्त सास ने गहनों की पोटली कहां छिपा दी। डाक्टर साहब 10 मिनट के लिए ही सास को जिंदा कर देते तो काम बन जाता। अपने सरकारी अस्पताल वाले डाक्टर साहब को इससे बहुत जलन थी। दूसरे की उपलब्धि देखी न जा रही थी। पखवारे भर पूर्व सरकारी अस्पताल में पुलिस वाले एक डेड बाडी लेकर पहुंच गए। डाक्टर साहब ने उसे छूते ब्राट डेड पर्चे पर लिख दिया। बाद में 25 मिनट तक मुर्दे का इलाज किया। डाक्टर साहब को पता ही नहीं था कि मामला इतना महंगा पड़ेगा। तीन बार कानपुर वाले साहब बुला चुके हैं। पूछ रहे हैं- डाक्टर साहब यह चमत्कार कैसे हुआ।
एक तो कट्टा लाएं दूजे पता भी बताएं
अपने चंदू चाचा पुलिस की नौकरी से ऊब चुके हैं। दो दिन पहले ही मुलाकात हुई तो बोले ऐसा ही चलता रहा तो एक दिन जहर खाना पड़ेगा। जोन वाले साहब कहते हैं कि आपरेशन तमंचा चलाओ और मंडल वाले कहते हैं कि असलहे का पता बताओ। मैंने चाचा से कहा, बता क्यों नहीं देते। चाचा ने कहा कि पता बताउंगा तो अगले ही दिन जेल में नजर आऊंगा। चार-चार हजार रुपये का एक-एक कट्टा खरीदता हूं। कट्टा लगाने पर ही बदमाश को सजा मिलती है। कच्ची दारू भी मुफ्त में नहीं मिलती है। किसी का कच्ची के साथ चालान करना होता है तो पहले दारू खरीदनी पड़ती है। उसके बाद चालान करना पड़ता है। अब ऐसे में कट्टे का पता कहां से बताऊं, जब खरीददार मैं ही हूं। बिना असलहे के बदमाश पकड़ूं तो जिले वाले साहब नाराज। समस्या यह है कि नौकरी करूं या जेल जाऊं।
जेल में बांट लो अपनी-अपनी चौकियां
पूरी जिंदगी चोरी बेइमानी की कमाई खाने वाला एक इंस्पेक्टर हत्या के मामले में जेल पहुंच गया। जेल में पहली रात बड़ी मुश्किल से कटी, लेकिन दो ही दिन बाद उसके थाने के दो दारोगा, एक हेड कांस्टेबल व कांस्टेबल भी जेल में पहुंच गए। जेल पहुुंचने के बाद सिपाही अपनी किस्मत को कोस रहा था, यह कहां पहुंच गए, लेकिन साथियों को देखते ही इंस्पेक्टर की आंखों में चमक पैदा हो गई। उसने अपने साथियों से कहा कि घबराने की जरूरत नहीं है। जेल में बहुत माल है। सभी अपनी-अपनी चौकियां बांट लो। यह नेहरू भवन से बगल वाला इलाका तुम देखोगे और मोटे कैदियों से हर माह पांच-पांच सौ रुपये महीना लेना है। लूट, हत्या वालों का अलग हिसाब करना है। सिपाही ने समझाया कि इसी करनी से यहां तक पहुंचे हो। अब तो सुधर जाओ। इंस्पेक्टर बोला- उम्मीद कभी मत छोड़ो और प्रैक्टिस जारी रखो।