बतकही- सूत्रों ने दे दिया धोखा, उतर गया दारोगा जी का चेहरा Gorakhpur News
पढ़ें- गोरखपुर से सतीश कुमार पांडेय का साप्ताहिक कॉलम बतकही...
गोरखपुर, जेएनएन। शहर के थाने पर तैनात एक दारोगा जी की खुशी ऐसे छलक रही थी, जैसे उबलता हुआ दूध। थानेदारी मिलने की प्रबल संभावना जताते हुए उन्होंने दोस्तों को चाय पिलाई और मिठाई भी खिलाई। चार दिन पहले जब आदेश जारी हुआ तो, मानो दूध के उबलने से चूल्हा ही बूझ गया। असल में कुछ दिन पहले की खबर ये थी कि खाली चल रहे दक्षिणांचल के मलाईदार थाने के थानेदार का जल्द ही चयन हो जाएगा। कई नामों पर विचार हो रहा था। कैंप कार्यालय के सूत्रों ने दारोगा जी को बताया कि रेस में उनका नाम सबसे आगे है। सभी की सहमति भी बन गई है, केवल हस्ताक्षर होना शेष है। इच्छा के विपरीत परिणाम आने के बाद दारोगा जी बहुत उदास हैं और कैंप कार्यालय के सूत्रों को कोस रहे हैं। कुछ दिनों से थाने के एक कोने में चुपचाप ऐसे बैठते हैं, जैसे कैकेयी कोप भवन में।
साहब बहुत फेंकते हैं
लंबे समय तक कोतवाल रहे एक पुलिस अधिकारी खुद को जिले का सर्वश्रेष्ठ विवेचक और कानून का जानकार बताते हैं। अवसर मिलते ही अतीत में हुई किसी घटना का वृतांत सुनाते हैं और बताते हैं कि उस दौर में केस को कैसे सुलझा दिया, जब न तो सर्विलांस था और न ही सीसी कैमरा। कुछ दिन पहले साहब के क्षेत्र में घटना हो गई। मौके पर पहुंचते ही उन्होंने जासूसी अंदाज में छानबीन शुरू की। अधिकारियों को बता दिया, सबकुछ क्लियर हो गया है। जल्द ही आरोपित पकड़ लिए जाएंगे। उनका कांफिडेंस देख अधिकारियों ने भरोसा कर लिया। 10 दिन बाद भी घटना तो नहीं खुली लेकिन साहब की पोल जरूर खुल गई। मातहतों ने भी चर्चा शुरू कर दी है कि साहब बहुत फेंकते हैं। कुछ दिन पहले हुई एक चर्चित घटना में भी वह गच्चा खा गए थे। अपने साथ ही उन्होंने अधिकारियों की भी किरकिरी करा दी।
थानेदार को हटा दीजिए
'कप्तान साहब पुराने वाले थानेदार को भेज दीजिए। वह फरियादियों की पीड़ा सुनते और समाधान कराते थे लेकिन नए वाले तो सीधे मुंह बात ही नहीं करते।Ó बिना सिफारिश कराए किसी की बात नहीं सुनते। मामला चाहे कितना ही गंभीर क्यों न हो, उसे गंभीरता से नहीं लेते। चौरीचौरा सर्किल के एक थानेदार के खिलाफ फरियादी की यह बात सुनकर कप्तान साहब और कक्ष में बैठे पुलिस अधिकारी चौंक गए। यह लाजिमी भी था, क्योंकि थाने के पुराने वाले साहब इसलिए हटे थे कि वह जनप्रतिनिधियों की बात को तवज्जो नहीं देते थे। शिकायत के बाद कई जनप्रतिनिधियों के चहेते इन नए साहब को थाने पर तैनात किया गया लेकिन ये जनता की नहीं सुन रहे हैं। जनता के बीच अच्छी छवि न होने की खबर के बाद नए साहब को होली बाद कुर्सी खिसकने का डर सताने लगा है। इस समय वह अपनी छवि ठीक करने में जुटे हैं।
संवेदनहीनता से चली गई जान
बात वर्दी वाले महकमे के एक संवेदनहीन साहब की हो रही है। आमतौर पर घूसखोरों को पकड़कर कॉलर टाइट करने वाले इस विंग के नए मुखिया की करतूत ने विभाग और वहां के सभी कर्मचारियों को अचंभित कर दिया है। विभाग से सेवानिवृत्त एक मातहत गंभीर रोग से पीडि़त होने के चलते अपना इलाज करा रहे थे। विभाग से उन्हें सहायता राशि भी मिलती थी। इस बार रिटायर कर्मचारी की दवा क्षतिपूर्ति की फाइल सभी औपचारिकताओं को पूरी करती हुई स्वास्थ्य विभाग से मंजूर होकर आ गई, लेकिन विभाग में आए नए साहब ने अपनी चिडिय़ा उस पर नहीं बैठाई। साहब की इस मनमानी के चलते दवा और इलाज वक्त पर नहीं मिला, जिससे मातहत की जान चली गई। विभाग में चर्चा है कि साहब न जाने किस लालच में इतने कठोर हो गए कि अपने ही एक सेवानिवृत्त मातहत की जान लेने में उन्हें जरा भी तरस नहीं आया।