Good News: धन के अभाव में नहीं थमेगी लोकवाद्यों की गूंज, संस्कृति विभाग करेगा मदद- यहां करें आवेदन
वाद्य यंत्रों को खरीदने के लिए संस्कृति विभाग कलाकारों को धन देगा। विभाग द्वारा यह योजना लुप्त हो रहे लोकवाद्यों के संरक्षण के लिए तैयार की गई है। इस योजना का लाभ लेने के लिए 15 अक्टूबर से आवेदन कर सकते हैं।
गोरखपुर, डॉ. राकेश राय। लोक संस्कृति के संरक्षण और संवर्द्धन के लिए किए जा रहे प्रयास के क्रम में संस्कृति विभाग ने लोकवाद्यों और उनके कलाकारों के संरक्षण की योजना बनाई है। विभाग ऐसे कलाकारों को वाद्ययंत्रों की खरीद में आर्थिक मदद करने जा रहा है, जो आर्थिक दिक्कत की वजह से नया वाद्ययंत्र नहीं खरीद पा रहे और इस वजह से अपनी कला से दूर होते जा रहे।
कलाकारों को प्रोत्साहित करना है संस्कृति विभाग का मकसद
संस्कृति विभाग ने अपनी इस योजना को लोक कलाकार वाद्ययंत्र क्रय योजना नाम दिया है। इस पहल के पीछे विभाग का मकसद बदलते परिवेश में भी लोक कलाकारों को अपनी कला के प्रदर्शन के लिए प्रोत्साहित करना है। क्षेत्रीय संस्कृति विभाग और लोककला संरक्षक इस मकसद को पूरा करने में जुट गए हैं। वह कलाकारों की सूची बनाकर योजना का लाभ उठाने के लिए उन्हें प्रेरित कर रहे हैं। योजना का लाभ उन कलाकारों को मिलेगा, जो कम से कम बीते पांच वर्ष से लोकवाद्य बजा रहे हैं और सांस्कृतिक विभाग के कार्यक्रम में अपनी कला की प्रस्तुति दे रहे हैं।
कलाकारों के खाते में उपलब्ध कराई जाएगी रकम
संस्कृति विभाग की ई-डायरेक्ट्री में पंजीकरण भी योजना से लाभान्वित होने की अनिवार्य अर्हता है। वाद्ययंत्रों की अनुदान राशि कलाकारों के खाते में उपलब्ध कराई जाएगी। उन्हें अपने वाद्य का एस्टीमेट देना होगा। अनुदान मिलने के 15 दिन के अंदर कलाकार को वाद्य खरीद लेना होगा और उसका साक्ष्य संस्कृति विभाग को देना होगा। संस्कृति विभाग का सहयोग यहीं नहीं थमेगा, अनुदान से वाद्ययंत्र लेने वाले कलाकार को विभाग अपने आगामी आयोजनों में प्रस्तुति का अवसर देगा।
15 अक्टूबर तक कर सकते हैं आवेदन
लोकवाद्य कलाकार वाद्ययंत्र क्रय योजना का लाभ उठाने के लिए संस्कृति विभाग की वेबसाइट http://upculture.up.nic.in 15 अक्टूबर तक आवेदन कर सकते हैं। जो कलाकार इस तरह की किसी योजना का लाभ पहले ले चुके हैं, वह इसके पात्र नहीं होंगे।
पूर्वांचल के दुर्लभ व लुप्त हो रहे लोकवाद्य
नगाड़ा, ढोलक, मृदंग , खजड़ी, ताशा, सिंद्या, सारंगी, इकतारा, करताल, कसावर, शहनाई, बांसुरी, झाल, झांझ, मजीरा, जोड़ी, चंग, ढपली, ढपली, शंख, घुंघरू आदि।
कलाकारों को योजना की जानकारी दे रहे हरि प्रसाद
लोककला संरक्षक हरि प्रसाद सिंह योजना से काफी उत्साहित हैं। वह लोकवाद्य कालाकारों सूची बनाकर उन्हें योजना का लाभ उठाने के लिए प्रेरित कर रहे हैं। ग्रामीण कलाकारों को आनलाइन आवेदन में मदद भी कर रहे। उनका कहना है कि कई ऐसे कलाकार हैं, जिनके वाद्ययंत्र पुराने हो गए हैं और वह उसे दोबारा खरीद पाने में आर्थिक रूप से सक्षम नहीं हैं। उनकी लोककला को जीवित रखने के लिए यह योजना वरदान साबित होगी।
क्या कहते हैं अधिकारी
गोरखपुर संस्कृति विभाग के नोडल अधिकारी डॉ. मनोज कुमार गौतम ने बताया कि लोक विरासतों को संरक्षित करने के लिए विभाग ने यह योजना चलाई है। पूरी कोशिश है कि अधिक से अधिक जरूरतमंद और पात्र वाद्ययंत्र कलाकार को इसका लाभ मिले।