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कुलाधिपति सक्रिय, कोर्ट पुनर्गठन पर सुस्त है गोरखपुर विश्वविद्यालय

यह कोर्ट विश्वविद्यालय की नीतियों में सुधार की समीक्षा करती है। कुछ नए सुझाव भी देती है। साल भर से अभ ी तक कोई बैठक तक नहीं हुई।

By JagranEdited By: Published: Sat, 10 Nov 2018 06:30 PM (IST)Updated: Sat, 10 Nov 2018 06:30 PM (IST)
कुलाधिपति सक्रिय, कोर्ट पुनर्गठन पर सुस्त है गोरखपुर विश्वविद्यालय
कुलाधिपति सक्रिय, कोर्ट पुनर्गठन पर सुस्त है गोरखपुर विश्वविद्यालय

गोरखपुर, (जेएनएन)। दीनदयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यालय में कोर्ट के पुनर्गठन की आस धूमिल हो रही है। अर्से से निष्क्रिय इस निकाय को पुनर्जीवित करने की कोशिश के साथ कुलाधिपति ने दो सदस्यों को नामित भले ही कर दिया, लेकिन इसे लेकर विश्वविद्यालय स्तर पर उदासीनता जारी है।

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कुलाधिपति ने प्रदेश के सभी राज्य विश्वविद्यालयों की कोर्ट के लिए विधान परिषद सदस्यों को सदस्य नामित किया है। गोरखपुर विश्वविद्यालय में देवेंद्र प्रताप सिंह और राम सुंदर दास निषाद को कोर्ट सदस्य नामित किया गया। ऐसे में आस जगी कि यह निकाय एक बार फिर सक्रिय होगा, लेकिन विवि स्तर पर सुस्ती ही छाई रही। कोर्ट के चुनाव को लेकर उपेक्षा का आलम इसी से समझा जा सकता है कि वर्ष 2017 में कुलपति ने इस बाबत चार प्रोफेसरों की एक कमेटी गठित की थी, लेकिन गठन के बाद से कभी भी इसकी बैठक नहीं हुई। साल भर बाद भी यह कमेटी कागजों में ही मौजूद है।

कोर्ट को लेकर प्रशासनिक उदासीनता का यह आलम नया नहीं है। एक दशक ज्यादा अवधि से कोर्ट निष्क्रिय है। औपचारिक बैठक होना तो दूर नियमानुसार सदस्यों के चुनाव तक नहीं कराए गए। उपेक्षा का यह रवैया महज दशक भर से ही नहीं है। 80 और 90 के दशक में महज एक या दो बार ही यह समिति नियमानुसार क्रियाशील रही। आखिरी बार प्रो. अरुण कुमार के बतौर कुलपति कार्यकाल में कोर्ट की सक्रियता रही थी। उप्र राज्य विश्वविद्यालय अधिनियम के प्रावधानों के अनुसार सभी राज्य विश्वविद्यालयों में कोर्ट गठन की व्यवस्था है। हालाकि इस समिति की उपयोगिता और औचित्य पर कई बार सवाल भी उठते रहे हैं।

गौरव की बात थी कोर्ट की सदस्यता

विश्वविद्यालय कोर्ट का सदस्य होना एक समय में बड़े गौरव की बात थी। ऐसे में चुनाव में जीत हासिल करने के लिए जमकर राजनीति भी होती थी। नियमानुसार चुन कर आए कोर्ट सदस्यों में से चार सदस्य विश्वविद्यालय के सर्वोच्च निकाय कार्यपरिषद के सदस्य होते थे। पूर्व कैबिनेट मंत्री हरिशकर तिवारी, पूर्व विधान परिषद सभापति गणेश शकर पाडेय, वर्तमान सदस्य विधान परिषद देवेंद्र सिंह जैसे लोग समय-समय पर इस महत्वपूर्ण समिति के सदस्य रह चुके हैं।

यह होते हैं कोर्ट सदस्य :

पदेन सदस्य : कुलपति, कार्यपरिषद के सदस्य, वित्त अधिकारी, अध्यापकों के प्रतिनिधि, विश्वविद्यालय एवं संबद्ध कालेजों के सभी विभागाध्यक्ष, सभी छात्रावास प्रोवोस्ट एवं दो वार्डन (चक्रानुक्रम से), संबद्ध वित्तपोषित महाविद्यालयों के प्राचार्य, नियमानुसार चुने गए 15 शिक्षक, संबद्ध महाविद्यालयों के प्रबंध तंत्र के दो प्रतिनिधि (चक्रानुक्रम से), विश्वविद्यालय से स्नातक उपाधि प्राप्त करने वाले पंजीकृत स्नातकों के 15 प्रतिनिधि, सभी संकायों के टॉपर, कुलपति द्वारा नामित एक सदस्य, दो एमएलसी, पाच एमएलए।

अहम सलाहकारी निकाय है कोर्ट :

- विश्वविद्यालय की नीतियों एवं कार्यक्रमों की समीक्षा करना और सुधार एवं विकास के संबंध में सुझाव देना।

- विश्वविद्यालय की वार्षिक रिपोर्ट एवं वार्षिक लेखों तथा उन पर आडिट रिपोर्ट पर विचार करना व संकल्पों को पारित करना।

- समक्ष प्रस्तुत मामलों पर कुलपति को सलाह देना।


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