Coronavirus ने बढ़ाई थैलीसीमिया मरीजों की मुश्किलें, तमाम परेशानियों के बाद हो रहा इलाज Gorakhpur News
यह आनुवांशिक बीमारी है जो माता-पिता से आती है। चेहरा सूखने लगता है। बच्चे की तबीयत अक्सर खराब रहती है। वजन नहीं बढ़ता है। पढ़ें विश्व थैलीसीमिया दिवस पर विशेष रिपोर्ट।
गोरखपुर, जेएनएन। कोरोना के चलते लॉकडाउन से थैलीसीमिया के मरीजों की मुश्किलें बढ़ गई हैं। जिले में लगभग 300 मरीज हैं। इसमें 106 मरीज बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में पंजीकृत हैं। शेष संजय गांधी पोस्ट ग्रेजुएट इंस्टीट्यूट ऑफ मेडिकल साइंसेज (एसजीपीजीआइ), लखनऊ या बनारस जाते हैं। लॉकडाउन के चलते रक्त व दवा के लिए उन्हें निजी या ट्रस्ट के अस्पतालों पर निर्भर रहना पड़ रहा है। इस पर काफी खर्च आ रहा है।
आसानी से नहीं मिल रहा रक्त, रोज खरीदनी पड़ रहीं एक हजार रुपये की दवाएं
जेल बाईपास रोड के सनत कुमार चटर्जी की बेटी थैलीसीमिया से पीडि़त है। उसका इलाज एसजीपीजीआइ, लखनऊ में कराते हैं। कहते हैं, लॉकडाउन में दिक्कतें बढ़ गईं हैं। श्रीगुरु गोरक्षनाथ चिकित्सालय के ब्लड बैंक की मदद से बेटी को रक्त मिल सका, लेकिन रोज एक हजार रुपये की दवा खरीदनी पड़ रही है। महराजगंज निवासी राममिलन की बेटी थैलीसीमिया पीडि़त है। वह भी एसजीपीजीआइ में इलाज कराते हैं। कहते हैं कि वहां आसानी से रक्त मिल जाता है। लॉकडाउन में किसी तरह एसजीपीजीआइ पहुंचे तो बगल में कोरोना वार्ड होने के चलते रक्त चढ़ाने से मना कर दिया गया। वहां एक निजी अस्पताल में कोरोना टेस्ट के बाद रक्त चढ़ सका।
साथ में रक्तदाता ले जाने पर भी हो रही परेशानी
मरीजों की परेशानी यहीं खत्म नहीं होती। उन्हें साथ में रक्तदाता भी ले जाना पड़ रहा है। मरीज, तीमारदार व रक्तदाता की पहले कोरोना जांच होती है। दो दिन बाद रिपोर्ट आती है। निगेटिव होने पर ही रक्त लिया जाता है। किसी मरीज को 15 दिन में तो किसी को 21 दिन में कम से कम दो यूनिट रक्त की जरूरत पड़ती है। इसे लेकर गोरखपुर व आसपास के मरीज व परिजन परेशान हैं। इस बीमारी के प्रति लोगों को जागरूक करने के लिए प्रति वर्ष आठ मई को विश्व थैलीसीमिया दिवस मनाया जाता है।
थैलीसीमिया के कारण व लक्षण
यह आनुवांशिक बीमारी है, जो माता-पिता से आती है। चेहरा सूखने लगता है। बच्चे की तबीयत अक्सर खराब रहती है। वजन नहीं बढ़ता है।
मेडिकल कॉलेज में यहां से आते हैं मरीज
बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज में गोरखपुर-बस्ती मंडल के सात जिलों के अलावा बिहार के सिवान, पश्चिमी चंपारण व बेतिया से मरीज आते हैं। बाल रोग विभाग में इलाज की व्यवस्था है।
क्या है थैलीसीमिया
जिला अस्पताल के फिजीशियन डॉ.राजेश कुमार बताते हैं, यह बच्चों को माता-पिता से मिलने वाला रक्त-रोग है। इस रोग से शरीर में हीमोग्लोबिन निर्माण की प्रक्रिया में दिक्कत आने लगती है, इसलिए बार-बार मरीज को खून चढ़ाना पड़ता है। इसकी पहचान तीन माह की उम्र के बाद ही होती है।
इलाज की पूरी व्यवस्था
बाबा राघव दास मेडिकल कॉलेज के प्राचार्य डा. गणेश कुमार का कहना है कि बाल रोग विभाग में थैलीसीमिया के मरीजों के इलाज की पूरी व्यवस्था है। मरीज के साथ रक्तदाता नहीं है, तो उसे भी रक्त दिया जाता है। लगभग सभी दवाएं उपलब्ध हैं, जो मरीजों को निश्शुल्क दी जाती हैं।
क्या कहते हैं ब्लड बैंक के प्रभारी
बाबा राघव दास मेडिकल कालेज के ब्लड बैंक प्रभारी डा. राजेश कुमार का कहना है कि लॉकडाउन में रजिस्टर्ड के अलावा भी मरीज आए। सभी को रक्त दिया गया। पिछले महीने में कुल 37 यूनिट रक्त केवल थैलीसीमिया मरीजों को दिया गया। सामान्य दिनों में हर माह लगभग 40-50 यूनिट रक्त ऐसे मरीजों को दिया जाता है।