आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए पूरी तरह से वैध है संविधान संशोधन
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यलय के विधि विभाग के पूर्व अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष प्रो. आरके पाठक ने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए किया गया संविधान संशोधन वैध है।
गोरखपुर, जेएनएन। आर्थिक आधार पर आरक्षण के लिए किया गया संविधान संशोधन पूरी तरह से वैध है लेकिन आरक्षण 50 फीसद से अधिक हो सकता है या नहीं, यह बहस का विषय है और इस पर बहस होनी चाहिए। किसी भी दशा में विशेष विधि सामान्य विधि से अधिक नहीं होनी चाहिए। सुप्रीम कोर्ट संविधान संशोधन को ध्यान में रखते हुए इसकी व्याख्या करेगा।
दीन दयाल उपाध्याय गोरखपुर विश्वविद्यलय के विधि विभाग के पूर्व अधिष्ठाता एवं विभागाध्यक्ष प्रो. आरके पाठक ने यह बातें कहीं। दैनिक जागरण कार्यालय में आयोजित अकादमिक बैठक में वह 'आर्थिक आरक्षण से राजनीतिक हित के साथ सामाजिक हित भी सधेंगे? विषय पर विचार व्यक्त कर रहे थे। उन्होंने कहा कि आर्थिक आधार पर आरक्षण को केवल सवर्णों के लिए आरक्षण नहीं कहा जा सकता। यह आर्थिक रूप से पिछड़े सभी लोगों के लिए है। कोई व्यक्ति दो बार आरक्षण का लाभ नहीं ले सकता इसलिए पहले से आरक्षण के दायरे में आ चुके लोग इसका फायदा नहीं ले सकेंगे।
सुप्रीम कोर्ट का कहना है कि संविधान में संशोधन हो सकता है लेकिन संविधान को बदला नहीं जा सकता। आर्थिक आधार पिछड़ेपन का मूल है। जो आर्थिक रूप से कमजोर है, उसे किसी भी हद तक दबाया जा सकता है। इसलिए आर्थिक आधार पर आरक्षण वैध है। उचित होगा कि 50 फीसद आरक्षण आर्थिक आधार पर कर जाति का विभेद हटा दिया जाए। सामाजिक आधार पर अन्य भेदभाव को रोकने के लिए पहले से संविधान में प्रावधान है। योजना आयोग की 2014 की रिपोर्ट के अनुसार अनुसूचित जाति व पिछड़ा वर्ग की जातियां बहुत हद तक सामान्य वर्ग के साथ आ चुकी हैं।