रेलवे कर्मचारी संगठनों के चुनाव पर असमंजस के बादल, रेलवे बोर्ड भी चुप Gorakhpur News
रेलवे बोर्ड ने अगस्त में चुनाव की संभावित तारीख घोषित की थी लेकिन बाद में इसे बदलकर नवंबर कर दिया। नवंबर भी बीत गया। इस पर बोर्ड की चुप्पी ने असमंजस को गहरा दिया है।
गोरखपुर, जेएनएन। रेलवे में मान्यता के लिए होने वाले कर्मचारी संगठनों के चुनाव पर असमंजस बरकरार है। ऐसा कर्मचारी संगठनों में मतभेद और रेलवे बोर्ड की खामोशी के चलते है। कुछ संगठन चुनाव चाहते हैं तो कुछ इसके औचित्य पर ही सवाल खड़ा कर रहे हैं। छह साल पर होने वाले कर्मचारी संगठनों के चुनाव के वर्तमान कार्यकाल की अवधि मई 2019 में पूरी हो चुकी है।
कई कारण सामने आए
कर्मचारी संगठनों की अलग राय और बोर्ड की चुप्पी की दरअसल कई वजहें हैं। रेलवे बोर्ड स्तर पर दो फेडरेशनों नेशनल फेडरेशन आफ इंडियन रेलवे और आल इंडिया रेलवे मेंस फेडरेशन को मान्यता मिलने के बाद सुप्रीम कोर्ट के निर्देश पर 2007 से चुनाव शुरू हुआ। दूसरी बार 2013 में चुनाव हुआ। जोनल स्तर पर संबद्ध कर्मचारी संगठन ही मान्यता प्राप्त फेडरेशनों का प्रतिनिधित्व करते हैं। मान्यता के लिए भारतीय रेलवे मजदूर संघ की दावेदारी के बाद चुनाव को लेकर पेच फंसा है। रेलवे बोर्ड ने अगस्त में चुनाव की संभावित तारीख घोषित की थी, लेकिन बाद में इसे बदलकर नवंबर कर दिया। नवंबर भी बीत गया और तारीखों को लेकर बोर्ड की चुप्पी ने असमंजस को गहरा दिया है।
क्या कहते हैं कर्मचारी नेता
नरमू के संयुक्त महामंत्री नवीन कुमार मिश्र का कहना है कि कर्मचारी संगठन राजनीतिक पार्टी नहीं हैं। ऐसे में चुनाव की आवश्यकता ही नहीं है। चुनाव से कार्य प्रभावित होते हैं और आर्थिक बोझ भी बढ़ता है। पीआरकेएस के संयुक्त महामंत्री एके सिंह का कहना है कि श्रम कानून में मनमाफिक संशोधन के लिए सरकार चुनाव नहीं चाहती। सरकार रेलवे को बेचना चाहती है। भारतीय मजदूर संघ के प्रदेश अध्यक्ष राधेकृष्ण का कहना है कि मजदूर संघ चुनाव के पक्ष में है। मान्यता मिलने के बाद कर्मचारी संगठनों की बात बोर्ड स्तर पर पहुंचती है। एनई रेलवे मेंस कांग्रेस के संरक्षक सुभाष दूबे का कहना है कि सरकार ही नहीं फेडरेशन भी नहीं चाहते है कि चुनाव हो। रेलवे बोर्ड ने शीघ्र चुनाव की तिथि घोषित नहीं की तो कोर्ट जाएंगे।