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अपने घाव पर नमक लगाते थे कमांडर हरिभान ¨सह

आजाद हिंद फौज के कमांडर थे बस्ती जनपद के रहने वाले हरिभान सिंह

By JagranEdited By: Published: Tue, 14 Aug 2018 10:15 AM (IST)Updated: Tue, 14 Aug 2018 10:15 AM (IST)
अपने घाव पर नमक लगाते थे कमांडर हरिभान ¨सह
अपने घाव पर नमक लगाते थे कमांडर हरिभान ¨सह

अनिल ओझा, गोरखपुर

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जंगे आजादी में पूरी जवानी खपा देने वाले बस्ती जनपद के हर्रैया के मुरादीपुर निवासी आजाद ¨हद फौज के कमांडर ठाकुर हरिभान ¨सह की हिम्मत और दिलेरी लोगों को आज भी रोमांचित करती है। परिजनों के अनुसार बचपन में ही उनका विवाह हो गया। एक पुत्र के पैदा होते ही उन पर देश को आजाद कराने का जुनून चढ़ा तो घर छोड़ दिए। क्रांतिकारियों के संपर्क में आए तो देश-विदेश की यात्रा की। आजाद ¨हद फौज में भर्ती हुए तो मांडले, म्यांमार, ¨सगापुर, यंगून व कोलकाता में रहकर नेता जी सुभाष चंद्र बोस के निर्देशों का पालन करने लगे। आजादी की लड़ाई के लिए धन की व्यवस्था करने के लिए ट्रेन डकैती से लगायत थाना फूंकने आदि मामलों को लेकर कई वर्ष तक अंग्रेजों के लिए सरदर्द बने रहे। इस क्रांतिकारी की वीरगाथा महात्मागांधी के आंदोलन के सौ वर्ष पूरे होने के बाद प्रकाशित बस्ती के गजेटियर के पृष्ठ 364 पर दर्ज है।

ठाकुर हरिभान ¨सह का जन्म 1907 में हुआ था। स्कूली शिक्षा तो प्राप्त नहीं की लेकिन अंग्रेजी हुकूमत की ज्यादती बर्दाश्त नहीं कर सके और आजादी के जंग में कूद पड़े। उन्हें लिखने पढ़ने का ज्ञान जेल में हुआ। क्रांतिकारी सुनील भट्टाचार्य व योगेशचंद्र चटर्जी ने अक्षर ज्ञान कराया। इसके बाद इन्होंने तमाम क्रांतिकारी साथियों से जेल से पत्र व्यवहार किया। इनके पुत्र बीरेंद्र ¨सह बताते है की 1945 में उनके पिता जेल से रिहा होकर घर आए। उसके बाद भी अंग्रेज अधिकारियों के मुखबिर उन पर नजर रखते थे। अपने पिता की हिम्मत व दिलेरी की चर्चा करते हुए कहते हैं जब भी उन्हें कोई चोट लगती थी अथवा घाव होता था तो वह उस पर दवा नहीं नमक लगाते थे। पूछने पर कहते थे कि इससे जेल की यातना की याद ताजा हो जाती है। उनके पौत्र शैलेंद्र ¨सह बताते है की दादी मुलकादेवी जेलों में दी जाने वाली यातना की चर्चा करती थीं। वह चंद्रशेखर आजाद व भगत ¨सह के मिशन पर भी काम कर चुके थे। जिसके कारण कोलकाता, जयपुर सेंट्रल जेल, यंगून सहित अन्य कई जेलों में कैद रहे। जेल में रहते हुए भी क्रांतिकारी गतिविधियां जारी रखीं यही कारण था कि इनका इस जेल से उस जेल में तबादला होता रहा। सन 1984 में 77 वर्ष की उम्र में इनका निधन मुरादीुपर में ही हुआ। वर्ष 1975 में तत्कालीन प्रधानमंत्री इंदिरा गांधी ने इन्हें ताम्रपत्र देकर सम्मानित किया था।


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