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आए और छा गए अटल, देर तक गूंजती रहीं तालियां

संतकबीर नगर की माटी से पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का था विशेष लगाव।

By JagranEdited By: Published: Thu, 16 Aug 2018 06:54 PM (IST)Updated: Thu, 16 Aug 2018 06:54 PM (IST)
आए और छा गए अटल, देर तक गूंजती रहीं तालियां
आए और छा गए अटल, देर तक गूंजती रहीं तालियां

वेदप्रकाश गुप्त, गोरखपुर : पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी का संतकबीर नगर की माटी से गहरा जुड़ाव रहा है। जनसंघ के समय में पार्टी का विस्तार करने के दौरान वह बस्ती या गोरखपुर प्रवास के लिए आते थे तो मेहदावल में जाने को विशेष प्राथमिकता देते थे। उनकी यादों को लेकर लोग बड़े गर्व से संस्मरण सुनाते हैं। 1967 में चुनाव के दौरान वह मेहदावल में जनसभा को संबोधित करने आए थे। यहां उन्होंने चंद्रशेखर ¨सह के पक्ष में लोगों से वोट देने की अपील की थी। इस चुनाव में उन्हें जीत भी मिली थी।

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मेहदावल कस्बे के निवासी गिरिराज ¨सह, रामबुझारत शुक्ल, योगेंद्र प्रसाद गुप्त आदि ने बताया कि अटल जी के जनसभा में आने को लेकर क्षेत्रीय लोगों में खासा उत्साह था। इसके लिए कार्यकर्ता लालटेन और भोंपू लेकर प्रचार प्रसार में लगे थे। दोपहर में अंजहिया बाजार में उन्होंने सभा को संबोधित किया तो पूरी समां ही बांध दिया। उनकी हर बात पर तालियों से पंडाल गूंज उठता था। यहीं पर उन्होंने कहा था कि उन्हें दिल्ली में रहने दीजिए, हमें प्रदेश में विकास करने का मौका दीजिए। उन्होंने लोगों में इतना जोश भरा कि जनसंघ के प्रत्याशी को जीत मिली थी। इस चुनाव में उन्हें प्रदेश का भावी मुख्यमंत्री बनाकर भी पेश किया गया था। 1996 में प्रधानमंत्री रहने के दौरान खलीलाबाद में की थी जनसभा

अटल जी अंतिम बार 1996 में प्रधानमंत्री रहने के दौरान खलीलाबाद आए थे। यहां जूनियर हाई स्कूल परिसर में अष्टभुजा प्रसाद शुक्ल के समर्थन में जनसभा को संबोधित किए थे। उनको सुनने के लिए हजारों की संख्या में लोग खुद के साधनों से खलीलाबाद की तरफ चल पड़े थे। पूर्व मंत्री स्व. चंद्रशेखर ¨सह के यहां करते थे विश्राम

मेहदावल कस्बे के सोनबरसा में पूर्व मंत्री चंद्रशेखर ¨सह के यहां उनका आना जाना रहता था। स्व. चंद्रशेखर ¨सह की पुत्रवधू उर्मिला ¨सह ने बताया कि घर पर उनका आशीर्वाद लेने का अवसर मिला था। उन्होंने बताया कि पूर्व मंत्री स्व. धनराज यादव, स्व. हरिश्चंद्र श्रीवास्तव और स्व. माधव प्रसाद त्रिपाठी और बाबूजी उन्हें प्रेरणास्त्रोत मानकर पार्टी के साथ पूरे जीवन लगे रहे।


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