अटूट आस्था का महापर्व है छठ, मनोकामनाओं की होती है पूर्ति Gorakhpur news
संतकबीर नगर में छठ पर्व का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व है। द्वापर में माता कुंती ने सूर्यदेव की पूजा की थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से पूर्व कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण भी यह पूजा करते थे।
गोरखपुर, जेएनएन। अटूट आस्था का महापर्व है छठ। मनोकामनाओं की पूर्ति से इस पर्व की पंरपरा कायम है। महापर्व की कई कथाएं प्रचलित हैं। सूर्योपासना प्राचीन काल से चली आ रही है। छठदेवी प्रकृति देवियों का प्रधान अंश हैं। मुख्यत: बिहार प्रांत में माताओं द्वारा संतान के लिए किया जाने वाला सूर्यषष्ठी पर्व वर्तमान में पूर्वांचल का महापर्व बन गया है। इसे डाला छठ, लोकपर्व के नाम से भी जाना जा रहा है। भगवान भाष्कर के प्रति भक्तों का अनूठा पर्व ही छठ पूजा है। प्राचीन धार्मिक मान्यताओं के अनुसार छठ देवी भगवान सूर्यदेव की बहन हैं और उन्हीं को प्रसन्न करने के लिए आराधना की जाती है।
मर्यादा पुरुषोत्तम ने किया पूजन
सतयुग में पूजन का जहां वर्णन मिलता है, वहीं त्रेतायुग में भगवान श्रीराम ने माता सीता के साथ व्रत रखकर पूजन किया। मान्यता के अनुसार प्रभु ने रावण वध के बाद कार्तिक शुक्ल षष्ठी को उपवास कर सूर्यदेव की आराधना की। सप्तमी को उगते सूर्य की पूजा की और आशीर्वाद प्राप्त किया था।
प्रकृति की देवी मां देवसेना
माता दुर्गा, राधा, लक्ष्मी, सरस्वती और सावित्री ये पांच देवियां संपूर्ण प्रकृति कहलाती हैं। इन्हीं के प्रधान अंश को माता देवसेना कहते हैं। प्रकृति देवी का छठवां अंश होने के इन्हें षष्ठी माता के नाम से जाना जाता है। मां संसार के सभी संतानों की जननी और रक्षक हैं।
आदिशंकराचार्य ने किया था प्रेरित
सूर्यपूजा सदियों से हो रही है। आचार्य रमेशचंद्र व भाष्कर मणि के अनुसार शाक्य द्वीपीय ब्राह्मणों को सूर्यपूजा के विशेषज्ञ होने के कारण राजाओं ने आमंत्रित किया। ऋग्वेद में पूजा का महात्म्य मिलता है। ब्रह्मवैर्वत्व पुराण के मुताबिक राजा प्रियव्रत व रानी मालिनी ने संतान के लिए पूजन किया था। मृत शिशु की प्राप्त होने पर जीवित करने के लिए व्रत किया था। भगवान की मानस पुत्री देव सेना की कृपा से संतान की प्राप्त हुई। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। आदि शंकराचार्य ने सूर्य पूजा के लिए प्रेरित किया था।
पौराणिक व ऐतिहासिक महत्व
संतकबीर नगर में छठ पर्व का ऐतिहासिक व पौराणिक महत्व है। द्वापर में माता कुंती ने सूर्यदेव की पूजा की थी। प्रसन्न होकर भगवान सूर्य ने विवाह से पूर्व कर्ण के रूप में पुत्र दिया था। सूर्यपुत्र कर्ण भी यह पूजा करते थे। वे अंग प्रदेश यानी वर्तमान बिहार के भागलपुर के राजा थे।
महाभारत काल में द्रौपदी ने की थी पूजा
महाभारत काल में ही पांडवों की भार्या द्रौपदी के भी सूर्य उपासना करने का उल्लेख है मिलता है। जो अपने परिजनों के स्वास्थ्य और लंबी उम्र की कामना के लिए नियमित रूप से यह पूजा करती थीं। द्रोपद्री ने राजपाट की पुन: प्राप्ति के लिए आराधना की थी।
अभीष्ठ फल के लिए सूर्य की उपासना
लोक कल्याण एवं अभीष्ठ फल प्राप्ति के लिए भगवान सूर्य के उपासना की परंपरा वर्षो से चली आ रही है। इसी दिन गायत्री का जन्म व गायत्री मंत्र का विस्तार माना जाता है। यह व्रत षष्ठी युक्त सप्तमी पर किया जाता है। षष्ठी तिथि की स्वामिनी षष्ठी माता व सप्तमी के स्वामी भगवान सूर्यनारायण हैं।
समरसता व सहयोग का संगम
छठ पर्व स्नेह, समरसता, सहयोग का अनुपम संगम होता है। बिना किसी आचार्य व पंडित के होने वाले पूजा में महिलाएं एक दूसरे का सहयोग करके विधिविधान से सात्विकता से अनुष्ठान करती हैं।
गुरुवार - पंचमी -खरना
शुक्रवार - षष्ठी -शाम को अस्ताचलगामी सूर्य को अर्घ्य
शनिवार - सप्तमी - उदयीमान सूर्य को अर्घ्य