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Gorakhpur Festival: चौरीचौरा कांड में दिखा आजादी के लिए संघर्ष का जज्बा

चौरीचौरा कांड पर आधारित नाटक फरवरी चार 1922 का मंचन किया गया। गांवों में भी आजाद होने की तड़प और उसके लिए संघर्ष का जज्बा था। नाटक का यही केंद्रीय तत्व रहा। नरेंद्र देव पांडेय लिखित इस नाटक का निर्देशन श्रीनारायण पांडेय ने किया।

By Satish chand shuklaEdited By: Published: Wed, 13 Jan 2021 12:16 PM (IST)Updated: Wed, 13 Jan 2021 12:16 PM (IST)
Gorakhpur Festival: चौरीचौरा कांड में दिखा आजादी के लिए संघर्ष का जज्बा
गोरखपुर महोत्सव में मुक्ताकाशीय मंच पर नाटक चौरीचौरा का मंचन करते कलाकार।

गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर महोत्सव में मंगलवार को अभियान थियेटर ग्रुप के तत्वावधान में चौरीचौरा कांड पर आधारित नाटक 'फरवरी चार 1922 का मंचन किया गया। गांवों में भी आजाद होने की तड़प और उसके लिए संघर्ष का जज्बा था। नाटक का यही केंद्रीय तत्व रहा। नरेंद्र देव पांडेय लिखित इस नाटक का निर्देशन श्रीनारायण पांडेय ने किया।

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दिखाया गया सत्‍याग्रहियों का दमन

नाटक सत्याग्रहियों के दमन से शुरू होता है। महात्मा गांधी के आह्वान पर डुमरी गांव से निकलकर कुछ ग्रामीण मुंडेरा बाजार चौराहे पर शांतिपूर्वक सत्याग्रह करते हैं। इसी बीच एक सत्याग्रही भगवान अहीर को दारोगा ने बुरी तरह पीटकर थाने में बंद कर दिया। जानकारी होते ही गांव वालों ने चौरा थाना घेर लिया। निहत्थे शांति वार्ता करने पहुंचे ग्रामीणों पर पहले पुलिस ने लाठियां भांजी और हवाई फायर किया। गोली नहीं लगने पर ग्रामीणों ने कहा कि यह गांधी बाबा का प्रभाव है कि गोलिया पानी हो गई है। गंभीर हो चुके माहौल में इस दौरान ठहाके गूूंज उठे। लेकिन माहौल तत्क्षण पुन: गंभीर हो गया। पुलिस वालों ने सत्याग्रहियों पर अंधाधुंध गोलियां चलानी शुरू कर दी। तीन सत्याग्रहियों की मौत हो गई।

भीड़ उग्र हो गई। पुलिस वालों ने थाना का गेट बंद कर लिया। इसी दौरान एक ग्रामीण मिट्टी का तेल लेकर घर जा रहा था। जब उसे घटना की जानकारी हुई तो थाने पर तेल छिड़ककर आग लगा दी। 22 पुलिस कर्मी जलकर मर गए। दृश्य बदलता है और मंच पर महात्मा गांधी प्रकट होते हैं। उन्होंने असहयोग आंदोलन वापस लेने की घोषणा कर दी। फिर दृश्य बदला और मोती लाल नेहरू व सुभाष चंद्र बोस उपस्थित हुए। उन्होंने कहा कि असहयोग आंदोलन वापस लेना किसी राष्ट्रीय दुर्भाग्य से कम नहीं है। नाटक का लगभग पटाक्षेप हो चुका था। शेष कहानी एक पुरुष व एक महिला की जुबानी दर्शकों ने जानी। उन्होंने बताया कि इस घटना में 190 लोगों को फांसी की सजा हुई थी। बाबा राघव दास व मदन मोहन मालवीय के प्रयासों से ज्यादातर लोगों की जान बच गई। केवल 19 लोगों को फांसी हुई और 32 लोगों को काला पानी की सजा। इसके बाद मंच पर रोते हुए ब'चे उपस्थित हुए। यह गांव का दृश्य था। गांवों से बड़े लोग पलायन कर चुके थे। ब'चों ने कहा कि अब आंदोलन हम करेंगे। इसी बीच मंच पर सभी पात्र आ जाते हैं और समवेत स्वर में गूंज उठता गीत- कुर्बानियों का डर नहीं, अब बस दिलों में आग है....।

अभिनय अवधेश यादव, विपिन यादव, सूर्या पटेल, कृष्णा, मीर, राम किशोर, अफ्फान नवाब, अंशिका मिश्र, शुभम सिंह, प्रिंस राय, जय गुप्ता, शताक्षी श्रीवास्तव, सागर, विशाल यादव, स्मिता यादव, कलश कुमारी आदि ने किया।


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