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इंजीनियर की जॉब छोड़ सेना में कैप्टन बनी गोरखपुर की बेटी, नाम मिला- सरीया अब्बासी दुश्मनों के खून की प्यासी

Captain Saria Abbasi Success Story गोरखपुर की बेटी सरिया अब्बासी बचपन से ही देश प्रेमी रहीं। इंजीनियर की पढ़ाई पूरी होते ही सरिया के लिए नौकरियों के प्रस्ताव आने लगे लेकिन उसने सेना में भर्ती होने की ठानी और सफलता भी हासिल किया।

By Satish pandeyEdited By: Pragati ChandPublished: Sun, 02 Oct 2022 04:23 PM (IST)Updated: Sun, 02 Oct 2022 04:23 PM (IST)
इंजीनियर की जॉब छोड़ सेना में कैप्टन बनी गोरखपुर की बेटी, नाम मिला- सरीया अब्बासी दुश्मनों के खून की प्यासी
गोरखपुर की बेटी कैप्टन सरिया अब्बासी। फोटो सौ. स्वजन

गोरखपुर, सतीश पांडेय। साहस की मूर्ति बनकर दुश्मनों के छक्के छुड़ाने वाली कैप्टन सरिया अब्बासी के नाम से देश के दुश्मन खौफ खाते हैं। सरिया अब्बासी दुश्मनों के खून की प्यासी नाम यूंही नहीं मिला। बचपन से ही उनमें देश प्रेम का जज्बा था। इसलिए इंजीनियर की नौकरी ठुकराकर उन्होंने सेना में जाने का फैसला लिया। अपनी मेहनत व लगन के बल पर सेना में मात्र 12 सीटों में उन्होंने अपनी जगह बनाई और सेना अधिकारी के रूप में देश सेवा को जीवन समर्पित कर दिया। निरंतर प्रयास और दृढ़ संकल्प के बल पर भारतीय सेना में कैप्टन बनी सरिया अब्बासी पांच साल तक एलएसी (वास्तविक नियंत्रण रेखा) और आसपास के इलाके में तैनात रहीं। वह सेना के ड्रोन किलर टीम की अगुवाई भी कर चुकी हैं। इस समय वह असम में तैनात हैं।

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असफल होने पर भी नहीं हारी हिम्मत

शहर के रामजानकी नगर मोहल्ले की रहने वाले सरिया अब्बासी के पिता डॉ. तहसीन अब्बासी आकाशवाणी में सहायक निदेशक के पद से सेवानिवृत्त हुए हैं। मां रेहाना समीम परिषदीय विद्यालय में शिक्षक हैं। छोटा भाई लंदन में एमबीए की पढ़ाई कर रहा है। इंजीनियरिंग की परीक्षा पास करने के बाद सरिया ने देश-विदेश से आए नौकरी के सभी प्रस्ताव ठुकरा दिया और सेना में भती होने का फैसला किया। इस दौरान भारतीय सेना में महिलाओं की सीटें कम हुआ करती थीं। पहले प्रयास में उसने सीडीएस की परीक्षा दी लेकिन असफल रहीं। दोबारा कोशिश करने के बाद उन्होंने यूपीएससी की सीडीएस परीक्षा के लिए आवेदन किया और सफलता हासिल की।

12 सीटों में अपनी जगह बनाईं सरिया

भारतीय सेना में जब उन्हें कैप्टन के पद के लिए चुना गया था, उस समय सीडीएस में महिलाओं के लिए केवल 12 सीटें थीं। पिता डॉ. तहसीन अब्बासी बताते हैं कि साक्षात्कार में सफल होने के बाद सरिया को प्रशिक्षण के लिए चेन्नई भेजा गया। कठिन प्रशिक्षण के बाद, उन्हें 2017 में कमीशन दिया गया।

बचपन से ही सेना में जाने का था सपना

कैप्टन सरिया अब्बासी के मामा मुकिम सिद्दीकी बताते हैं कि बचपन से ही उनका सपना सेना में भर्ती होकर देश की सेवा करने का रहा। पढ़ाई पूरी होने के बाद इंजीनियर की नौकरी को ठुकराकर देश की सेवा करने का फैसला लिया। अगर किसी भी महिला के भीतर देश सेवा करने का जज्बा है तो इसके लिए केवल सरिया अब्बासी के समान दृढ़ संकल्प और अथक प्रयास करने होंगे।


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