Lockdown in Gorakhpur : गाय, कुत्ता और बंदरों को भोजन देने के लिए अभियान शुरू Gorakhpur News
पशुपालन विभाग सोमवार से सड़क पर विचरण करने वाले कुत्ता बंदर व गायों की भूख मिटाने के लिए अभियान चला रहा है। उसका मानना आपदा की घड़ी में सर्वाधिक संकट में यह बेजुबान हैं।
गोरखपुर, जेएनएन। लॉकडाउन में इंसानों का काम किसी तरह चल रहा है, पर सड़क पर विचरण करने वाले बेसहारा पशुओं पर ध्यान किसी का नहीं है। ऐसे में पशुपालन विभाग इन्हें रोटी, ब्रेड व फल देने का अभियान शुरू किया है।
लोगों से कर रहे अपील-जीवों के लिए भी बनाएं रोटियां
विभाग इसके साथ लोगों से अपील भी कर रहा है कि अपने भोजन के साथ-साथ कुछ रोटियां जानवरों के लिए भी तैयार करें। ताकि उनकी भी भूख मिट सके। पशुपालन विभाग सोमवार से सड़क पर विचरण करने वाले कुत्ता, बंदर व गायों की भूख मिटाने के लिए अभियान चला रहा है। वह जन सहयोग व कुछ निजी स्तर पर इनके लिए रोटी, ब्रेड व कुछ फल एकत्रित कर रहा है। उसे इन जानवरों को दे रहा है। उसका मानना आपदा की घड़ी में सर्वाधिक संकट में यह बेजुबान हैं।
विभाग कर रहा काम
मुख्य पशु चिकित्साधिकारी डॉ देवेंद्र कुमार शर्मा का कहना है कि शहर के शास्त्रीनगर, राजेंद्र नगर, छोटे काजीपुर सहित विभिन्न मुहल्लों में जानवरों को पशुपालन विभाग के कर्मचारियों के द्वारा खाना दिया जा रहा है। इस पर भी ध्यान दिया जा रहा है कि जो आसानी से उपलब्ध हो जाए और उसके लिए रुपये भी अधिक न लगें।
घुमंतू जानवरों के लिए फरिश्ता बनीं अपूर्वा व अवंतिका
लॉकडाउन में आमजन की जरूरतें पूरी होती रहें, इसके लिए शासन-प्रशासन ने तमाम इंतजाम किए हैं, लेकिन सड़कों पर घूमने वाले बेजुबानों का पेट कैसे भरेगा। इस पर शायद ही किसी का ध्यान गया हो। ऐसे जानवरों का दर्द अगर किसी ने समझा है तो वह मोहद्दीपुर की दो बहनें अपूर्वा और अवंतिका हैं। निजी कंपनी में काम करने वाली यह लड़कियां सड़कों पर घूमने वाले बेसहारा पशुओं के भोजन-पानी का इंतजाम कर रही हैं।
अपनी आय का 40 फीसद हिस्सा कर रहीं खर्च
अपनी आय का 40 फीसद हिस्सा वह इसमें खर्च करती हैं। इसकी शुरुआत उन्होंने मोहद्दीपुर, देवरिया बाईपास, सिविल लाइंस, आरटीओ तिराहा व अन्य जगहों पर नाद रखकर की। इसमें पानी भरने के साथ वह जानवरों के लिए दूध, ब्रेड, पूड़ी, खीर, बिस्किट, चावल का भी प्रबंध करती हैं। घर पर तैयार भोजन वह तारामंडल, पैडलेगंज, चारफाटक व विश्वविद्यालय रोड के उन स्थानों पर रखती हैं, जहां आमतौर पर जानवर इकट्ठा होते हैं।
अपनी रसोई में तैयार करती हैं भोजन
जानवरों का भोजन अपूर्वा और अवंतिका अपनी रसोई में ही तैयार करती हैं। यह काम शाम तीन बजे से शुरू हो जाता है। पांच बजे तक दोनों बहनें खाद्य सामग्री को बाल्टी में लेकर निकल पड़ती हैं। जानवरों को खिलाने का सिलसिला रात आठ बजे तक चलता है। दोनों बहनें बताती हैं कि इस काम में पिता अवध कुमार त्रिपाठी भी पूरा साथ देते हैं। पशु-पक्षियों के प्रति प्रेम जगाने में पिता और मां नीलिमा की भूमिका महत्वपूर्ण है। अब स्थिति यह है कि उनका स्कूटर रुकते ही जानवर उनके पास आ जाते हैं। उनको खाना खाता देखकर इतनी खुशी मिलती है, जिसे शब्दों में बयां करना मुश्किल है।