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गोरखपुर में पानी के नाम पर करोड़ों का व्‍यापार, एक लीटर शुद्ध पानी के लिए तीन लीटर बर्बाद, Gorakhpur News

आरओ प्लांट में एक लीटर पानी शुद्ध करने में तीन लीटर पानी बर्बाद होता है। घरों में लगी आरओ मशीन से निकलने वाला पानी नाली में बहा दिया जाता है। यही हाल आरओ प्लांट का भी है।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Thu, 13 Feb 2020 08:10 AM (IST)Updated: Thu, 13 Feb 2020 12:01 PM (IST)
गोरखपुर में पानी के नाम पर करोड़ों का व्‍यापार, एक लीटर शुद्ध पानी के लिए तीन लीटर बर्बाद, Gorakhpur News
गोरखपुर में पानी के नाम पर करोड़ों का व्‍यापार, एक लीटर शुद्ध पानी के लिए तीन लीटर बर्बाद, Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। शुद्ध पानी के नाम पर करोड़ों का बाजार बिना पंजीकरण और टैक्स चल रहा है। शुद्ध पानी के लिए रोजाना लाखों लीटर पानी नालियों में बहा दिया जा रहा है पर जिम्मेदारों को परवाह नहीं है।

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आरओ प्‍लानं वालों का पंजीकरण तक नहीं

शहर में आरओ प्लांट के पंजीकरण की छह महीने पहले बनी योजना पर आज तक काम ही नहीं हो सका। प्लांट से वार्षिक टैक्स लेने की योजना थी पर अब तक यह नहीं पता चल सका कि शहर में कितने प्लांट लगे हैं। रोजाना किसी न किसी इलाके में आरओ प्लांट लग रहे हैं। पानी शुद्ध करने की प्रक्रिया में तीन गुना पानी बर्बाद हो रहा है लेकिन किसी को परवाह नहीं है।

टैैैैक्‍स लगाने का हुआ था प्रस्‍ताव 

21 सितंबर 19 को नगर निगम की कार्यकारिणी समिति की नवीं बैठक में आरओ प्लांट पर टैक्स लगाने का प्रस्ताव पास किया गया था। पार्षद चंद्रशेखर सिंह, राजेश तिवारी, सबी चौहान और संजीव सिंह सोनू ने आरओ प्लांट लगाकर व्यापार करने वालों पर शिकंजा कसने का प्रस्ताव रखा था। बताया था कि पानी शुद्ध करने के नाम पर भारी मात्रा में पानी नाली में बहा दिया जाता है। पानी बर्बाद न हो इसके लिए पानी को फिर से इस्तेमाल में लेने के लिए संचालक व्यवस्था करें। साथ ही निर्णय लिया गया था कि आरओ प्लांट संचालकों को प्रति वर्ष पांच हजार रुपये रजिस्ट्रेशन के रूप में नगर निगम में जमा करना होगा। लेकिन अब तक प्लांटों का सर्वे ही नहीं हो सका।

आरओ का पानी भी मानक पर खरा नहीं उतरा

जल निगम के सहायक अभियंता हर्ष सत्येंद्र सिंह ने बताया कि आरओ का पानी भी मानक पर खरा नहीं उतर रहा है। पानी का टीडीएस (टोटल डिजाल्वड सॉलिड्स) भी इतना कम रहता है कि इसे स्वास्थ्य के लिए उपयोगी नहीं माना जा सकता है। 11 महीने में 22 लोगों ने आरओ पानी की शुद्धता की जांच कराई। इनमें से तकरीबन 10 नमूने मानकों पर खरे नहीं मिले।

20 से 40 रुपये में जार

आरओ प्लांट लगाने वाले 20 लीटर पानी का जार 20 से 40 रुपये में देते हैं। इसकी होम डिलीवरी भी होती है। हालांकि आरओ के नाम पर पानी वास्तव में आरओ प्लांट का है या सबमर्सिबल पंप का, यह पीने वाले को पता नहीं चलता।

एक हजार से ज्यादा प्लांट

अनुमान के मुताबिक जिले में एक हजार से ज्यादा आरओ प्लांट स्थापित हो चुके हैं। ग्रामीण क्षेत्रों में भी आरओ प्लांट की संख्या में तेजी से इजाफा हो रहा है।

एक लीटर पानी शुद्ध करने में तीन लीटर बर्बाद

आरओ प्लांट में एक लीटर पानी शुद्ध करने में तीन लीटर पानी बर्बाद होता है। घरों में लगी आरओ मशीन से निकलने वाला पानी नाली में बहा दिया जाता है। यही हाल आरओ प्लांट का भी है। 

आरओ पानी का यहां कर सकते इस्तेमाल

कार की धुलाई, पौधों की क्यारियों व गमलों में, बर्तन व फर्श धोने में, कपड़ों की आखिरी धुलाई के पहले इस्तेमाल कर सकते हैं। 

शहर में तेजी से लग रहे सबमर्सिबल पंप

शुद्ध और निर्बाध आपूर्ति के लिए शहर में तेजी से सबमर्सिबल पंप लगाए जा रहे हैं। खासकर पाश कॉलोनियों में घर-घर सबमर्सिबल पंप लग चुके हैं। हालांकि प्रदेश सरकार ने उत्तर प्रदेश भूजल अधिनियम एवं विनियमन-2020 में भूजल संरक्षण व संवद्र्धन के लिए आरओ प्लांट और सबमर्सिबल पंप लगाने के नियम बना दिए हैं। व्यावसायिक उपयोग का शुल्क निर्धारण भी सरकार जल्द करेगी।

नगर निगम क्षेत्र में आरओ प्लांट का सर्वे कराने के निर्देश दिए गए थे। सर्वे जल्द शुरू कराया जाएगा। एक अप्रैल से पहले सर्वे पूरा कराकर प्लांटों का रजिस्ट्रेशन कराया जाएगा। पांच हजार रुपये प्रति वर्ष प्रति प्लांट जमा कराया जाएगा।

सीताराम जायसवाल, महापौर  


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