यह चावल हैै या दवा ! खुश्बू व स्वाद मेें बेेमिसाल, इम्युनिटी बढ़ाने में भी है मददगार
यूपी के कई जिलों में पैदा होने वाला कालानमक चावल खुश्बू व स्वाद मेें बेेमिसाल होने के साथ ही कई औषधीय गुणों से भरपूर है। यह इम्युनिटी बढ़ाने में भी मददगार है।
गोरखपुर, जितेन्द्र पांडेय। कोरोना संक्रमण से जंग में कालानमक चावल बड़ी भूमिका निभा सकता है। इस चावल की विशेषता है कि इसमें बड़े पैमाने पर जिंक, आयरन व प्रोटीन पाया जाता है। इन तत्वों के सेवन से शरीर की इम्युनिटी बढ़ाई जाती है। चिकित्सकों का भी दावा है कि शरीर की इम्यूनिटी बढ़ाकर ही कोरोना के खतरे को कम किया जा सकता है। इम्युनिटी बढ़ाने में जिंक, आयरन व प्रोटीन का रोल महत्वपूर्ण है।
कालानमक को लेकर न सिर्फ गोरखपुर, बल्कि पूर्वांचल के कई जिलों में कार्य चल रहा है। कालानमक की प्रजाति केएन-3, केएन-102 और कालानमक किरन उन्हीं की देन है। उनके अलावा सिद्धार्थनगर जिले की शिवांस एग्रीकल्चर प्रोडूस लिमिटेड ने भी इस पर बड़ा काम किया है। शोध के दौरान ज्ञात हुआ है कि कालानमक में 10.6 फीसद प्रोटीन पाया जाता है। इसके अलावा ग्लाइसमिक इंडेक्स 52 फीसद होता है। जिंक कालानमक के अलावा सांभा मसुरी, बासमती, सरयू बावन आदि चावलों में भी पाया जाता है, लेकिन इसमें उसकी मात्रा बहुत कम होती है। शिवांस एग्रीकल्चर प्रोडूस लिमिटेड के डायरेक्टर अभिषेक सिंह का कहना है कि अक्रीकन मुल्क के एक चावल में भी जिंक की मात्रा पर्याप्त रूप से पायी जाती है, लेकिन उसमें भी कालानमक के बराबर जिंक नहीं पाया जाता है। इस चावल में शुगर भी न के बराबर है। इस लिए शुगर के मरीज भी इस चावल को खा सकते हैं।
100 ग्राम कालानमक में पोषक तत्व
आयरन - 3 मिलीग्राम
जिंक - 0.4 मिलीग्राम
प्रोटीन- 10.6 फीसद
सेवन का लाभ भी दिख रहा
अभिषेक सिंह कहते हैं कि उनके पिता करीब 80 वर्ष के हैं, लेकिन शरीर की प्रतिरोधक क्षमता कम होने के कारण हाथ-पैर हिलते थे। इस चावल के सेवन का लाभ यह रहा है कि चार माह में उनका हाथ-पैर हिलना रुक गया। उन्होंने कहा कि इसके बाद से उनके घर में सिर्फ इसी चावल का प्रयोग होता है।
जानिए कितना होता है उत्पादन
कृषि विज्ञान केंद्र बेलीपार के प्रभारी डॉ एसके तोमर का कहना है कि कालानमक तमाम पोषक तत्वों की खान है। इसका उत्पादन भी बेहतर है। कालानमक की प्रजाति केएन-3, केएन-102 और कालानमक किरन एक हेक्टेयर में औसतन 35 क्विंटन उत्पादन होता है। थोड़ी बहुत प्रभावित भी मान ली जाए तो करीब 30 क्विंटल का उत्पादन होता है। ऐसे में इसकी खेती लाभ भी अच्छा होता है। सिर्फ गोरखपुर, महराजगंज, सिद्धार्थनगर, संतकबीरनगर जिले में यह 25 हजार हेक्टेयर में बोया जाता है। अर्थात यहां करीब 750000 क्विंटल कालानमक का उत्पादन हो रहा है।
हर रोग के उपचार में होगा सहायक
सिद्धार्थनगर निवासी व अयोध्या मेडिकल कॉलेज के एसआर मेडिसिन डॉ जितेन्द्र प्रताप सिंह करीब पांच से कोरोना संक्रमितों के उपचार में जुटे हुए हैं। उनका कहना है कि कालानमक में जिंक, प्रोटीन आयरन यदि प्रचुर मात्रा में पाए जाते हों तो यह इम्युनिटी बढ़ाने में सहायक होगा। कोरोना संक्रमण से बचाव के लिए इम्युनिटी पावर का बेहतर होना जरूरी है। इम्युनिटी बेहतर होने से न सिर्फ कोरोना बल्कि अन्य रोगों से बचाव किया जा सकता है।