गोरखपुर में शुद्ध पानी के नाम बड़ा कारोबार, रोजाना 10 लाख रुपये तक की बिक्री
गोरखपुर शहर में प्रतिदिन शुद्ध पानी के नाम पर 10 लाख रुपये का कारोबार हो रहा है। इसके लिए कोई जांच एजेंसी भी नहीं है।
गोरखपुर, जेएनएन। जीवन में जितना महत्व हवा का है, पानी भी उतनी ही अहमियत रखता है। 'स्वच्छ पेयजल मानव का मूलभूत अधिकार है'। भारतीय संविधान के अनुच्छेद-21 में लिखी ये बात सुनने में भले ही सामान्य लगती हो, मगर गंभीरता से गौर करें तो पता लगेगा कि लोकतात्रिक प्रणाली में हमारे मौलिक अधिकारों की रोजाना धज्जिया उड़ाई जा रही हैं। अफसोसजनक पहलू ये है कि जो जिला तीन तरफ नदियों से घिरा है, वहा के लोग भी पानी खरीदकर पीने को मजबूर हैं। ऐसा घरों तक शुद्ध पानी की आपूर्ति न होने के चलते है। लाखों घरों तक अभी भी वाटर सप्लाई नहीं पहुंची है, जहा पाइप बिछ भी गई है वहा भी शुद्ध पानी मयस्सर नहीं है। अधिकाश आबादी निजी बोरिंग के भरोसे है। जो सक्षम हैं उन्होंने तो घरों पर आरओ या वाटर प्यूरीफायर लगा लिया है, लेकिन गरीबों को शुद्ध पेयजल की गारंटी अब तक नहीं मिली है। नगर निगम और जलकल की इस लापरवाही का फायदा उठाने वाले कारोबारी दिमाग वालों ने पानी का बड़ा बाजार तैयार कर लिया है। शुद्ध पानी के लिए तरस रही शहर-देहात की लाखों आबादी हर दिन कई हजार लीटर पानी खरीद कर पीने को मजबूर हैं। किस नियम-कानून से ये पानी बिक रहा है, उसकी शुद्धता की क्या गारंटी है, इसके परीक्षण की फुर्सत किसी के पास नहीं है।
रोजाना दस लाख के पार, पानी का कारोबार
नगर निगम की नाकामी के चलते शुद्ध पानी का कारोबार रोजाना दस लाख रुपये से ऊपर पहुंच गया है। 20 लीटर के जार में साफ पानी की सप्लाई का दावा करने वाले कितने प्लाट शहर में हैं, इसका प्रमाणिक डाटा किसी विभाग के पास नहीं है। पानी का प्लाट चलाने वाले एक कारोबारी बताते हैं कि मोहल्ले, चौराहों के साथ-साथ देहात के कस्बे, बाजारों को जोड़ लें तो छोटे-बड़े तकरीबन 400 से अधिक प्लाट चल रहे होंगे। हर प्लाट से रोजाना कम से कम से 100 जार पानी की सप्लाई भी मान लें तो रोजाना 25 रुपये प्रति जार के हिसाब से दस लाख रुपये से अधिक का पानी प्रतिदिन बिक जाता है। इसके अलावा आजकल प्लास्टिक के एक हजार लीटर वाले टैंक में भी साफ पानी भरकर शहर देहात के इलाकों में सप्लाई हो रहा है। इसकी खपत भी रोजाना हजारों लीटर की है। शुद्ध पेयजल के अभाव में कुछ निजी एजेंसियों ने पानी की मशीन भी लगा रखी है, जहा से दो रुपये लीटर आरओ का पानी बेचा जा रहा है।
हर दिन चाहिए 13.5 करोड़ लीटर पानी
शहर की आबादी तकरीबन दस लाख है। 135 लीटर पानी प्रति दिन प्रति व्यक्ति का औसत खर्च है। इसमें खाना, पीना, नहाना, धोना आदि शामिल है। इस हिसाब से साढ़े तेरह करोड़ लीटर यानी 135 एमएलडी पानी के उत्पादन की जरूरत है। नगर निगम के आकड़ों के मुताबिक वर्तमान में रोजाना पानी का उत्पादन 110 एमएलडी है। 15 फीसद नुकसान मान लें तो नागरिकों को मात्र 95 एमएलडी पानी मिल रहा है। मतलब 38 लीटर पानी प्रति व्यक्ति प्रति दिन कम मिल रहा है।
रोज 2000 लीटर पानी नालियों में बह रहा
शहर में करीब 485 स्थानों पर पेयजल स्टैंड पोस्ट और 25 स्थानों पर माडर्न स्टैंड पोस्ट बनाए गए हैं। इनमें 15 फीसदी टोटी विहीन हैं, जिनसे पानी बेवजह गिरता रहता है। पानी की बर्बादी का अनुमान इस हिसाब से लगाया जा सकता है कि स्टैंड पोस्ट पर आधी इंच की पाइप लगी होती है। इससे प्रति मिनट तीन लीटर के हिसाब से जलापूर्ति के बारह घटे में 2160 लीटर पानी पानी निकलता है। यानी टोटी विहीन एक स्टैंड पोस्ट से रोजाना दो हजार लीटर से ऊपर पानी की बर्बादी हो रही है।
काम नहीं आ रहे एक भी इंतजाम
शहर में जलापूर्ति के लिए 119 बड़े, 70 मिनी नलकूप, एक भूमिगत जलाशय और 29 ओवरहेड टैंक बनाए गए हैं। जलापूर्ति के लिए कुल बारह घटे का समय निर्धारित है। सुबह छह से दस, दोपहर में 12 से दो और शाम पाच से दस बजे तक जलापूर्ति की जाती है। हालाकि यहा से नियमित निर्बाध आपूर्ति संभव नहीं हो पाती है। इसके अलावा पेयजल के लिए नगर के भीतरी से लेकर बाहरी वार्ड में तकरीबन 4174 इंडिया मार्का हैंडपंप लगे हैं। इसमें 25 फीसदी खराब हैं।
32 फीसद क्षेत्र जलापूर्ति सुविधा से वंचित
147 वर्ग किलोमीटर वाले क्षेत्र में मात्र 68 फीसद क्षेत्र में ही जलापूर्ति व्यवस्था है। 32 फीसद क्षेत्र पूरी तरह जलापूर्ति व्यवस्था से वंचित है। लाखों की ग्रामीण आबादी तो पूरी तरह पानी की सप्लाई से वंचित है। सत्तर वार्ड वाले महानगर के जंगल सालिग्राम जोन के शिवपुर सहबाजगंज, जंगल सालिकराम, धर्मशाला, जंगल तुलसी राम पश्चिमी, फतेहपुर जोन के वार्ड मानबेला, उर्वरक नगर, सेमरा, चरगावा आशिक, नथमलपुर जोन के अधियारी बाग, पुराना गोरखपुर आशिक लच्छीपुर जंगल नकहा क्षेत्र जैसे कई इलाके हैं जहा अभी तक जलापूर्ति की व्यवस्था नहीं है।
किसी नलकूप पर नहीं लगा जनरेटर
बिजली जाते ही सभी वार्ड की जलापूर्ति दगा दे जाती है। सभी नलकूप पर जनरेटर लगाया जाना था, लेकिन एक भी नलकूप पर जनरेटर नहीं लग सका। जलकल परिसर स्थित भूमिगत जलाशय के लिए एक बड़े जनरेटर की खरीदारी तो की गई लेकिन उसका भी इस्तेमाल नहीं हो पाया।
यहा है ओवर हैड टैंक
जलकल परिसर, मोहद्दीपुर, महादेव झारखंडी, बशारतपुर, शाहपुर आवास विकास कालोनी, विष्णु मंदिर, मुंशी प्रेमचंद पार्क, हनुमान मंदिरके पीछे बेतियाहाता, लालडिग्गी, गोरखनाथ मंदिर, सूरजकुंड, सूर्य बिहार, सुभाष चंद्र बोस नगर, विकास नगर, विकास नगर विस्तार, राप्ती नगर, खूनीपुर, नौसढ़, महेवा फलमंडी के पीछे नंबर एक, फलमंडी के पीछे नंबर दो, चिलमापुर, महादेव झारखंडी प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड चौराहा, महादेव झारखंडी टुकड़ा नंबर दो, भैरोपुर, नंदा नगर, झरना टोला, रायगंज, बनकटवा, शास्त्रीपुरम।
क्लोरीनेशन नहीं तो जल है जहर
नलकूप से निकले भूमिगत जल को पीने योग्य बनाने के लिए उसका क्लोरीनेशन जरूरी है। इसके लिए सभी नलकूपों में डोजर ब्लीचिंग पाउडर मिश्रण यंत्र लगा है। प्रत्येक माह आपरेटर को पचीस किलो ब्लीचिंग पाउडर की बोरी दी जाती है। क्लोरीनेशन की जाच भी होती है। जिसकी रिपोर्ट के आधार पर कमियों को दूर किया जाता है। घनी आबादी वाले इलाकों में अधिकतर स्थानों पर पेयजल की पाइप लाइनें नालियों में होकर गुजरी है, जिसके कारण लोग दूषित पानी पीने को मजबूर हैं।
पेयजल के स्त्रोत व संसाधन
क्षेत्रफल- 147.5 वर्ग किमी.
महानगर की जनसंख्या- 10 लाख
बड़े नलकूप- 119
मिनी नलकूप- 70
पेयजल उत्पादन- 126.05 एमएलडी
प्रति व्यक्ति मानक- 135 एमएलडी
माग की कमी- 42 एमएलडी
ओवर हेड टैंक- 29
भूमिगत जलाशय- 01
स्टोरेज कैपसिटी- 29790 किलोलीटर
जलापूर्ति का निर्धारित समय- 12 घटे
हैंडपंपों की संख्या- 4174
पेयजल पाइप से आच्छादित क्षेत्र- 68 फीसद
पाइप लाइनों की लंबाई- 1180 किमी.
पेयजल कनेक्शन- 63129