'प्रसिद्धि' के लिए लालायित होने से बेहतर है 'सिद्धि' के लिए हो प्रयास
गोरखपुर : पागलपन की हद तक जुनूनी लोग ही अभिनेता बनते हैं। कलाकार बनने के लिए सबसे जरूरी ह
गोरखपुर : पागलपन की हद तक जुनूनी लोग ही अभिनेता बनते हैं। कलाकार बनने के लिए सबसे जरूरी है जुनून। यह जुनून ही है जो हमें हर वह चीज दिला सकता है, जिसे पाने की हमने तमन्ना पाल रखी है। जीवन में प्रसिद्धि पाने का कोई शार्टकट नहीं है। बेहतर हो कि हम प्रसिद्धि पाने के लिए लालायित होने की अपेक्षा सिद्धि पाने के लिए प्रयास करें। अगर सिद्धि मिल गई तो प्रसिद्धि खुद-ब-खुद मिल जाएगी।
यह विचार साझा किए प्रसिद्ध बालीवुड कलाकार और रंगकर्मी यशपाल शर्मा ने। वे रविवार को जागरण फिल्म फेस्टिवल के आखिरी दिन आयोजित 'संवाद' कार्यक्रम गोरखपुर के सिनेप्रेमियों से मुखातिब थे। यशपाल के साथ उनकी उनकी पत्नी निर्माता-निर्देशक एवं रंगकर्मी प्रतिभा शर्मा भी खासतौर से संवाद में मौजूद रहीं। यशपाल ने बात की शुरुआत अपने रंगमंचीय और फिल्मी कॅरियर की यात्रा से करते हुए बताया कि पारिवारिक रामलीला के मंचन से उनके मन में अभिनय को लेकर गंभीरता आई, जो आगे चलकर उनका जुनून बन गई। अपने अभिनय जीवन के संघर्ष के सवाल पर उन्होंने कहा कि उनका शुरुआती सफर बेहद मुफलिसी से भरा रहा। उन्होंने मजदूरी की और मुफलिसी में दिन काटे। अगर लोगों ने उनकी मदद की तो उसकी सबसे बड़ी वजह उनकी मेहनत और अभिनय के प्रति जुनून था। आज सबसे बड़ा है रुपैय्या
वर्तमान परिवेश में सिनेमा जगत के सामने मौजूद समस्याओं पर बात करते हुए उन्होंने कहा कि आज कॉमर्शियल फिल्मों के दौर में फिल्मों का मौलिक मकसद पैसा कमाना हो गया है। विषय प्रधान और लीक से अलग हटकर बनाई गईं फिल्में या तो प्रचार के अभाव में अथवा बजट की कमी की वजह से बेहतर व्यवसाय नहीं कर पातीं और प्राय: दर्शकों तक नहीं पहुंच पाती। फिल्मों में अश्लीलता के चित्रण के सवाल पर उन्होंने इसका मुखर विरोध करते हुए कहा कि फिल्मों में द्विअर्थी संवाद और अश्लीलता का चित्रण पीढ़ी को बर्बाद कर रहा है। फिल्मी जगत से जुड़े लोगों के साथ दर्शकों को भी यह सोचना चाहिए कि उनके द्वारा संस्कृति और मर्यादा के खिलाफ चीजें किस तरह से परोसी जा रहीं हैं जो पीढि़यों को बर्बाद कर रहीं हैं। शांति और सद्भावना का माध्यम बने सिनेमा
प्रतिभा शर्मा ने चर्चा में हिस्सा लेते हुए आज के प्रसंग में अपने विचार देते हुए सिनेमा जगत को शांति और सद्भावना का मार्ग बनाने की जरूरत बताई। उन्होंने कहा कि आज जिस प्रकार से हिंसक मनोवृत्तिया बढ़ती जा रहीं हैं और सात्विक सोच से लोग दूर होते जा रहे हैं, उसपर गंभीरता से सोचना और बेहतरीन फिल्में बनाना, समय की माग है। 'संवाद' के सूत्र संचालन का दायित्व मयंक शेखर ने निभाया।