कौमी एकता की मिशाल बन गया यह चबूतरा
महात्मां गांधी बिहार के चंपारण जाते समय कुशीनगर में रुके थे। जिस स्थान पर बापू रुके थे वह स्थान अब कौमी एकता की मिशाल बन गया है।
By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Thu, 27 Sep 2018 02:45 PM (IST)Updated: Fri, 28 Sep 2018 05:05 PM (IST)
गोरखपुर, (अजय कुमार शुक्ल)। यहां महात्मा गांधी के कदमों के निशां की गवाही देता गांधी चबूतरा कौमी एकता का मिशाल माना जाता है। कुशीनगर जिले के विकास खंड नेबुआ नौरंगिया के गांव नौरंगिया में बने इस चबूतरे के पास पहले रहे बगीचे में रुक कर उन्होंने आराम किया था तो नाश्ता-पानी भी।
कुशीनगर होकर गए थे पश्चिमी चंपारण
नील की खेती को लेकर किसानों पर लागू तीन कठिया व्यवस्था के खिलाफ किसानों के समर्थन में महात्मा गांधी कुशीनगर से होते हुए पश्चिमी चंपारण गए थे। चंपारण जाते समय गांधी जी नौरंगिया गांव के एक बगीचे में रुके थे। ग्रामीणों ने इस ऐतिहासिक जगह पर एक चबूतरा का निर्माण करा दिया है, जिसे गांधी चबूतरा के नाम से जाना जाता है। लोग बताते हैं कि हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने हेतु गांधी जी इसी गांव के एक अल्पसंख्यक परिवार के घर से टोटी लगे (पानी पीने का विशेष पात्र) लोटा में पानी मंगवा कर पिया था। रास्ते में छितौनी में नारायणी नदी में स्नान भी किया था। यहां से ट्रेन से चंपारण गए थे। उनकी इस यात्रा की चर्चा सबकी जुंबा पर चर्चा का विषय आज भी रहती है तो कौमी एकता को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के परिवार से विशेष पात्र में पानी पीने की चर्चा कर, सामाजिक एकता की बात की जाती हैं।
सभी ने मिलकर किया था रुकने का इंतजाम
गांधी जी के लिए इस बगीचे में रुकने को लेकर सभी लोगों ने एक साथ मिलकर इंतजाम किया था। 89 वर्षीय बिरझन मियां कहते हैं कि मैं छोटा था, अब्बा ने बताया कि गांधी जी आए हैं। उनको देखने पूरा गांव ही नहीं पूरा जवार उमड़ पड़ा था। आज भी जहां उनके पांव पड़े थे, उसे गांधी चबूतरा के नाम से जाना जाता है। यह पूरे क्षेत्र के गौरव के रूप में भी देखा जाता है। हमने केवल भीड़ देखी थी, उनकी झलक न देख पाने का मलाल है, लेकिन उनके पांव की वह हलचल व भीड़ का वह कौतूहल भुलाए भी नहीं भूलता है। मन: मस्तिष्क में वह आज भी उसी तरह जिंदा है जब कभी गांधी जी यहां आए थे।
कुशीनगर होकर गए थे पश्चिमी चंपारण
नील की खेती को लेकर किसानों पर लागू तीन कठिया व्यवस्था के खिलाफ किसानों के समर्थन में महात्मा गांधी कुशीनगर से होते हुए पश्चिमी चंपारण गए थे। चंपारण जाते समय गांधी जी नौरंगिया गांव के एक बगीचे में रुके थे। ग्रामीणों ने इस ऐतिहासिक जगह पर एक चबूतरा का निर्माण करा दिया है, जिसे गांधी चबूतरा के नाम से जाना जाता है। लोग बताते हैं कि हिन्दू-मुस्लिम एकता को बल देने हेतु गांधी जी इसी गांव के एक अल्पसंख्यक परिवार के घर से टोटी लगे (पानी पीने का विशेष पात्र) लोटा में पानी मंगवा कर पिया था। रास्ते में छितौनी में नारायणी नदी में स्नान भी किया था। यहां से ट्रेन से चंपारण गए थे। उनकी इस यात्रा की चर्चा सबकी जुंबा पर चर्चा का विषय आज भी रहती है तो कौमी एकता को लेकर अल्पसंख्यक समुदाय के परिवार से विशेष पात्र में पानी पीने की चर्चा कर, सामाजिक एकता की बात की जाती हैं।
सभी ने मिलकर किया था रुकने का इंतजाम
गांधी जी के लिए इस बगीचे में रुकने को लेकर सभी लोगों ने एक साथ मिलकर इंतजाम किया था। 89 वर्षीय बिरझन मियां कहते हैं कि मैं छोटा था, अब्बा ने बताया कि गांधी जी आए हैं। उनको देखने पूरा गांव ही नहीं पूरा जवार उमड़ पड़ा था। आज भी जहां उनके पांव पड़े थे, उसे गांधी चबूतरा के नाम से जाना जाता है। यह पूरे क्षेत्र के गौरव के रूप में भी देखा जाता है। हमने केवल भीड़ देखी थी, उनकी झलक न देख पाने का मलाल है, लेकिन उनके पांव की वह हलचल व भीड़ का वह कौतूहल भुलाए भी नहीं भूलता है। मन: मस्तिष्क में वह आज भी उसी तरह जिंदा है जब कभी गांधी जी यहां आए थे।
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