राजनीतिक कार्यक्रम में शिक्षकों के प्रतिभाग पर रोक शिक्षकों के लोकतांत्रिक अधिकार का हनन
शिक्षकों के राजनीतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पर रोक लगाने के गोरखपुर विश्वविद्यालय के निर्णय का शिक्षकों और पूर्व शिक्षकों ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इसे अनुचित और असंवैधानिक करार दिया है और आदेश निरस्त करने की मांग उठाई है।
गोरखपुर, जागरण संवाददाता। शिक्षकों के राजनीतिक कार्यक्रम में हिस्सा लेने पर रोक लगाने के निर्णय का शिक्षकों और पूर्व शिक्षकों ने कड़ा विरोध जताया है। उन्होंने इसे अनुचित और असंवैधानिक करार दिया है और आदेश निरस्त करने की मांग उठाई है। उनका कहनाा है कि यह निर्णय शिक्षकों के राजनीतिक अधिकार का हनन है, जिसे वह हरगिज नहीं होने देंगे। विरोध जताने वालों में लखनऊ विश्वविद्यालय का शिक्षक संघ भी शामिल है। संघ के अध्यक्ष ने निर्णय की निंदा करते हुए कहा है कि शिक्षकों पर पाबंदी उचित नहीं है। यह निर्णय वापस होना चाहिए।
शिक्षकों की भागीदारी से बेहतर होती है राजनीतिक प्रणाली
गोविवि शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. चित्तरंजन मिश्र ने कहा कि शिक्षकों की भागीदारी से राजनीतिक प्रणाली बेहतर होती है। ऐसे में विश्वविद्यालय प्रशासन का यह आदेश राजनीतिक प्रणाली काे दूषित करने वाला है। यह आदेश अगर सार्वजनिक रूप से लागू हो जाए तो राजनीति केवल अपढ़ लोगों के लिए रह जाएगी। निश्चित रूप से इस फैसले को तत्काल वापस लेने की जरूरत है। अगर ऐसा नहीं होगा तो शिक्षकों समुदाय लोकतांत्रिक प्रक्रिया में भाग लेने से वंचित रह जाएगा, जिसका सीधा नुकसान भारतीय लोकतंत्र को होगा।
राजनीतिक भागीदारी शिक्षकों का संंवैधानिक अधिकार
गुआक्टा के महामंत्री डा. धीरेंद्र सिंह बताते हैं कि राजनीतिक भागीदारी शिक्षकों का संवैधानिक अधिकार है। ऐसे में गोरखपुर विश्वविद्यालय का यह निर्णय शिक्षकों के अधिकारों का हनन करने वाला है। बहुत से ऐसे उदाहरण हैं, जिसमें विश्वविद्यालय के शिक्षकों ने राजनीतिक कार्यक्रमों न केवल हिस्सा लिया है बल्कि चुनाव लड़ा है और जीता भी है। ऐसे में इस आदेश से शिक्षकों की स्वतंत्रता भी बाधित होती है। विश्वविद्यालय अर्धशासकीय संस्थान है। इसके शिक्षक राजनीति की हर प्रक्रिया में हिस्सा ले सकते हैं।
स्वायत्तशासी संस्था है विश्वविद्यालय
गोरखपुर विशवविद्यालय शिक्षक संघ के पूर्व अध्यक्ष प्रो. एसएन चतुर्वेदी बताते हैं कि विश्वविद्यालय एक स्वायत्तशासी संस्था है इसलिए इसका शिक्षक सरकारी कर्मचारी नहीं होता। ऐसे में वह राजनीतिक भागीदारी के लिए स्वतंत्र है। विश्वविद्यालय का यह निर्णय आश्चर्यचकित और दुखी करने वाला है। मैं व्यक्तिगत रूप से इसका विरोध करता हूं। मुझे लगता है कि विश्वविद्यालय के शिक्षकों को इस फैसले के विरोध में आगे आना चाहिए। अगर यह फैसला निरस्त नहीं हुआ तो राजनीतिक व्यवस्था को शिक्षकों का मार्गदर्शन मिलना बंद हो जाएगा।
पाबंदी का विरोध
लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ के अध्यक्ष डा. विनीत वर्मा ने कहा कि लखनऊ विश्वविद्यालय शिक्षक संघ शिक्षकों पर इस प्रकार की पाबंदी का विरोध करता है। यह विश्वविद्यालय शिक्षकों को प्राप्त संवैधानिक अधिकारों का हनन है। राजनीतिक कार्यक्रमों में भाग लेने से विश्वविद्यालय की छवि कैसे धूमिल हो सकती है? जिस सरकार में उप मुख्यमंत्री स्वयं विश्वविद्यालय का शिक्षक हो क्या वह सरकार इस प्रकार की पाबंदी का समर्थन करती है? यदि नहीं, तो तत्काल कार्यवाही होनी चाहिए।