सीएम सिटी गोरखपुर में खतरनाक स्तर पर पहुंचा वायु प्रदूषण Gorakhpur News
गोरखपुर की आब-ओ-हवा दिन-प्रति-दिन जहरीली होती जा रही है। बच्चों बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है।
गोरखपुर, जेएनएन। गोरखपुर की आब-ओ-हवा दिन-प्रति-दिन जहरीली होती जा रही है। बच्चों, बुजुर्गों और बीमार व्यक्तियों को ध्यान में रखकर अगर इसका मूल्यांकन करें तो यह खतरनाक स्तर तक पहुंच गई है। अगर इसे लेकर चेता नहीं गया तो आने वाले समय में हवा में मौजूद जहरीले तत्व हर किसी को सांस का रोगी बना देंगे। वजह की बात करें तो गोरखपुर की हवा में बढ़े प्रदूषण की सबसे बड़ी वजह बीते एक दशक में तेजी से बढ़ी वाहनों की तादाद है। विकास की दौड़ में इसे कम करना तो संभव नहीं लेकिन पर्यावरण के मानक पर उन्हें खरा उतार कर उनसे होने वाले प्रदूषण पर कुछ हद तक नियंत्रण जरूर पाया जा सकता है।
बीमार बना रही है दूषित हवा
हवा के बगैर मनुष्य 5-6 मिनट से अधिक जिंदा नहीं रह सकता। एक मनुष्य दिन भर में औसतन 20 हजार बार सांस लेता है। वायुमंडल में नाइट्रोजन, आक्सीजन, कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड आदि गैसें निश्चित अनुपात में मौजूद हैं। इनके अनुपात का संतुलन बिगडऩे पर वायुमंडल अशुद्ध होता है जो इंसान के लिए बेहद हानिकारक साबित हो रहा है। विकास की दौड़ में गोरखपुर इस जाल में फंसता जा रहा है। हवा को दूषित करने वाले कार्बन डाई आक्साइड, कार्बन मोनो आक्साइड, नाइट्रोजन आक्साइड, हाइड्रोकार्बन, धूल मिट्टी के कण की वायु में अधिकता लोगों को बीमार कर रही है।
गोरखपुर के वायु प्रदूषण की स्थिति
केंद्रीय प्रदूषण नियंत्रण बोर्ड के वायु गुणवत्ता अनुश्रवण कार्यक्रम के तहत वायु की गुणवत्ता परखने के लिए शहर के तीन अलग-अलग क्षेत्रों में मशीन लगाई गई हैं। औद्योगिक क्षेत्र के लिए गीडा में, व्यावसायिक क्षेत्र के लिए गोलघर जलकल भवन पर और रिहायशी इलाके के लिए मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय परिसर में मशीन लगाई गई हैं। तीनों स्थानों पर तीन माह में वायु प्रदूषण के आंकड़े।
जुलाई
स्थान पीएम-10 एसओ-2 एनओ-2 एक्यूआइ
एमएमएमयूटी 153.00 4.56 13.25 135
जलकल 263.61 18.09 28.7 214
गीडा 288.89 25.04 38.24 239
जून
एमएमएमयूटी 178.71 6.5 16.47 152
जलकल 299.35 20.63 32.70 249
गीडा 325.21 29.61 44.63 275
मई
एमएमएमयूटी 274.79 15.06 25.44 225
जलकल 329.94 35.02 46.64 280
गीडा 351.29 40.38 53.96 302
इस एक्यूआइ का मानक
0-50 : बहुत कम असर होता है, खतरा नहीं।
51-100 : बीमार लोगों को सांस लेने में मामूली दिक्कत।
101-200 : बच्चे, बुजुर्ग व दिल, फेफड़ा रोगियों को सांस लेने में दिक्कत।
201-300 : सभी लोगों को सांस लेने में कठिनाइयां शुरू होंगी।
301-400 : लोग सांस की बीमारियों के घेरे में आ जाएंगे।
401-अधिक : हर स्वस्थ्य इंसान को सांस की बीमारी हो सकती है।
इसे भी जानें
पीएम-10 : आरएसपीएम (रेस्परेबल सस्पेंडेड पर्टिकुलेट मैटर) को पीएम-10 कहा जाता है। हवा में मौजूद दिखाई न देने वाले ये कण 0-10 माइक्रॉन साइज के होते हैं। 50 माइक्रान से उपर के कण ही आंख से देखे जा सकते हैं। ये कण सांस के रास्ते फेफड़े में पहुंचकर श्वसन तंत्र को प्रभावित करते हैं।
एसओ-2 : प्रदूषित हो चुके वायुमंडल में आक्सीजन के साथ सल्फर डाई आक्साइड की भी पर्याप्त मात्रा में मौजूदगी हो चुकी है। एसओ-2 श्वसन तंत्र को प्रभावित करता ही है साथ ही पानी के साथ मिलने पर यह सल्फुरिक एसिड बनकर श्वांस नली में मौजूद सीलिया को भी प्रभावित करता है।
एनओ-2 : नाइट्रोजन डाईआक्साइड हवा के साथ फेफड़े में जाकर उसे प्रभावित करता है। यही नहीं ओजोन परत को डैमेज करने में भी एनओ-2 की अहम भूमिका है। वातावरण में इसकी मौजूदगी सांस व दिल के रोगियों की बीमारी को बढ़ाने सहायक बनती है।
एक्यूआइ : एयर क्वालिटी इंडेक्स को वायु गुणवत्ता सूचकांक भी कहा जाता है। इसके जरिए हमें वायुमंडल और वातारण में मौजूद हवा की गुणवत्ता की जानकारी मिलती है।
शहर की हवा तेजी से प्रदूषित हो रही है। बच्चों, महिलाओं और बुजुर्गो के लिए तो यह खतरनाक स्तर पर पहुंच चुकी है। वाहनों की बढ़ती संख्या इसके लिए सर्वाधिक जिम्मेदार है। ऐसे में वाहनों से हो रहे प्रदूषण पर नियंत्रण बेहद जरूरी है। - प्रो.गोविंद पांडेय, पर्यावरण विशेषज्ञ