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इस आयोजन के बाद प्रो. सतीश मित्तल ने ली अंतिम सांस, यादगार बन गया सीएम योगी का यह कार्यक्रम Gorakhpur News

गोरखनाथ मंदिर में आयोजित कार्यक्रम में सीएम योगी की मौजूदगी में प्रो. सतीश चंद्र मित्तल का उद्बोधन अंतिम उद्बोधन बन गया। इस कार्यक्रम के बाद प्रो. मित्‍तल ने अंतिम सांस लिया।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 13 Sep 2019 12:37 PM (IST)Updated: Fri, 13 Sep 2019 01:03 PM (IST)
इस आयोजन के बाद प्रो. सतीश मित्तल ने ली अंतिम सांस, यादगार बन गया सीएम योगी का यह कार्यक्रम Gorakhpur News
इस आयोजन के बाद प्रो. सतीश मित्तल ने ली अंतिम सांस, यादगार बन गया सीएम योगी का यह कार्यक्रम Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो. सतीश चंद्र मित्तल का अंतिम उद्बोधन यादगार बन गया। किसी ने यह सोचा नहीं था कि बतौर मुख्य वक्ता उन्हें ब्रह्मलीन महंत दिग्विजयनाथ की 125वीं जयंती व 50वीं पुण्यतिथि और महंत अवेद्यनाथ की जन्मशताब्दी व 5वीं पुण्यतिथि पर आयोजित समारोह में गुरुवार को अंतिम बार सुनने का मौका मिल रहा है। आध्यात्मिक माहौल में भव्य आगाज के साथ शुरू हुए सात दिवसीय आयोजन के पहले दिन मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ की मौजूदगी में औपचारिक उद्घाटन के बाद 'राष्ट्रीय पुनर्जागरण यज्ञ और संत समाज' विषय पर संगोष्ठी का आयोजन हुआ।

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मुख्य वक्ता के रूप में मौजूद थे प्रो. सतीश

संगोष्ठी में बतौर मुख्य वक्ता भारतीय इतिहास संकलन योजना के राष्ट्रीय अध्यक्ष प्रो.सतीश चंद्र मित्तल ने कहा कि संतों के योगदान से ही भारत को विश्वगुरु की उपाधि हासिल हुई थी। उनके त्याग और तपस्या से ही भारत की समृद्ध आध्यात्मिक परंपरा विश्व में मजबूत जगह बना सकी है। भारत की वसुधैव कुटुंबकम की परंपरा ही विश्व बंधुत्व की परंपरा बनी है। भारतीय संत परंपरा जियो और जीने दो की अवधारणा में विश्वास रखती है। संतों ने राष्ट्र उद्धार के लिए धर्म, अध्यात्म, ज्ञान और विज्ञान की बात की है। उनके एक-एक शब्द में जीवन दर्शन छिपा है। समर्थ गुरुरामदास, रामकृष्ण परमहंस, संत तुकाराम जैसे संतों का उल्लेख करते हुए उन्होंनेे कहा कि संतों ने जीवन के हर क्षेत्र में हमारा मार्गदर्शन किया है। देश की युवा पीढ़ी को दिग्भ्रमित होने से बचाने की जिम्मेदारी भी इस समाज ने उठाई है।

दुनिया भर में होता है भारतीय संतों का सम्‍मान

विशिष्ट वक्ता प्रो.रामअचल सिंह ने कहा कि विश्व की कई संस्कृतियां नष्ट हो गईं, लेकिन अगर भारत की संस्कृति अभी जीवित है, तो उसका पूरा श्रेय संत समाज को जाता है। यही वजह है कि दुनिया भर के विद्वानों ने अपनी ज्ञान परंपरा में भारतीय संतों के संदेशों का इस्तेमाल किया है। अयोध्या से आए स्वामी श्रीधराचार्य ने कहा कि देश के नैतिक मूल्यों की रक्षा के लिए ही संत समाज का उदय हुआ है। गोरक्ष पीठ इसका उदाहरण है। स्वागत संबोधन प्रो.उदय प्रताप सिंह ने का रहा जबकि संचालन की जिम्मेदारी डॉ. श्रीभगवान सिंह ने निभाई। इस अवसर पर महंत सुरेश दास, स्वामी राघवाचार्य, महंत शिवनाथ, धर्मदास, गंगा दास, अवधेश दास, मिथिलेश नाथ के अलावा सांसद रवि किशन, मेयर सीताराम जायसवाल, अंजू चौधरी, डॉ. सत्या पांडेय आदि मौजूद रहीं।

संतों ने किया राष्ट्र पुननिर्माण का शंखनाथ : स्वामी डॉ. श्यामदेवाचार्य

समारोह के उद्घाटन सत्र में बतौर मुख्य अतिथि गीताधाम जबलपुर के स्वामी डॉ. श्यामदेवाचार्य ने कहा कि बहुत दिनों तक विश्वगुरु के पद पर आसीन रहने वाला हमारा देश जब आपसी फूट और स्वार्थपूर्ति के कारण पराधीन हो गया। संत समाज ने ही इसे एक सत्र में बांधने का कार्य किया। स्वामी विवेकानंद ने राष्ट्र पुनर्निर्माण के लिए जब शंखनाद किया तो उनकी आवाज विश्व पटल पर गूंजी। यहां तक कि स्वतंत्रता संग्राम की प्रेरणा भी संतों की देन है। सामाजिक चिंतन के क्षेत्र में संतों ने जो कार्य किया वह अविस्मरणीय है। स्वामी रामदेव ने योग को विश्व स्तर पर स्थापित कर भारत का गौरव बढ़ाया तो गोरक्षपीठ ने लोक कल्याण की दिशा में उल्लेखनीय कार्य से संतों की परंपरा को समृद्ध किया। 


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