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पहले बार्डर के थे रक्षक, अब पर्यावरण के बन गए हैं प्रहरी

कैप्टन महेश दुबे कारगिल युद्ध के समय भी बार्डर पर तैनात थे। रिटायर होने के बाद जब वह घर आए तो उन्होंने पौधे लगाना शुरू कर दिया।

By JagranEdited By: Published: Thu, 14 Feb 2019 05:40 AM (IST)Updated: Thu, 14 Feb 2019 05:40 AM (IST)
पहले बार्डर के थे रक्षक, अब पर्यावरण के बन गए हैं प्रहरी
पहले बार्डर के थे रक्षक, अब पर्यावरण के बन गए हैं प्रहरी

गोरखपुर, जेएनएन। देवरिया जनपद के ग्राम परसिया अजमेर निवासी कैप्टन महेश दुबे एक सैनिक के रूप में 25 वर्ष तक देश की सुरक्षा के लिए सीमा पर दुश्मनों से मोर्चा लेते रहे। कैप्टन महेश ने अब अपने घर आकर अपने को पर्यावरण की सुरक्षा में लगा दिया है। उनकी बगिया में दो दर्जन से अधिक प्रजाति के औषधीय पौधे लहलहा रहे हैं। आस-पास के गांवों के लोग भी पौधों के बारे में इनसे जानकारी लेने आते हैं।

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कैप्टन महेश दुबे स्नातक की शिक्षा ग्रहण करने के उपरांत 24 जुलाई 1974 में आर्मी के सिग्नल कोर पद पर जबलपुर में भर्ती हुए। कारगिल युद्ध के दौरान पाक सेना से भी लोहा लिया। उसके बाद उन्होंने 1998 में अवकाश ग्रहण कर लिया।

अवकाश ग्रहण करने के बाद पर्यावरण की सुरक्षा में लगे

अवकाश ग्रहण करने के बाद जब वह घर आए तो उन्होंने पर्यावरण व सेहत की सुरक्षा करने को ठानी। 1999 में अपनी जमीन में पौधे लगाने का कार्य शुरू किया। प्रदेश के विभिन्न हिस्से से पौधों को लाकर उनका रोपण किया। इस समय उनकी बगिया विभिन्न औषधीय पौधों से लहलहा रही है।

ये पौधे और पेड़ हैं उनकी बगिया में

उनकी बगिया में मनी प्लांट, अश्वगंधा, सर्पगंधा, रिकापाम, एलोवेरा, एवरग्रीन, शो प्लांट, साईकसक्रोटेन आदि औषधीय पौधों के अलावा सागौन, आम, और पुष्पीय पौधे लहलहा रहे हैं।

पर्यावरण व सेहत की सुरक्षा मेरा लक्ष्य

कैप्टन महेश दुबे ने बताया कि आम जन को राहत दिलाने के साथ पर्यावरण को सुरक्षित रखना मेरा लक्ष्य है। किचन गार्डेन, खेती करना मेरी व्यक्तिगत रूचि है सेना में रहकर भी मेरा पेड़ पौधों व औषधियुक्त पौधे व फूलों से काफी लगाव रहा है। अवकाश प्राप्त करने के बाद मैंने तय किया कि पेंशन का कुछ हिस्सा गरीबों की सेवा व पर्यावरण की सुरक्षा में खर्च करुंगा। पर्यावरण में प्रदूषण का जहर फैल रहा है। ऐसे दौर में पौधे लगाकर ही इस समस्या से निपटा जा सकता है।


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