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यादें : 50 साल बाद कॉलेज व साथियों से मिल निहाल हुईं आंखें Gorakhpur News

एमएमएमयूटी में एलुमनाई मीट का आयोजन किया गया। इसमें 10 वर्ष पूर्व से लेकर 50 वर्ष पुराने एलुमनाई आमंत्रित किए गए थे।

By Pradeep SrivastavaEdited By: Published: Fri, 27 Dec 2019 09:01 AM (IST)Updated: Fri, 27 Dec 2019 03:42 PM (IST)
यादें : 50 साल बाद कॉलेज व साथियों से मिल निहाल हुईं आंखें Gorakhpur News
यादें : 50 साल बाद कॉलेज व साथियों से मिल निहाल हुईं आंखें Gorakhpur News

गोरखपुर, जितेन्द्र पांडेय। मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय 1969 में बीई पासआउट लोगों के लिए आज भी कॉलेज है। यहां पहुंचने पर उनकी यादें फिर से ताजा हो उठीं। कोई अपने किसी पुराने साथी को पाकर लिपट गया तो कोई एकटक अपने पुराने साथी को देखने लगा। दिमाग पर जोर डालने पर यह वही है अथवा कोई और। फिर अचानक आंखों में चमक सी आ गई और फिर जोर-जोर आवाज लगाना शुरू कर दिया। ऐ जेके सिंह, इधर आओ। गले मिलते ही आंखें अचानक नम हो उठतीं।

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एलुमनाई मीट में जुटे पुराने यार

एमएमएमयूटी में एलुमनाई मीट का आयोजन किया गया था। इसमें 10 वर्ष पूर्व से लेकर 50 वर्ष पुराने एलुमनाई आमंत्रित किए गए थे। 10 वर्ष पुराने एलुमनाई तो फिट नजर आ रहे थे। 50 वर्ष पूर्व यहां से बीई उत्तीर्ण करने वाले थोड़े अस्वस्थ, पर अपने पुराने साथियों को पाकर सभी इतना ऊर्जा से लबरेज नजर आए जैसे उन्होंने अभी कल ही कालेज छोड़ा हो। हंसी-ठिठोली  बीच बदमाशियों पर चर्चा हुई। सभी ने एमएमएमयूटी को धन्यवाद दिए और कहा कि उन्हें फिर मिलने का मौका दिया।

सुभाष हास्टल के एक नंबर कमरे में रहता था मैं

एग्जाम पास करने के बाद यहां कभी आना नहीं हुआ। पहले पालिटेक्निक के पास हमारी पढ़ाई होती थी। 1967 में यहां शिफ्ट हुआ तो यहां सिर्फ एक सुभाष हास्टल था। उसके एक नंबर कमरे में मैं रहता था। - दिनेश प्रताप सिंह, सेवानिवृत्त सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर

कालेज छोड़कर गए थे लौटे तो यूनीवर्सिटी मिली

1967 में शिफ्ट हुए तो यहां 500 एकड़ में अकेला हास्टल था। 1969 में कालेज छोड़कर गए थे। अब आएं हैं तो यह यूनीवर्सिटी हो चुकी है। - राणा प्रताप सिंह, सेवानिवृत्त सुप्रीटेंडेंट इंजीनियर

इतनी खुशी मिली कि शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता

यहां आकर इतनी खुशी मिली है कि उसे शब्दों में नहीं व्यक्त कर सकता हूं। माता-पिता के बाद जीवन में तीसरा स्थान शिक्षण संस्थान का ही होता है। - जय कृष्ण सिंह, सेवानिवृत्त अधिशासी अभियंता

साथियों से मिलकर हुई बेहद खुशी

सर्विस के दौरान दो बार यहां आने का मौका मिला। यहां तमाम लोग ऐसे हैं, जिनसे 50 साल बाद मुलाकात हुई। यह पल किसी सौगात से कम नहीं है। - केके वाजपेयी, सेवानिवृत्त रेलवे बोर्ड के एडिशनल मेंबर।


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