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रिपोर्ट लिखाने में उर्दू और फारसी शब्‍दों को बंद करने के निर्देश से अधिवक्‍ताओं में खुशी, हाईकोर्ट की सराहना Gorakhpur News

आजादी के पहले से ही पुलिस के काम-काज में उर्दू व फारसी के शब्दों का प्रयोग चला आ रहा है। समय के साथ उर्दू व फारसी भाषा आमजन की भाषा नहीं रह गई हैं।

By Satish ShuklaEdited By: Published: Sat, 30 Nov 2019 07:00 AM (IST)Updated: Sat, 30 Nov 2019 07:00 AM (IST)
रिपोर्ट लिखाने में उर्दू और फारसी शब्‍दों को बंद करने के निर्देश से अधिवक्‍ताओं में खुशी, हाईकोर्ट की सराहना Gorakhpur News
रिपोर्ट लिखाने में उर्दू और फारसी शब्‍दों को बंद करने के निर्देश से अधिवक्‍ताओं में खुशी, हाईकोर्ट की सराहना Gorakhpur News

गोरखपुर, जेएनएन। दिल्ली उच्‍च न्यायालय ने एक जनहित याचिका की सुनवाई करते हुए प्रथम सूचना रिपोर्ट दर्ज करने में उर्दू व फारसी के शब्दों का प्रयोग बंद करने का निर्देश दिया है। अधिवक्ताओं का कहना है कि यह समय की मांग भी है। आजादी के पहले से ही पुलिस के काम-काज में उर्दू व फारसी के शब्दों का प्रयोग चला आ रहा है। जिसका प्रभाव न्यायालय की भाषा पर भी पड़ता रहा है। समय के साथ उर्दू व फारसी भाषा, आमजन की भाषा नहीं रह गई हैं।

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आजादी के पहले अदालत की भाषा थी उर्दू

फौजदारी के वरिष्ठ अधिवक्ता हरि प्रकाश मिश्र का कहना है कि स्वतंत्रता के पूर्व न्यायालय की भाषा लगभग उर्दू थी। साथ ही फारसी शब्दों का प्रयोग भी प्रचलन में था। आज की नई पीढ़ी उर्दू, फारसी के शब्दों को बिल्कुल नहीं जानती है। उसकी भाषा ङ्क्षहदी और अंग्रेजी हो चुकी है। ऐसे में दिल्ली उ'च न्यायालय का निर्देश नई पीढ़ी के अनुरूप है जो सराहनीय है।

हाईकोर्ट का निर्णय स्‍वागत योग्‍य

वरिष्ठ अधिवक्ता यशवंत सिंह कहते हैं कि स्वतंत्रता के पहले कक्षा आठ तक उर्दू पढऩा अनिवार्य था। उस समय उर्दू भाषा का प्रयोग सामान्य बात थी। अब हिंदी सर्वजन की भाषा है। न्यायालय की भाषा भी सर्वजन की भाषा होनी चाहिए। प्रथम सूचना रिपोर्ट व जीडी में हिंदी का प्रयोग करने का उच्‍च न्यायालय का निर्णय स्वागतयोग्य है।

अब समझने में होगी आसानी

जेपी सिंह एडवोकेट भी इस निर्णय की सराहना करते हैं। उनका कहना है कि दिल्ली उच्‍च न्यायालय के निर्देश का दूरगामी परिणाम होगा। हिंदी हमारी राष्ट्रीय भाषा होने के साथ आमजन की भाषा है। प्रथम सूचना रिपोर्ट एवं जीडी में उसका प्रयोग किए जाने से आमजन को कार्यवाही समझने में आसानी होगी तथा मुकदमें की पैरवी प्रभावी हो सकेगी।

न्‍यायालय की हिंदी भाषा उचित

एडवोकेट जितेंद्र धर दूबे के अनुसार उच्‍च न्यायालय का निर्देश सम्मान योग्य है। नई पीढ़ी की भाषा हिंदी और अंग्रेजी बन चुकी है। उर्दू के शब्दों के बारे में जानकारी काफी कम हो गई है। कानून की भाषा साधारण तथा जनसामान्य की ही होनी चाहिए जिससे उससे प्रभावित लोग उसे समझ सकें तथा अपना पक्ष रख सकें।


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