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राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी है बस्ती में तैयार टेडीबीयर की Gorakhpur News

कभी अपने परिवार के लिए दो पैसे कमाने की ज‍िद्दोजहद कर रही परसाजागीर की कीसा देवी ने गांव की 10 महिलाओं को जोड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया। पहले खुद टेडीबीयर बनाना सीखा और कर्ज लेकर टेडीबीयर बनाने लगी।

By Rahul SrivastavaEdited By: Published: Sun, 03 Jan 2021 11:35 AM (IST)Updated: Sun, 03 Jan 2021 11:35 AM (IST)
राष्ट्रीय स्तर पर पहचान बन चुकी है बस्ती में तैयार टेडीबीयर की  Gorakhpur News
जय मां लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह परसाजागीर में टेडीबीयर बनाती महिलाएं। जागरण

संजय विश्वकर्मा, गोरखपुर: शीतकाल में सोने वाला भालू परसाजागीर की महिलाओं के हुनर से खिलौने में तब्दील हुआ और उनकी गरीबी से लड़ने लगा। कभी अपने परिवार के लिए दो पैसे कमाने की ज‍िद्दोजहद कर रही परसाजागीर की कीसा देवी ने गांव की 10 महिलाओं को जोड़कर स्वयं सहायता समूह बनाया। पहले खुद टेडीबीयर बनाना सीखा और कर्ज लेकर टेडीबीयर बनाने लगी। हुनर ने खिलौने में जान सी भर दी तो मांग भी बढ़ी। यह टेडीबीयर बस्ती सहित आसपास के जिलों के अलावा लखनऊ तक धूम मचा रहा। प्रयागराज में लगे कुंभ मेले के अलावा राष्ट्रीय स्तर पर आयोजित मेलों में समूह का टेडीबीयर आकर्षण का केंद्र होता है। महिलाओं का कारोबार अब हजारों की जगह लाखों में हो गया है। ये महिलाएं अब अपने परिवार का भरण पोषण तो कर ही रहीं हैं, साथ ही अन्य को रोजगार भी दे रही हैं।

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15 हजार रुपये का दिया गया रिवाल्विंग फंड

परसा जागीर बस्ती जिले के सदर विकास खंड की ग्राम पंचायत है। कीसा देवी ने अपने साथ गांव की 10 महिलाओं को जोड़कर 2016 में जय मां लक्ष्मी स्वयं सहायता समूह बनाया। राष्ट्रीय आजीविका मिशन की ओर से समूह को महज 15 हजार रुपये का रिवाल्विंग फंड दिया गया, हालांकि कोई कारोबार शुरू करने के लिए यह रकम पर्याप्त नहीं थी फिर भी समूह की महिलाओं ने आपसी सहयोग से 35 हजार रुपये एकत्र कर टेडीबेयर का कारोबार शुरू किया। कपड़ों की कटिंग का काम समूह की सदस्य ज्योति ने संभाली तो सिलाई और रुई भराई का कार्य समूह की अन्य महिलाओं ने। समूह की सचिव शकुंतला देवी ने बताया कि टेडीबीयर निर्माण की सामग्री दिल्ली और लखनऊ से मंगाई जाती है। उनके टेडीबीयर सस्ते होते हैं, ऐसे में उनकी डिमांड अधिक रहती है। महिलायें तीन साइज में टेडीबीयर तैयार करती हैं। सबसे छोटे की लागत 50 रुपये, जबकि बड़े की लागत 300 से 400 रुपये तक आती है। मध्यम साइज के टेडीबीयर की लागत 80 से 150 रुपये तक आती है। बिक्री में 20 से 25 फीसद का फायदा होता है।

लाखों में पहुंच चुका है कारोबार

समूह की ओर से 15 हजार से शुरू किया गया कारोबार लाखों में पहुंच चुका है। कोविड संक्रमण में कारोबार थोड़ा प्रभावित हुआ, मगर अब तक की जो स्थिति है उसके अनुसार तकरीबन ढाई लाख रुपये समूह की महिलाएं कमा चुकी हैं। वह घर में कामकाज निपटाने के बाद समूह की अध्यक्ष के घर पहुंचती हैं और जरूरत के हिसाब से अपना समय खर्च कर टेडीबीयर तैयार करती हैं। समूह की महिलाओं को अब छोटी-छोटी जरूरत के लिए परिवार के ऊपर निर्भर नहीं रहना पड़ता है। घर खर्च में मदद करने के साथ ही यह महिलाएं अपने बच्‍चों को अच्‍छी शिक्षा भी दिला रहीं हैं। 

राष्ट्रीय स्तर पर बनाई पहचान

समूह की कोषाध्यक्ष रूपा देवी ने बताया कि जिले स्तर से लेकर प्रदेश व राष्ट्रीय स्तर के मेलों में उनके समूह के टेडीबीयर का स्टाल लगता है। 2017 में उत्तर प्रदेश राज्य आजीविका मिशन की ओर से समूह को सम्मानित किया गया। इसके अलावा 2018 में दिल्ली के प्रगति मैदान में आयोजित सरस आजीविका मेला में भी समूह को सम्मानित किया गया। 2019 में वाराणसी के रीजनल सरस मेले और लखनऊ में आयोजित सरस महोत्सव में भी समूह को सम्मान पत्र मिला। 2020 में बांदा के कालिंजर महोत्सव में भी समूह को जिलाधिकारी की ओर से सम्मानित किया गया।


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