बढ़ते प्रदूषण से अंतिम सांसें गिन रहीं पूर्वांचल की एक दर्जन नदियां
पूर्वांचल को हरा-भरा रखने वाली एक दर्जन से ज्यादा नदियां मृतप्राय हो चुकी हैं। सरयू राप्ती व आमी समेत सभी नदियां प्रदूषण की मार झेल रही हैं कुछ नदियां तो सूख गई हैं।
गोरखपुर, राजेश्वर शुक्ल। पूर्वांचल को हरा-भरा रखने वाली एक दर्जन से ज्यादा नदियां मृतप्राय हो चुकी हैं। जो बची हैं, उनके अस्तित्व पर खतरा मंडरा रहा है। सरयू, राप्ती व आमी समेत सभी नदियां प्रदूषण की मार झेल रही हैं। कुछ तो सूख गई हैं। नदियों के सूखने एवं उनके जल स्तर में हो रही कमी किसी त्रासदी से कम नहीं। पूर्वी उत्तर प्रदेश के जिलों में जिस तरह से भू-जल स्तर गिरता जा रहा है एवं पानी का संकट गंभीर होता जा रहा है, यह चिंतनीय है। इनमें से ज्यादातर गंगा की सहायक नदियां (ट्रिब्यूटरी) हैं। 'जल ही जीवन है' और 'पानी को बर्बादी से बचाएं' जैसे लुभावने नारे तो सुनने और पढऩे को मिलते हैं, लेकिन कीमती जल को बचाने के प्रति जनता गंभीर है न सरकार। नहाने, सिंचाई करने, पूजा-पाठ से लेकर सभी संस्कार आज भी इन्हीं नदियों के किनारे होते हैं। पानी का जीवन में क्या महत्व है, यह नदियों के किनारे बसने वाले ही बता सकते हैं। नदियों की धारा बनाए रखने एवं इन्हें प्रदूषण से मुक्त करने की बात सरकारी तौर पर समय-समय पर की जाती है तथा तमाम योजनाएं भी बनती रही हैं लेकिन कोई भी योजना कारगर रूप से नहीं लागू हो पाई। खुद सरकारी आंकड़े बताते हैं कि प्रदूषण कम होने की बजाय और बढ़ा है।
आमी
उत्तर प्रदेश में पूर्वांचल के सिद्धार्थनगर, बस्ती, संतकबीरनगर और गोरखपुर से होकर बहने वाली आमी नदी का पानी औद्योगिक कचरे के कारण इतना जहरीला हो गया है कि उसे पीकर जानवर तो मौत के मुंह में पहुंच ही रहे हैं, उसके किनारे बसे ग्रामीण भी बीमारियों के शिकार होने लगे हैं। बौद्ध काल की साक्षी रही आमी नदी प्रदूषण के कारण खत्म होने की कगार पर है। यह नदी गंदे नाले का रूप ले चुकी है। आमी नदी की वर्तमान स्थिति देखकर लगता ही नहीं कि 600-700 ईसा पूर्व इसके किनारे बौद्ध धर्मावलंबियों की आबादी रही होगी। नदी के प्रदूषित होने का कारण गोरखपुर औद्योगिक विकास प्राधिकरण 'गीडा' और कई अन्य इकाइयों में शोधन संयत्र नहीं होना बताया जा रहा है। राप्ती नदी से निकलकर फिर उसी में विलीन हो जाने वाली इस नदी को प्रदूषण से बचाने को कई बार जन आंदोलन शुरू किया गया, लेकिन इसके लिए जिम्मेदार संस्थाएं आंख मूंदकर चुपचाप बैठी रहीं। यह नदी प्रदूषण के कारण अब एक पतली काली रेखा के रूप में दिखाई देती है। इसका पानी इस कदर जहरीला हो गया है कि इस्तेमाल करने वालों को त्वचा रोग की शिकायत आम हो गई है। नदी के तट पर बसे गांवों के लोगों का उससे उठने वाली दुर्गंध से जीना दूभर हो गया है। आमी नदी में मछली एवं कछुआ के बारे में सोचना भी कल्पना मात्र है। ऐसा नहीं कि आमी की दुर्दशा के बारे में अधिकारियों व मंत्रियों को जानकारी नहीं है। जिले के अधिकारी आमी की सफाई एवं उसमें गिर रहे नालों को रोकने, नौका विहार एवं पौधरोपण जैसी योजना भी बनाते हैं, लेकिन ये प्लान कागजों तक ही सीमित हैं।
राप्ती
शहर की एक बड़ी आबादी का मल-मूत्र सीधे विभिन्न नालों से होकर राप्ती नदी में गिर रहा है, जो प्रदूषण का मुख्य कारण है। नदी के दोनों किनारों के बंधों पर लोगों ने कब्जा कर बड़ी-बड़ी अट्टालिकाएं बना ली हैं। इन नदियों के अस्तित्व को बनाए रखने के लिए वास्तविक स्तर पर प्रयास करने होंगे वरना बड़ी देर हो जाएगी।
सरयू
सरयू नदी (घाघरा, सरजू व शारदा) हिमालय से निकलकर विभिन्न जनपदों से होते हुए बस्ती, संतकबीरनगर और गोरखपुर से निकलकर बलिया और छपरा के बीच गंगा में मिल जाती है।
गंडक
नेपाल से निकलकर कुशीनगर होते हुए बिहार के विभिन्न जनपदों से गुजरते हुए पटना में गंगा नदी में मिल जाती है। यह कुशीनगर में 55 किमी की दूरी तय करती है।
रोहिन
महराजगंज से होकर गोरखपुर में राप्ती नदी में मिलने वाली रोहिन नदी का यही हाल है। गर्मी शुरू होते-होते यह नदी सूख जाती हैं। इसके सूखने का सबसे बड़ा कारण यह है कि इनमें सिल्ट जमते-जमते ये छिछली हो गई हैं। बारिश के कुछ घंटे बाद ही इनका पानी बह जाता है। इस समस्या का अध्ययन करने वाले सिंचाई विभाग की राय है कि जब तक इन नदियों में जमी सिल्ट को हटाकर गहरा नहीं किया जाएगा तब तक गहरे पानी की कल्पना करना बेमानी होगा।
कुआनो
कुआनो नदी का वजूद भी खतरे में है। साल-दर-साल नदी का जलस्तर गिरता जा रहा है और इसका स्वरूप नाले जैसा हो गया है। गुर्रा नदी का भी अस्तित्व मिटने की कगार पर है। इन नदियों के सूखने से आम आदमी और पशुओं की पेयजल की भी समस्या पैदा हो गई है। पहले शहरवासी पानी के संकट से जूझते थे, लेकिन अब तो ग्रामीण भी पानी की कमी की मार झेल रहे हैं।
औद्योगिक इकाइयों के अपजल को नदी में जाने से रोका जाए
आमी बचाओ मंच के अध्यक्ष विश्वविजय सिंह ने कहा कि जो नदी जीवनदायिनी थी, उसने अब जनजीवन को बेहाल कर दिया है। जरूरत इस बात की है कि औद्योगिक इकाइयों के अपजल को नदी में जाने से रोका जाए। आमी बचाओ आंदोलन जनांदोलन है, जिसमें गांव-गांव के लोग उठ खड़े हुए हैं, लेकिन राजनीतिक दल कोई मौका नहीं चूकना चाहते और इस मुद्दे पर भी राजनीतिक रोटियां सेंकने के लिए तैयार हैं पर सरकार कुछ करे या न करे, लोगों ने आमी को प्रदूषण मुक्त करने का बीड़ा उठा लिया है।
जनआंदोलन की जरूरत
मदन मोहन मालवीय प्रौद्योगिकी विश्वविद्यालय के प्रो. गोविंद पांडेय के अनुसार इन नदियों के तट पर हर साल सरयू महोत्सव, राप्ती महोत्सव, आमी महोत्सव जैसे खर्चीले आयोजन कर सरकार अपने कर्तव्य को पूरा मान लेती है पर जब तक इन नदियों को बचाने के लिए कारगर मुहिम को जन आंदोलन का रूप नहीं दिया जाएगा, तब तक नदियों को विनाश से बचाना संभव नहीं होगा। देश की प्रमुख नदियों को जोडऩे की बात सालों से चल रही है लेकिन आज तक इस पर अमल नहीं हुआ। उनका कहना है कि नदियों का पर्यावरण संतुलन बिगड़ रहा है, जो मानव जीवन के लिए खतरे का संकेत है। अत्यधिक जलादोहन एवं मल-जल की मात्रा बढऩे से नदियों के जल में लेड, क्रोमियम, निकेल, जस्ता आदि धातुओं की मात्रा बढ़ती जाती है जो मानव जीवन के लिए खतरे की घंटी है। उनका मानना है कि नदियां हमारी जीवन रेखा हैं। इन्हें हर कीमत पर बचाया जाना चाहिए। अगर इन नदियों का अस्तित्व समाप्त हो गया तो सरयू एवं राप्ती के हरे-भरे क्षेत्र को रेगिस्तान में बदलते देर नहीं लगेगी। न केवल पीने के पानी बल्कि खेती के लिए गंभीर समस्या पैदा हो जाएगी। वैज्ञानिकों का मानना है कि नदी किनारे खेती होनी चाहिए। अगर उनके दोनों किनारों पर कब्जा करके अट्टालिकाएं खड़ी की जाती रही, जैसा पूर्वी उत्तरप्रदेश की नदियों के तटों पर हो रहा है तो नदियों की सांसें थम जाएंगी।
गोरखपुर व बस्ती मंडल में नदियों, तटबंध और लाभान्वित क्षेत्रफल की स्थिति
सिंचाई विभाग के आंकड़ों के मुताबिक गोरखपुर मंडल के गोरखपुर, महराजगंज, कुशीनगर व देवरिया में प्रवाहित होने वाली बड़ी गंडक, राप्ती, घाघरा, कुआनो, रोहिन, गुर्रा, छोटी गंडक, चंदन, प्यासी व घोघी आदि प्रमुख नदियां हैं। इन नदियों पर 143 तटबंध हैं, जिसमें गोरखपुर में 65 तटबंधों की लंबाई 457.067 किमी है। बस्ती मंडल में बस्ती, सिद्धार्थनगर व संतकबीरनगर में प्रवाहित होने वाली नदियों में बान गंगा, बूढ़ी राप्ती, बाघा नाला, तीलार नाला, मनवर व सरयू आदि प्रमुख नदियां हैं।
- गोरखपुर मंडल -तटबंध 144-कुल लंबाई-1003.437 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--606466 हेक्टेयर
- जनपद गोरखपुर -तटबंध 65-कुल लंबाई-457.067 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--111570 हेक्टेयर
- जनपद महराजगंज -तटबंध 21-कुल लंबाई-168.310 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--20508 हेक्टेयर
- जनपद कुशीनगर -तटबंध 18-कुल लंबाई-122.637 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--412.593 हेक्टेयर
- जनपद देवरिया -तटबंध 40-कुल लंबाई-255.423 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--53795 हेक्टेयर
- बस्ती जनपद-तटबंध 15-कुल लंबाई-146.800 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--66754 हेक्टेयर
- सिद्धार्थनगर जनपद-तटबंध 52-कुल लंबाई-497.315 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--120975 हेक्टेयर
- संतकबीरनगर जनपद-तटबंध 16-कुल लंबाई-161.480 किमी--लाभान्वित क्षेत्रफल--35814 हेक्टेयर
अतिसंवेदनशील जनपदों में शुमार हैं सातों जिले
गोरखपुर-बस्ती मंडल के सातों जिले बाढ़ के लिहाज से अतिसंवेदनशील जिलों में शुमार हैं। अगर बेहतर प्लानिंग और नदियों की ड्रेजिंग के साथ ही दोनों ओर फलदार पौधे लगाए जाएं तो हर साल आने वाली बाढ़ विभीषिका से लोगों को मुक्ति मिल जाएगी।
सरकार को भेजा गया है प्रस्ताव
गीडा के मुख्य कार्यपालक अधिकारी संजीव रंजन ने कह कि आमी नदी को स्वच्छ करने के लिए 15 एमएलडी क्षमता का सीईटीपी (कामन इंफ्लुएंट ट्रीटमेंट प्लांट) लगाया जा रहा है। इसके लिए 11 एकड़ जमीन का अधिग्रहण कर लिया गया है। सीईटीपी स्थापित करने के लिए 79.76 करोड़ रुपये का प्रस्ताव नमामि गंगे योजना के तहत भारत सरकार को भेजा गया है। धनराशि मिलते ही कार्य शुरू करा दिया जाएगा। नदियों में प्रदूषण न हों इसके लिए सभी जरूरी उपाय किए जाएंगे।
स्थानीय लोगों ने कहा
कोल्हुई ग्रामसभा के साधु ने कहा कि वंशीवट घाट के सेमरहवा बाबा स्थान के पहले तक नदी का पानी साफ है। वहां का पानी आम लोग उपयोग में ला रहे हैं। जानवर भी नदी में नहा रहे हैं लेकिन गीडा का गंदा पानी मिलने के बाद नदी का स्वरूप पूरी तरह बिगड़ गया है। कोल्हुई के ही कतवारू बताते हैं कि आमी में गीडा का प्रदूषित जल बिना रोकटोक के गिर रहा है। इस कारण आसपास के गांव में संक्रामक बीमारियां भी फैल रही हैं। स्थानीय लोग चर्म रोग की समस्या से ग्रसित हैं। भड़सार के पारसनाथ बताते हैं कि मगहर से जो पानी आ रहा है वह यहां की अपेक्षाकृत ज्यादा साफ है। उधर से मछलियां भी आ रही हैं लेकिन गीडा के औद्योगिक इकाईयों का पानी मिलते ही नदी नाले में परिवर्तित हो जा रही है। प्रदूषण दूर करने के दावे सिर्फ कागजी हैं।