बहरापन दूर, अब बोल भी सकेंगे
जागरण संवाददाता, गोरखपुर बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग के डाक्टरों ने यहां काक्लियर इम्प्लांट
जागरण संवाददाता, गोरखपुर
बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग के डाक्टरों ने यहां काक्लियर इम्प्लांट कर जन्मजात बहरापन के शिकार मासूमों के सुनने की ताकत लौटा दी है। डाक्टरों का कहना है कि यह बच्चे न तो सुन पाते थे न बोल। अभिभावक यह समझ रहे थे कि इनको सुनने के साथ ही किसी विकृति के चलते बोलने में दिक्कत थी, लेकिन सच यह था कि चूंकि बच्चे सुन नहीं पाते थे, इसलिए बोलना भी नहीं सीख पाए। अब सुनने की ताकत लौटने से जल्द ही बोलना भी सीख जाएंगे और सामन्य बच्चों की तरह जिंदगी जी सकेंगे।
पूर्वी उत्तर प्रदेश में ऐसे बच्चों की तादाद काफी है। अध्ययन के अनुसार हर जन्म लेने वाले हर एक हजार बच्चों में एक इस समस्या से पीड़ित होता है। मेडिकल कालेज में काक्लियर इम्प्लांट की सुविधा उपलब्ध होने से बच्चों की जिंदगी में बदलाव लाया जा सकेगा।
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इन बच्चों का बदला जीवन
बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग के डाक्टर अब तक चार बच्चों का काक्लियर इम्प्लांट कर चुके हैं। ईएनटी के विभागाध्यक्ष डा. आरएन यादव के अनुसार कुशीनगर के आठ साल के अविनाश और संतकबीरनगर की चार साल आरुषि, जिनको पहले काक्लियर इम्प्लांट किया गया वह तो अब बोलने भी लगे हैं। इन दोनों को न सुनने के साथ ही न बोलने की भी शिकायत थी। हाल ही में जन्मजात बहरापन की शिकार सृष्टि को उसके परिजनों ने मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग की ओपीडी में दिखाया। जांच में पता चला कि कान में जन्मजात विकृति के चलते बच्ची सुन नहीं पाती। बोलने से जुड़े अंग पूरी तरह ठीक हैं, लेकिन चूंकि बच्ची सुन नहीं सकती, इसलिए बोलना भी नहीं सीख पाई। परिजनों को बताया गया कि काक्लियर इम्प्लांट से समस्या दूर हो सकती है। इसके बाद भर्ती कर इलाज किया गया। दस साल के सूर्याश की समस्या सृष्टि से थोड़ा अलग हटकर है। इलाज के दौरान कुछ इंजेक्शन के दुष्प्रभाव से वह सुनने की ताकत खो बैठा। इसके पहले वह सामान्य बच्चों की तरह था। सुनाई न देने के थोड़े दिनों बाद उसे बोलने में भी दिक्कत होने लगी। परिजनों ने जब मेडिकल कालेज के ईएनटी विभाग में दिखाया तो काक्लियर इम्प्लांट की सलाह दी गई। उसे नेहरू अस्पताल में भर्ती कराया। सफलता पूर्वक इलाज हुआ।
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क्या है काक्लियर इम्प्लांट
काक्लियर इम्प्लांट एक इलेक्ट्रानिक उपकरण है। इसे सर्जरी कर कान में इम्प्लांट किया जाता है। सर्जरी के बाद जख्म भर जाने के बाद स्विच आन किया जाता है। इससे सुनने की ताकत वापस आ जाती है और धीरे-धीरे मरीज पूरी बात सुनकर प्रतिक्रिया भी व्यक्त करने लगता है। बीआरडी मेडिकल कालेज के ईएनटी के विभागाध्यक्ष डा. आरएन यादव के अनुसार यह ऐसे बच्चों में लगाया जाता है जो कि जन्मजात बहरापन से ग्रसित होते हैं या फिर बचपन में किसी वजह से अपने सुनने की क्षमता खो बैठते हैं। ऐसे वयस्कों में भी यह कारगर है जिनके दोनों कानों के सुनने की ताकत किसी वजह से चली जाती है और हिय¨रग डिवाइस लगाने से भी कोई फायदा नहीं होता।
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यह है सच
आम धारणा यह है कि जो बच्चे बहरापन के शिकार होते हैं वह बोल भी नहीं पाते जबकि विशेषज्ञों के अनुसार ऐसा नहीं है। ऐसे बच्चों के बोलने से जुड़े शारीरिक अंगों में कोई विकृति नहीं होती। चूंकि इन्होंने कभी कोई आवाज सुनी नहीं होती, लिहाजा इनके बोलने की क्षमता भी विकसित नहीं हो पाती। जन्म से लेकर नौ वर्ष तक की उम्र किसी बच्चे के बोलना सीखने के लिए बेहद महत्वपूर्ण होती है। ऐसे में माता-पिता को चाहिए कि वह नवजात स्थिति या कम उम्र में ही बच्चों में इस समस्या को पहचान कर इलाज कराएं।
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ए से नवजात को अधिक खतरा
- जिनका जन्म के समय वजन डेढ़ किग्रा से कम हो
- जन्म के बाद गंभीर पीलिया हो गया
- जन्म के बाद वेंटीलेटर पर रखना पड़ा
- बच्चे के सिर या चेहरे में विकृति
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