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मिरगी से घबराएं नहीं, इलाज कराएं

जागरण संवाददाता, गोरखपुर : मिरगी मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र संबंधी एक विकार है पर आधुनिकता के इस द

By Edited By: Published: Sun, 16 Nov 2014 09:11 PM (IST)Updated: Sun, 16 Nov 2014 09:11 PM (IST)
मिरगी से घबराएं नहीं, इलाज कराएं

जागरण संवाददाता, गोरखपुर :

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मिरगी मस्तिष्क व तंत्रिका तंत्र संबंधी एक विकार है पर आधुनिकता के इस दौर में भी ऐसे लोगों की तादाद काफी है जो इसे भूत-प्रेत की वजह मानते हैं। कुछ लोग इसे पागलपन भी समझते हैं। इसका असर मरीज के दिमाग पर भी पड़ता है और वह उदास व परेशान रहता है। साथ ही बीमारी के बारे में बताने से भी बचता है, पर विशेषज्ञों के मुताबिक दूसरे रोगों की ही तरह मिरगी भी एक बीमारी है।

अधिकतर मरीज न केवल इलाज से ठीक हो सकते हैं बल्कि सामान्य जीवन भी व्यतीत कर सकते हैं। एक अनुमान के अनुसार देश में मिरगी के मरीज लगभग करोड़ से अधिक हैं। पूर्वाचल में भी इसके मरीज बड़ी तादाद में हैं। बीआरडी मेडिकल कालेज की ओपीडी में आने वाले हर सौ मरीजों में छह से आठ मिरगी के होते हैं। उधर निजी अस्पतालों व चिकित्सकों के पास भी भारी संख्या में मरीज इलाज के लिए पहुंच रहे हैं।

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बीमारी का इलाज संभव

बीआरडी मेडिकल कालेज के न्यूरोफिजीशियन डा. पवन कुमार सिंह के अनुसार सत्तर से अस्सी फीसदी लोगों में बीमारी दवाओं के जरिए पूरी तरह ठीक हो सकती है। बचे हुए मरीजों में ज्यादातर सर्जरी से ठीक हो सकते हैं। मिरगी किसी भी उम्र में हो सकती है पर इसकी वजहें अलग-अलग हैं। दौरे कई तरह के होते हैं जिसमें मरीजों को अलग-अलग तरह के लक्षण दिखाई देते हैं। बड़ी मिर्गी के दौरे में मरीज को हाथ-पैर में निरंतर झटके आने, मुंह से झाग, आंखों की एकटकी, तेज सांस तथा अचानक मल या मूत्र हो जाना शामिल है। सीमित दौरे में शरीर के कुछ हिस्से जैसे चेहरे, हाथ-पैर में अनियमित संकुचन या झटके महसूस होते हैं, पर मरीज होश में रहता है। इसी तरह एक अन्य प्रकार का काम्प्लेक्स आंशिक मिर्गी में मरीज का गर्दन, आंख विशेष दिशा में घूम जाती है व मरीज का सम्पर्क क्षण भर के लिए वातावरण से टूट जाता है। वह कई तरह के व्यवहार करता है। स्टेट्स एपिलेप्टीकस प्रकार में तीस मिनट से अधिक समय तक झटके आते रहते हैं। मरीज अपना होश खो बैठता है और यह मेडिकल इमरजेंसी का रूप ले लेता है।

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अवसाद की भी एक वजह

मानसिक रोग विशेषज्ञ डा. अभिनव श्रीवास्तव के बार-बार दौरे आने पर व्यक्ति की मानसिक स्थिति पर भी असर पड़ता है। इससे मरीज अवसाद का शिकार हो जाता है। कई बार दवाएं ले रहे मरीजों को भी यह भय सताने लगता है कि कहीं उनको दौरा न पड़ जाए। जब यह भय बढ़ जाता है तो यह पैनिक अटैक का रूप ले लेता है। मरीज को घबराहट, बेचैनी होने लगती है। कहीं और लोग उसके बारे में न जाने यह सोचकर समस्या और बढ़ जाती है। ऐसे में जरूरी है मिरगी के मरीज से अन्य रोगियों की तरह सहानुभूति रखी जाए और उसे हीन भावना से न देखा जाए।

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मिर्गी के मुख्य कारण

- बच्चों में जन्म के समय आक्सीजन की कमी

- जन्मजात विकृति

- मस्तिष्क में ट्यूमर

- पुराना पक्षाघात के घाव, दिमाग में चोट

- खून में कुछ रसायनिक तत्वों का असंतुलन

- रक्त में शुगर की कमी या अधिकता

- दिमाग के संक्रमण जैसे इंसेफेलाइटिस, टीबी व न्यूरोसिस्टोसरकोसिस आदि

- वंशानुगत

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दौरे के समय ऐसा करें

- मरीज को तुरत एक करवट लिटाकर कपड़े ढीले कर दें

- जीभ को कटने से बचाने के लिए दांतों के बीच रुमाल रख दें।

- नजदीकी अस्पताल ले जाकर जल्द इलाज शुरू कराएं

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यह न करें

- आनन-फानन में नाक या मुंह बंद न करें

- जूते-चप्पल या प्याज न सुंघाएं

-मरीज के कांपने पर हाथ-पैर को जबरन पूरी ताकत से दबाने की कोशिश न करें

-मरीज के मुंह पर पानी डालने या पिलाने की कोशिश न करें

- उपचार में तंत्र, झाड़-फूंक का सहारा न लें


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