अपने विचारों के प्रति हमेशा अडिग रहे राजेंद्र यादव
कभी हार न मानने वाले साहित्यकार को नमन
राजेंद्र यादव हमारे समय के हिंदी लेखकों की प्रथम पंक्ति में प्रतिष्ठित थे। हिंदी में नई कहानी आंदोलन के समय से उनकी जो चर्चा हुई वह उनके जीवन पर्यत कायम रही। इसका कारण है उनकी साहित्यिक सक्रियता, जो उनके निधन के दिन तक अनथक चलती रही। हंस पत्रिका के द्वारा उन्होंने न केवल साहित्य बल्कि राजनीति और देश के विभिन्न ज्वलंत वैचारिक बहसों में हस्तक्षेप किया। हंस द्वारा उन्होंने दलित और स्त्री विमर्श को साहित्य की मुख्य धारा में लाने का कारगर प्रयास किया। अपने उत्तेजक विचारों और दो टूक बयानों के कारण वे कई बार गंभीर विवादों के विषय बने, पर उन्होंने कभी हार नहीं मानी। उन्होंने अच्छी खासी संख्या में लेखकों-लेखिकाओं और अपने समर्थकों की एक पीढ़ी तैयार की। उनके निधन से एक ऐसा स्तंभ ढह गया जिसे किसी वैचारिक विरोध या टकराव की चिंता नहीं थी।
-विश्वनाथ प्रसाद तिवारी
अध्यक्ष, साहित्य अकादमी
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विवादास्पद लेकिन विचारणीय राय के धनी
राजेंद्र यादव विचार और व्यवहार में लोकतात्रिक थे। मतभेदों से न वे डरते थे, न घबराते थे और न बुरा मानते थे। इसके जरिये उन्होंने दो काम किए, पहला यह कि उन्होंने स्त्री दृष्टि और लेखन को बढ़ावा दिया। स्त्री दृष्टि पर उनकी राय विवादास्पद लेकिन विचारणीय रही। उन्होंने दूसरा काम यह किया कि हंस के जरिये दलित चिंतन और दलित साहित्य को बढ़ावा दिया।
प्रो.रामदेव शुक्ल
वरिष्ठ साहित्यकार
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अपूर्णनीय क्षति है राजेंद्र यादव का निधन
अनूठी कथा शैली के धनी राजेंद्र यादव साहित्य जगत की एक बड़ी शख्सियत थे। हंस पत्रिका के संपादकीय के माध्यम से उन्होंने अपने बेबाक विचारों को जिस प्रकार विवादों की चिंता न करते हुए रखा है,वह उनके व्यक्तित्व के विशेष गुण का परिचय देता है। उनका न रहना हिंदी साहित्य जगत के लिए बड़े शोक का विषय है।
प्रो.अनंत मिश्रा
चिंतक, पूर्व विभागाध्यक्ष, हिंदी
दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय
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हमेशा याद किए जाएंगे राजेंद्र
नये लेखकों के लिए राजेंद्र यादव ने हंस जैसी प्रतिष्ठित पत्रिका में हमेशा स्थान उपलब्ध कराया। इसके चलते विवाद भी हुए, लेकिन इससे उभरते लेखकों का हमेशा उत्साहवर्द्धन होता रहा। अपनी विशेष कार्यशैली के लिए साहित्य का यह पुरोधा हमेशा याद किया जाएगा।
प्रो.पूर्णिमा सत्यदेव
विभागाध्यक्ष, हिंदी
दीदउ गोरखपुर विश्वविद्यालय
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जागरण संवाददाता, गोरखपुर :
हिंदी साहित्य की मशहूर पत्रिका हंस के संपादक, हिंदी में नई कहानी आदोलन के प्रवर्तकों में एक राजेंद्र यादव का जीवन यूं तो विवादों से भरा रहा, मगर उन्होंने कभी इससे हार नहीं मानी। समाज के वंचित तबके और स्त्री-पुरुष संबंधों को अपने लेखन का विषय बनाने वाले राजेंद्र यादव के निधन को महानगर के प्रबुद्ध जनों ने साहित्य जगत के लिए एक बड़ा शोक बताया है।
वरिष्ठ पत्रकार सुजीत पांडेय बताते हैं वह वर्ष 1987-88 का वक्त रहा होगा जब राजेंद्र यादव गोरखपुर विश्वविद्यालय के दीक्षा भवन में मुंशी प्रेमचंद पर केंद्रित एक गोष्ठी में सहभाग करने आए थे। काला सूट और आखों को ढकते चश्मे के साथ पाइप से गहरा कश खींचते हुए उन्हें चिंतन करना देखना विशिष्ट अनुभव था। शांतचित्त यादव से जब बात चली तो उन्होंने अपनी चर्चित और पुरस्कृत किताब एक इंच मुस्कान के बारे में बताया कि यह रचना डाइनिंग टेबल पर उनके और उनकी पत्नी मन्नू के बीच रोजाना हुई बहस से सफल मुकाम पर पहुंच सकी। इसमें पुरुष पक्ष अगर राजेंद्र यादव का अपना था तो महिला पक्ष मन्नू भंडारी का। गोरखपुर विश्वविद्यालय के शिक्षक प्रो.अनिल राय ने कहा है कि साहित्यिक पत्रिका हंस का पुर्नप्रकाशन उनका सबसे बड़ा योगदान माना जाएगा। इसे उन्होंने एक ऐसे मंच का रूप दिया, जिस पर कई नए कहानीकार आए, जिन्हें कोई जानता तक नहीं था।
जनवादी लेखक मंच के जिला अध्यक्ष बादशाह हुसैन रिजवी ने कहा कि राजेंद्र यादव ने कमलेश्वर और मोहन राकेश के साथ मिलकर कहानी को यथार्थवादी बनाया। कथाकार मदन मोहन ने कहा कि राजेंद्र यादव को इस बात का श्रेय हमेशा मिलेगा कि वह दलित और स्त्री विमर्श को हिंदी साहित्य के केंद्र में ले आए।
सेंट एंड्रयूज कालेज के एसोसिएट प्रोफेसर अनंतकीर्ति तिवारी, प्रगतिशील लेखक संघ पूर्वाचल जनक्षेत्र के अध्यक्ष डा.उपेंद्र प्रसाद, प्रलेस जिला इकाई के अध्यक्ष महेश अश्क, अनीस खां महासचिव भरत शर्मा, अरुण सदाबहार व सतीश चंद्र शुक्ल ने भी राजेंद्र यादव के निधन को हिंदी साहित्य जगत के लिए अपूर्णनीय क्षति बताते हुए श्रद्धांजलि अर्पित की है।
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