अमरावती के पन्ने में गोंडा के अखिलेश की '¨जदगी'
गोंडा : प्रतिभाएं छुपाने से नहीं छिपती, अगर कोशिशें निरंतर जारी रहें तो एक न एकदिन मुकाम मिल ही जाता
गोंडा : प्रतिभाएं छुपाने से नहीं छिपती, अगर कोशिशें निरंतर जारी रहें तो एक न एकदिन मुकाम मिल ही जाता है। कुछ ऐसा ही मसकनवां के गोपालपुर में रहने वाले इंटरमीडियट के छात्र अखिलेश पांडेय के साथ हुआ है। छोटी-छोटी कविताओं के जरिए कोशिश करने वाले छात्र की '¨जदगी' नामक कविता अमरावती पोयट्रिक प्रिज्म 2018 नामक पुस्तक में सूचीबद्ध की गई है। इस किताब में दुनिया भर के 630 कवियों की 1111 कविताएं संग्रहीत हैं। यह एक स्वयंसेवी संस्था है जो दुनिया के नए कवियों को मंच प्रदान करती है। इसके अलावा इटली व कई अन्य देशों की साहित्यिक संस्थाओं से उनको सम्मान मिल चुका है।अखिलेश दो दर्जन से अधिक कविताएं लिख चुके हैं। वह अपनी रचनाओं को विभिन्न साहित्यिक संस्थाओं को भेजा करते हैं, जिसमें अमरावती पोयट्रिक प्रिज्म भी है। संस्था ने 2018 के अंक में उनकी ¨जदगी नामक कविता को स्थान दिया है, जिसे दुनिया के 76 देशों की 107 भाषाओं में प्रकाशित की गई है।
इटली की संस्था दे चुकी मेडल
- गत 16 व 17 मार्च को मथुरा में द लिट्रेटी कॉजमोज सोसायटी ने लेखन प्रतियोगिता कराई थी। इसमें दुनिया भर के नए लेखकों ने प्रतिभाग किया था, जिसमें अखिलेश को 18वां स्थान मिला था। इस पर इटली की वर्ल्ड यूनियन ऑफ पोयट संस्था ने डबल क्रास गोल्ड मेडल प्रदान किया था।
घर के माहौल से मिली कविता लिखने की सीख
- अखिलेश बताते हैं कि बाबा रामकरन पांडेय व दादी शांतिदेवी घर पर रहते हैं। बाबा वर्ष 2006 में सीआरपीएफ से सेवानिवृत्त हुए हैं तथा गांव पर रहकर खेती-बाड़ी करते हैं। परिवार के अन्य लोग भी बाहर हैं। बकौल अखिलेश वह शहर में किराए का कमरा लेकर 12वीं की पढाई कर रहे हैं। वह बताते हैं कि सबके होने के बाद भी बाबा-दादी खुद को अधूरा महसूस करते हैं। इससे उनको पीड़ा होती है। इसी पीड़ा को कविता के माध्यम से लिखते हैं।
कविताएं सुनाते हैं अखिलेश
- बाबा रामकरन ने फोन पर बताया कि उनको बहुत प्रसन्नता है। नाती को कई जगह पुरस्कार मिला है। कहा कि अखिलेश घर आते हैं तब कविताएं सुनाते हैं। प्रधानाचार्य डॉ. प्रशांत घोष ने बताया कि अखिलेश उनके स्कूल के छात्र हैं। उनकी लेखन क्षमता बहुत अच्छी है।