'वृक्ष मित्र' से 'विद्यावाचस्पति' का सफर
-पर्यावरण के प्रति संतोष बाजपेयी की संजीदगी व उनके प्रयासों को भारत सरकार के वन मंत्रालय ने भी सराहा है।
गोंडा : यह जन्म हुआ किस अर्थ अहो, समझो जिसमें यह व्यर्थ न हो। कवि मैथिलीशरण गुप्त की यह पंक्ति निराशा को त्यागने और कुछ करने के लिए प्रेरित करती है। मनकापुर के संतोष बाजपेयी ने कुछ ऐसा ही किया। पिता से प्रेरणा लेकर वह पर्यावरण प्रहरी बन गए। 18 वर्ष तक पर्यावरण संरक्षण में उत्कृष्ट कार्य के लिए उन्हें में विक्रमशिला हिदी विद्यापीठ भागलपुर बिहार की ओर से विद्यावाचस्पति की उपाधि प्रदान की गई। यह उपाधि उन्हें हाल ही में महाराष्ट्र के वर्धा स्थित सेवाग्राम आश्रम में आयोजित सारस्वत सम्मान समारोह में कुलाधिपति डॉ. सुमन जी भाई ने प्रदान की। केंद्रीय वन मंत्रालय ने उन्हें 2002 में इंदिरा प्रियदर्शिनी वृक्ष मित्र सम्मान प्रदान कर चुका है।
संतोष ने पर्यावरण संरक्षण का अभिनव अभियान 30 जून 2001 को अपनी शादी में परिणय पौध लगाने के साथ शुरू किया था। यह आज भी जारी है। वह जहां भी परिणय संस्कार में जाते हैं, अपने खर्च पर आम के पौधे लगवाते हैं। कोई सूचित करता है तो वहां भी पौधे लेकर पहुंच जाते हैं। मांगलिक कार्यक्रमों से जुड़ी स्मृतियों को संजोने के लिए वह संस्कार स्मृति वाटिका की स्थापना भी करा रहे हैं। डीएफओ आरके त्रिपाठी कहते हैं, संतोष पर्यावरण के प्रति बेहद सजग हैं। उनसे समाज के लोगों को सीख लेनी चाहिए।
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1100 किमी तक निकाली जागरूकता यात्रा :
गत वर्ष पांच सितंबर को संतोष ने लखनऊ से पर्यावरण जागरूकता यात्रा निकाली थी। यह यात्रा देशभर में करीब 1100 किमी का सफर कर 25 दिसंबर को भारत रत्न एवं पूर्व प्रधानमंत्री अटल बिहारी वाजपेयी के जन्मदिवस के अवसर पर विज्ञान भवन नई दिल्ली में पूरी हुई। इस दौरान उन्होंने करीब एक लाख लोगों से पर्यावरण संरक्षण का संकल्प पत्र भरवाया था।