घाघरा की बाढ़ में जब गांव सारे बह गए, ..इनके बंगलों में त्योहार है
बनने के साथ ही टूटते रहते रेत से बने तटबंध स्थाई समाधान की पहल बेदम
गोंडा : इसी जिले की माटी में जन्मे जनकवि अदम गोंडवी की रचना है, घाघरा की बाढ़ में जब गांव सारे बह गए, बस यहां उस दिन से इनके बंगलों में त्योहार है। व्यवस्था पर प्रहार करतीं यह पंक्तियां उन्होंने ऐसे हालातों से रूबरू होने के बाद ही लिखी थीं। कारण हर साल बाढ़ आती रही, करोड़ों के वारे-न्यारे होते रहे। राहत पहुंचाने के नाम पर माननीयों व अधिकारियों से के दौरे होते रहे, लेकिन सैंकड़ों परिवारों को हर साल बाढ़ का दर्द झेलना ही पड़ता था। सरयू/घाघरा नदियों में हर साल आने वाली बाढ़ से बचाव के लिए घाघरा नदी के किनारे एल्गिन-चरसड़ी व सरयू के किनारे भिखारीपुर-सकरौर तटबंध बनाया गया। सपा सरकार में वर्ष 2005-2007 में इनका निर्माण किया गया। एल्गिन-चरसड़ी 14 करोड़ में बना था। इसकी मरम्मत के नाम पर सौ करोड़ रुपये से अधिक खर्च हो चुके। भिखारीपुर बांध सात करोड़ में बना था, 70 करोड़ रुपये खर्च होने के बाद भी सुरक्षित नहीं हो सका। परसपुर विकास मंच के अध्यक्ष अरुण कुमार सिंह, बासुदेव सिंह, केबी सिंह, त्रिलोकीनाथ तिवारी व हर्षित सिंह ने तटबंध निर्माण व मरम्मत में भ्रष्टाचार का आरोप लगाया है। इन्होंने मुख्यमंत्री को पत्र भेजकर मामले की एसआइटी से जांच व दोषियों के विरुद्ध कठोर कार्रवाई की मांग की है।
नेपाल से छोड़ा गया पानी जिम्मेदार..
इस बार तटबंध सुरक्षित रहें, राहत व बचाव कार्य में कोई कमी न रहे। इसको लेकर मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ व अन्य मंत्रियों द्वारा बाढ़ प्रभावित क्षेत्रों का हवाई/स्थलीय सर्वेक्षण किया जा चुका था। कोई कमी न रह जाए, इसको लेकर नसीहतें भी दी गईं, लेकिन एक तटबंध कट गया। बाढ़ से बचाव व राहत की समीक्षा बैठक लेने आए पिछड़ा वर्ग कल्याण मंत्री अनिल राजभर ने तटबंध कटने का कारण नेपाल द्वारा छोड़े गए पानी को बताया। अब सवाल उठता है कि तटबंधों का निर्माण इस तरह नहीं किया जा रहा कि पानी आने पर वह सुरक्षित रह सके।
ठेकेदारों की कटती चांदी-विभागीय सूत्र बताते हैं कि तटबंधों के निर्माण व मरम्मत का कार्य उन्हीं ठेकेदार को मिलता है जो सत्तादल से जुड़े नेताओं के करीब होते हैं। सरकार कोई भी रहती है, बांध कटने पर इन्हीं ठेकेदारों की चांदी रहती है। यदा-कदा कार्रवाई होने के बावजूद भीतरखाने खेल चलता रहता है।