अस्पताल बिना टूट रही जिंदगी की डोर इलाज के लिए जाना पड़ रहा दूर
न्यूरो सर्जन व फिजीशियन न होने के कारण हेड इंजरी के मामलों को तत्काल रेफर करना पड़ता है। यही स्थिति हृदय रोग के मरीजों के सामने भी है। हालांकि डायलिसिस यूनिट बन रही है लेकिन अभी संचालित नहीं हो सकी है। यहां पर ट्रामा सेंटर की आवश्यकता है जिसके लिए पत्राचार किया जा रहा है।
गोंडा : बलरामपुर जिले के निवासी हरिलाल को हृदय रोग संबंधी परेशानी थी, उन्हें गंभीरावस्था में यहां जिला अस्पताल लाया गया, जहां चिकित्सकों ने लखनऊ के लिए रेफर कर दिया। मोतीगंज के राजकुमार को हार्ट की परेशानी थी, कोइरी जंगल निवासी नानू छत से गिरकर घायल हो गए थे, इन्हें समुचित इलाज न होने की दशा में यहां से रेफर कर दिया गया। इसी तरह बद्री प्रसाद को नसों से संबंधित बीमारी से ग्रसित होने के कारण जिला अस्पताल लाया गया, यहां इस बीमारी से संबंधित चिकित्सक न होने के कारण मेडिकल कॉलेज के लिए रेफर कर दिया गया। पांच साल के सुमित को गले में दिक्कत की वजह से जिला अस्पताल लाया गया लेकिन यहां इसके चिकित्सक ही नहीं उपलब्ध हैं, इस कारण परिवारजन निजी चिकित्सक की शरण में जाने को मजबूर हुए। आए दिन इस तरह की समस्या से मरीज और तीमारदार जूझ रहे। इनकी समस्या का निदान मेडिकल कॉलेज की स्थापना से संभव है। जनता-जनार्दन की दशकों पुरानी यह मांग अबतक पूरी न हो सकी। इसे पूरी करने के लिए कतिपय संगठनों, नागरिकों की ओर से आंदोलन की भी रास्ता अपनाया जा रहा है। हालांकि इनकी यह आवाज नक्कारखाने में तूती सरीखी साबित हो रही। 35 लाख से अधिक आबादी वाले जिले में गंभीर बीमारी और घटना-दुर्घटना के शिकार पीड़ितों के इलाज के जिला महज जिला अस्पताल तक की सेवा उपलब्ध है। इसमें भी विशेषज्ञ चिकित्सकों व आवश्यक संसाधनों का अभाव होने के कारण गंभीर रोगियों को 130 किमी दूर स्थित लखनऊ रेफर कर दिया जाता है। ऐसे में कुछ लोगों की सांसें रास्ते में टूट जाती हैं। कारण ट्रॉमा सेंटर व सघन चिकित्सा इकाई तक का प्रबंध यहां नहीं है। पेश है अजय सिंह की रिपोर्ट..।
मरीजों की भीड़ में दम तोड़ती व्यवस्था
जिला अस्पताल में प्रतिदिन 1200 नए मरीज आते हैं। करीब 300 मरीज पुराने रहते हैं। ऐसे में 1500 मरीजों की ओपीडी रहती है। प्रतिदिन 80 मरीज भर्ती किए जाते हैं। इसमें से हेड इंजरी व हृदय रोग से ग्रसित मरीजों को लखनऊ रेफर किया जाता है। एक अनुमान के मुताबिक प्रतिदिन छह से आठ मरीज रेफर किए जाते हैं। यहां पर पिछले चार साल से नाक, कान व गला रोग का कोई भी चिकित्सक नहीं है। डायलिसिस यूनिट, पीडियाट्रिक वार्ड बनकर तो तैयार है लेकिन संसाधन न होने के कारण काम ठप है। अस्पताल के उच्चीकरण का काम भी प्रभावित है। इसके कारण मरीजों का भर्ती करने में परेशानी होती है। जनता के बोल
वजीरगंज के मुनीर, विशेषरगंज के जलील खान, रगड़गंज के राजू सिंह हों या शेषराज पांडेय, इन सभी का दर्द है कि जिला अस्पताल में पर्याप्त सुविधा नहीं है। गंभीर बीमारी या इलाज के लिए निजी अस्पतालों अथवा लखनऊ तक दौड़ लगानी पड़ रही। जनता की रहनुमाई करने वालों को यहां मंडल मुख्यालय पर मेडिकल कॉलेज की स्थापना को लेकर मजबूत प्रयास करने चाहिए। यह जिले का प्रमुख मुद्दा भी है।
मुख्यमंत्री की घोषणा से जगी थी उम्मीद
गत वर्ष मुख्यमंत्री योगी आदित्यनाथ वनटांगिया गांवों को राजस्व गांव का दर्जा देने मनकापुर आए थे। इस मौके पर उन्होंने गोंडा में श्रम विभाग की ओर से मेडिकल कॉलेज बनाए जाने की घोषणा की थी। ऐसे में जिले के लोगों को जल्द बेहतर चिकित्सीय सुविधा मिलने की आस जगी थी। कुछ ही दिनों बाद यह मेडिकल कॉलेज सिद्धार्थनगर जिले के खाते में चला गया। ऐसे में यहां के लोगों में फिर मायूसी छा गई।
इनसेट
चल रहा आंदोलन
जिले में मेडिकल कॉलेज की स्थापना की मांग को लेकर अविनाश सिंह ने मेडिकल कॉलेज संघर्ष समिति का गठन किया है। इसके माध्यम से शहर में मेडिकल कॉलेज को लेकर जागरूकता रैली सहित अन्य कार्यक्रम किए जा रहे हैं। आंदोलन में मनोज दिवेदी, श्रेयांश द्विवेदी, अभिषेक सिंह सहित अन्य शामिल हैं। जिम्मेदार के बोल
न्यूरो सर्जन व फिजीशियन न होने के कारण हेड इंजरी के मामलों को तत्काल रेफर करना पड़ता है। यही स्थिति हृदय रोग के मरीजों के सामने भी है। हालांकि डायलिसिस यूनिट बन रही है लेकिन अभी संचालित होने में वक्त लगेगा। यहां पर ट्रॉमा सेंटर की आवश्यकता है, जिसके लिए पत्राचार किया जा रहा है।
- डॉ. एसके श्रीवास्तव, सीएमओ