मनरेगा घोटाले में प्रधान को बचाया, कर्मचारियों को फंसाया
पूरेबदल में चार परियोजनाओं पर 7.14 लाख व बौनापुर में दो परियोजनाओं पर 7.02 लाख रुपये का बिना कार्य कराए ही भुगतान करने का मामला प्रकाश में आया था। इस दौरान कार्यस्थल पर न तो सामग्री मिली और न ही साइन बोर्ड। 13 सितंबर को डीएम के आदेश पर कूटरचित अभिलेख तैयार करके सरकारी धनराशि के गबन के मामले में तीन और एफआइआर दर्ज कराई गई थी।
गोंडा : खता बराबर, सजा जुदा-जुदा। ये कहावत नहीं, बल्कि हकीकत है। कटराबाजार में हुए मनरेगा घोटाले में कुछ ऐसा ही खेल अफसरों ने खेला, जिसमें कर्मचारी तो फंस गए लेकिन, प्रधान बच गए। तीन ग्राम पंचायतों में बिना काम कराए ही मनरेगा की 14 परियोजनाओं पर 36.95 लाख रुपये के मनरेगा घोटाले का राजफाश हुआ था। इसपर बीडीओ समेत नौ के खिलाफ कटराबाजार थाने में बीडीओ पुष्पा वर्मा ने गबन व जालसाजी का मुकदमा दर्ज कराया था। कटराबाजार के मनरेगा घोटाले में हुई कार्रवाई पर अब सवालिया निशान उठने लगे हैं। विभाग के एक अफसर ने नाम न छापने की शर्त बताया कि ये सब जानबूझकर किया गया है। मनरेगा की सभी फाइलों में सचिव, रोजगार सेवक के अलावा प्रधान के भी हस्ताक्षर होते हैं। सरकारी कर्मचारी की गर्दन सबसे कमजोर है जो चाहे मरोड़ दे। इनसेट
13 सितंबर को दर्ज हुई थी एफआइआर
- ब्लॉक की तीन ग्राम पंचायतों में मनरेगा के तहत कराए गए कार्यों का सत्यापन उपायुक्त श्रम एवं रोजगार हरिश्चंद्र राम प्रजापति की अगुवाई वाली टीम से कराया गया था। जांच के दौरान बनगांव में आठ परियोजनाओं पर बिना कार्य के ही 22.80 लाख, पूरेबदल में चार परियोजनाओं पर 7.14 लाख व बौनापुर में दो परियोजनाओं पर 7.02 लाख रुपये का बिना कार्य कराए ही भुगतान करने का मामला प्रकाश में आया था। इस दौरान कार्यस्थल पर न तो सामग्री मिली और न ही साइन बोर्ड। 13 सितंबर को डीएम के आदेश पर कूटरचित अभिलेख तैयार करके सरकारी धनराशि के गबन के मामले में तीन और एफआइआर दर्ज कराई गई थी।