निजाम सोता रहा, जनता जाग गई और हनुमत सेतु बन गया
दो साल में 60 गांवों के लोगों ने इकट्ठा किए 23 लाख रुपये। जनप्रतिनिधियों की उदासीनता पर प्रहार है गोंडा का हनुमत पुल।
गोंडा [अजय सिंह]। उत्तर प्रदेश के गोंडा की कर्नलगंज तहसील का सरैया चौबे गांव। गांव के पास से निकलती टेढ़ी नदी। नदी पार करना गांव वालों के लिए टेढ़ी खीर था। आज से नहीं, बरसों से। कारण, नदी पर दूर तक कोई पुल नहीं था। एक अदद पुल की मांग लेकर ग्रामीण जनप्रतिनिधियों की शरण में गए। प्रार्थना करते-करते दशकों बीत गए। समस्या जस की तस।
नदी किनारे कुटी बनाकर रहने वाले संत रामदास को भी लोगों की मुश्किलें देखते हुए अरसा हो गया था। एक दिन ठान लिया कि बहुत हो गया। ग्रामीणों को समझाना शुरू किया कि नेताओं का मुंह देखने से कुछ नहीं होने वाला। समस्या हमारी है, निदान भी हमें ही करना होगा। लोगों को बात समझ आई। सोचा गया कि किया क्या जाए। तय हुआ कि नदी पर खुद एक पुल बनाएंगे। गांव वाले हैरत में पड़ गए कि ये कैसे होगा। रामदास ने भरोसा दिलाया कि यह संभव हो सकता है। ग्रामीणों ने विश्वास किया और हरसंभव सहायता की सहमति दी। लोगों ने चंदा देना शुरू किया।
बात आस-पास के 60 गांवों में फैल गई कि सरैया चौबे में पुल बनने जा रहा है। वे लोग भी आगे आए और उन्होंने भी दान देना शुरू किया। दो साल में करीब 23 लाख रुपये इकट्ठा हो गए। बस, पुल बनना शुरू हो गया। दो महीने में एक सपना वास्तविकता की शक्ल ले चुका था। 86 फीट लंबा और सात फीट चौड़ा पुल बन चुका है।
वानर सेना के चित्रों से सजे इस पुल से होकर बच्चे स्कूल आ-जा रहे हैं। नाम रखा गया है- हनुमत सेतु क्योंकि हनुमान मंदिर के पुजारी की प्रेरणा से पुल बना।
देखते बनता है रुआब
इस पुल पर आवागमन शुरू हुए एक माह हो चुका है। गांव के किसी भी शख्स के सामने इस पुल की बात छेड़ दीजिए, फिर उसके लहजे का रुआब देखिए। जितने गर्व से वह पुल बनने की कथा सुनाता है, उतनी ही हिकारत अफसरों और जनप्रतिनिधियों पर उड़ेलता है।
बाबा रामदास ने बताया कि आम जनता के अलावा किसी भी नेता ने कोई सहयोग नहीं किया है। यह पूर्ण रूप से ग्रामीणों की मेहनत और दृढ़ संकल्प का नतीजा है।