कागजों में नदी, हकीकत में नाले से कम नहीं
जबकि खाली स्थानों पर निर्माण कार्य भी कर लिया गया है। नदी अब कई स्थानों पर खाईं के रूप में नजर आने लगी है। अगर समय रहते नदी को पुनर्जीवित करने की पहल नहीं हुई तो ये नदी भी सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाएगी।
गोंडा : बिसुही नदी बहराइच जिले के इकौना परगना से निकलकर गोंडा की पश्चिमी सीमा में प्रवेश करती है। उतरौला तहसील में पहुंचकर यह सादुल्लानगर को मनकापुर से और बूढ़ापायर को बभनीपायर से अलग करती है। जिले में 70 मील की दूरी तय करके ये नदी कुआनो में मिल जाती है। इसका पाट भी कुआनो की तरह संकरा व गहरा है। जिले में प्रवेश करते समय नदी की चौड़ाई 10 से 15 गज तक ही है, जबकि पूर्वी सीमा पर पहुंचते-पहुंचते यह 40-50 गज तक चौड़ी हो गई है। नदी के तट व अधिकांश भाग जामुन के कुंजों से आच्छादित हैं। नदी पर ही गोंडा-बलरामपुर सड़क, रेलवे, गोंडा-उतरौला व उतरौला-नवाबगंज मार्ग पर पुल बने हैं। ये नदी भी अतिक्रमण का शिकार हो चुकी है। नदी के तट पर लोग खेती कर रहे हैं, जबकि खाली स्थानों पर निर्माण कार्य भी कर लिया गया है। नदी अब कई स्थानों पर खाईं के रूप में नजर आने लगी है। अगर समय रहते नदी को पुनर्जीवित करने की पहल नहीं हुई तो ये नदी भी सिर्फ कागजों में सिमट कर रह जाएगी। इनसेट
पब्लिक बोल
-मसकनवां के रहने वाले अधिवक्ता विकासधर द्विवेदी का कहना है कि नदियों को संरक्षित करने के लिए प्रशासन को प्लान बनाना चाहिए । जगन्नाथपुर निवासी नंदकिशोर मिश्र का कहना है कि पहले नदियों में पशु-पक्षी प्यास बुझाते थे, अब नदी का पानी दूषित होने से उनपर भी संकट है। रमेश विश्वकर्मा का कहना है कि नदी कहने को है, अब नाला दिखती है। कृष्णकांत मिश्र का कहना है नदियों को यदि संरक्षित नहीं किया गया तो आने वाले दिनों में बूंद-बूंद पानी के लिए तरसना पड़ेगा।