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विधवा मां ने खेती-बारी कर बेटे को बनाया अफसर

सादात (गाजीपुर) परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों लेकिन मां अपने बच्चों के लिए अपनी जान लड़ा देती हैं लेकिन मां अगर विधवा हो तो जीवन के रास्ते और दुरूह हो जाते हैं। गरीबी सबसे बड़ा अभिशाप है लेकिन अगर इस स्थिति में भी

By JagranEdited By: Published: Sat, 09 May 2020 09:07 PM (IST)Updated: Sun, 10 May 2020 06:06 AM (IST)
विधवा मां ने खेती-बारी कर बेटे को बनाया अफसर
विधवा मां ने खेती-बारी कर बेटे को बनाया अफसर

जासं, सादात : (गाजीपुर) : परिस्थितियां कितनी भी विपरीत हों लेकिन मां अपने बच्चों के लिए अपनी जान लड़ा देती है। गरीबी के अभिशाप और विधवा हाल में अपने बच्चों को बढ़ा-लिखा कर अफसर बनाना कल्पना से इतर है। इसे सच कर दिखाया है चन्नर देवी ने। जिन्होंने अल्प उम्र में पति को खो दिया लेकिन परिस्थतियों से लड़ते हुए एक बेटे को अफसर तो दूसरे को शिक्षक बना दिया।

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सादात क्षेत्र के हुरमुजपुर गांव निवासी चन्नर देवी के पति की मृत्यु उस समय हो गई जब बड़ा बेटा महज आठ-नौ वर्ष का था। चन्नर देवी के बड़े बेटे व विन्ध्याचल मंडल के संयुक्त शिक्षा निदेशक कामता राम पाल ने बताया कि उन्होंने हुरमुजपुर गांव के प्राथमिक विद्यालय में कक्षा तीन में पढ़ते थे तभी पिता भुवाल पाल का बीमारी से निधन हो गया था। घर में हम तीन भाइयों व एक बहन व चाचा भरत पाल सहित संयुक्त परिवार था। आजीविका के नाम पर मात्र कुछ खेती-बारी के अलावा पारंपरिक भेड़ पालन ही था। मां ने उस समय हार न मानते हुए मुश्किलों से साहस व हौसले के साथ लड़ा। मां की तपस्या से ही मैं हुरमुजपुर सर्वोदय इंटर कालेज से हाईस्कूल करने के बाद प्रयागराज से उच्च शिक्षा ग्रहण किया। मेरा वर्ष 1997 में पीसीएस के तहत जेल अधीक्षक पद के लिए चयन हुआ। बाद में शिक्षा विभाग में आ गया। छोटे भाई लालजी पाल भदोही में परिषदीय विद्यालय में शिक्षक हैं।

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मेरी माँ..व‌र्ल्ड बेस्ट मां है। क्योंकि वह मुझे हर मुश्किल वक्त में सपोर्ट करती हैं। इस लॉकडाउन में मेरी पढ़ाई को आगे रखने के मेरी मम्मी ने मुझे बहुत कुछ नया सिखाया है। जब मेरी ऑनलाइन क्लास चलती है तब वो किसी को भी मुझे डिस्टर्ब करने नहीं देतीं। मैंने इस लॉकडाउन में मम्मी-पापा की 25वीं एनिवर्सरी भी सेलिब्रेट की और मैंने केक व गिफ्ट भी अपने हाथों से बनाया था। मेरी भगवान से यही कामना है कि ऐसी माँ नही बल्कि यही माँ मुझे हर जनम में मिले। आज मैं जितनी भी काबिल हूँ सिर्फ मम्मी की वजह से हूँ।

- साक्षी यादव।

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मां एक ऐसा शब्द है जिसके महत्व के विषय मे जितनी भी बात की जाए कम ही है। हम मां के बिना अपने जीवन की कल्पना भी नहीं कर सकते हैं। मां का प्रेम और त्याग की प्रतिमूर्ति भी माना गया है। इतिहास कई सारी ऐसे घटनाओं के वर्णन से भरा पड़ा हुआ है, जिसमें माताओं ने अपनी संतानों के लिए विभिन्न प्रकार के दुख सहते हुए अपना सर्वस्व न्योछावर कर दिया। मेरी मां सदैव मेरे लक्ष्य को पूरा करने के लिए प्रेरणा देती रहती है और मेरी सहायता करने का हर संभव प्रयास करती है।

- आनंद भारद्वाज : छात्र पीजी कॉलेज

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घुटनों पर रेंगते रेंगते कब पैरों पर खड़ा हुआ

तेरी ममता की छांव में न जाने कब बड़ा हुआ.,

काला टीका दूध मलाई सब कुछ आज भी वैसा है.

मैं ही मैं हूँ हर जगह. माँ प्यार ही तेरा ऐसा है.,

सीधा साधा भोला भाला आज भी सबसे अच्छा हूं.

कितना भी हो जाऊँ बड़ा. माँ तेरे लिए आज भी बच्चा हूँ.!!

- हिमांशु कुमार गुप्ता (बाबा)

ग्राम-कटरिया

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संघर्षशील है माँ. हर ग़मों को हस कर तले दबा जाती है.,

लहूलुहान परिस्थिति में इच्छा त्याग नवका पार लगा जाती है.

हां प्रधानाध्यापिका है माँ बिन बोले हर कुछ सीखा जाती है.,

पिता का कोई साया नहीं फिर भी बच्चों को हर मुकाम दिला जाती है.

- अंकित यादव

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हमारे हर मर्ज की दवा होती है मां..

कभी डांटती है हमें तो कभी गले लगाती है मां..

हमारी आंखों के आंसू अपनी कोख में समा लेती है मां..

अपने होठों की हंसी हम पर लुटा देती है मां..

हमारी खुशियों में शामिल होकर अपने गम भुला देती है मां..

जब भी कभी ठोकर लगे तो हमें तुरंत याद आती है मां..

- मुस्कान जालान


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