कार्डों के संग्रह का अजीब जुनून
इसे दीवानगी कहें या जुनून। बीते सौ वर्षों से अब तक के शादी-विवाह सहित विभिन्न आयोजनों के तरह-तरह के कार्ड को जमा करने का अजीब नशा है। दिलदारनगर के कुंवर नसीम रजा खां के पास वर्ष 1905 से लगायत अब के सभी ¨हदू-मुस्लिम सहित अन्य वर्गों के चार हजार कार्ड मौजूद हैं। इसमें उनकी खुद की तीन पीढि़यों की यादगार शामिल है। इसमें हाथ के लिखे, टाइपराइटर, साइक्लो स्टाइल, ¨प्र¨टग प्रेस, कंप्यूटराइज आफसेट मशीन के रंग-बिरंगे सभी समय की प्रि¨टग का नायाब नमूना है।
जागरण संवाददाता, गाजीपुर : इसे दीवानगी कहें या जुनून। बीते सौ वर्षों से अब तक के शादी-विवाह सहित विभिन्न आयोजनों के तरह-तरह के कार्ड को जमा करने का अजीब नशा है। दिलदारनगर के कुंवर नसीम रजा खां के पास वर्ष 1905 से लगायत अब के सभी ¨हदू-मुस्लिम सहित अन्य वर्गों के चार हजार कार्ड मौजूद हैं। इसमें उनकी खुद की तीन पीढि़यों की यादगार शामिल है। इसमें हाथ के लिखे, टाइपराइटर, साइक्लो स्टाइल, ¨प्र¨टग प्रेस, कंप्यूटराइज आफसेट मशीन के रंग-बिरंगे सभी समय की प्रि¨टग का नायाब नमूना है। इसे देखने के लिए लोगों की भीड़ जमा होती है। संग्रह के इस नायाब तोहफे को उन्होंने बहुत ही करीने से सजा रखा है। लोग बीते हुए दौर को याद कर अपने पूर्वजों के आमंत्रण पत्रों को देखकर उनकी यादों को ताजा करते हैं।
कुंवर नसीम रजा के पास कार्डों के जखीरे में बहूभोज, रुखसती, निकाह, विदाई, सेहरा, अकीका, तेरही, बरही, मुंडन, मुशायरा, कवि सम्मेलन, जलसा, जनसभा, रैली, गृह प्रवेश, उद्घाटन, जन्मदिन, नव वर्ष शुभकामना, खेल प्रतियोगिता, पुस्तक लोकार्पण, सम्मान समारोह, ईद मुबारकबाद आदि शामिल हैं। यह कार्ड किसी एक वर्ग के नहीं बल्कि ¨हंदू-मुस्लिम, ईसाई, बौद्ध सहित अन्य सभी वर्गों से ताल्लुक रखते हैं। इस नायाब संग्रह को नसीम रजा ने काफी संभाल कर रखा है। हालांकि इसे रखने में उन्हें काफी मशक्कत करनी पड़ती है। इस जखीरे को बचाने के लिए जरूरत के मुताबिक इसकी देखभाल भी करते हैं। कीड़ों से इसकी हिफाजत के लिए समय-समय पर धूप दिखाने के साथ ही उसमें कीटनाशक का छिड़काव भी करते हैं। ---
नहीं मिला सुरक्षित स्थान तो हो जाएगी मेहनत बेकार
कुंवर नसीम रजा खां का कहना है अब तक इसे उन्होंने बहुत संभाल कर रखा है लेकिन अब संग्रह बढ़ने से उनकी हिम्मत जवाब देने लगी है। अगर इसे रखने का कोई सुरक्षित स्थान मिल जाए तो इस संग्रह को बचाया जा सकता है। उम्मीद जताई कि दिलदारनगर में बना संग्रहालय शीघ्र ही संग्रह को रखने के लिए उचित आलमारियां एवं रैंक आदि उपलब्ध कराएगा जिसके कारण इसे महफूज किया जा सकेगा। हालांकि पर्यटन विभाग ने जैसे-तैसे भवन निर्माण तो कर दिया लेकिन वह अभी भी आधा-अधूरा है।